रविवार, 1 मई 2016

पानी रे पानी

देश में सूखे के कारण शहरी ओर ग्रामीण दोनो ही परेशान है। सिर्फ पीने के पानी के लिए छोटे- छोटे बच्चे जान हथेली पर लेकर गहरे कुऔं में उतर कर उलीच उलीच कर बरतनो में पानी भर रहे है। क्या बच्चे बूढ़े महिलाएँ सभी के पास एक काम रह गया है कि जैसे तैसे पीने के पानी का इंतजाम किया जाए। सूखे से परेशान इलाको में पानी दूर दूर से लाने में कितने मानव श्रम के घंटे बरबाद होते है इस पर तो हमारी सरकार का ध्यान ही नही है।

Children Skip School to be Lowered into Wells to Fetch Water


क्या देश में ऐसा पहली बार हुआ है ? साल दर साल मार्च अप्रेल मेंं सरकार हक्का बक्का होकर सकपकायी सी जागती है। आम जनता बेहाल परेशान सरकार का मुँह ताकती है। गरीब बच्चे, महिलाएँ ओर बूढ़े सबसे ज्यादा परेशान होते है। यह तो भला हो टीवी चैनलो का जो दिन रात लातूर की त्रासदी दिखाते रहे जब तक कि रेलमंत्री ने पानी की ट्रेन नहीं भेज दी।
 अबकी बार बात कुछ इस तरह बढ़ गयी कि हमारे प्रधानमंत्री को भी ''मन की बात'' में सूखे के मुद्दे पर चर्चा करनी पड़ी एवं लगे हाथो उन्होने ग्रामीण जनता को नसीहत भी दे डाली कि आपको गांव का पानी गांव में और खेत का पानी खेत में रखना होगा ।  एक दो साल पहले तक हमारे मौसम विभाग वाले जो ठीक से यह नही बता पाते थे कि कल पानी बरसेगा या नही इस बार खम ठोंक के कह रहे कि अबकी बार मानसून अच्छा रहेगा।आम जनता को दिलासा मिलता है कि कुछ दिनो में बारिश होने वाली है। उम्मीद पर दुनिया कायम है  ओर बारिश कम ज्यादा कैसी भी हो ही जायेगी।  ओर जबसे देश आजाद हुआ है तब से आम जनता आज तक ऐसे ही उम्मीद पर जी रही है तो अच्छे मानसून की आशा करना क्या बुरा है?  मान लिया कि अच्छा मानसून तो आने वाला है लेकिन सरकार को यह याद रखना चाहिये कि अगले साल मार्च अप्रेल भी आने वाला है। 
क्या हम हमेशा से पानी की समस्या से परेशान है? किसी जमाने में हम लोग पानी के प्रति अत्यधिक संवेदनशील थे।  पहले छोटे छोटे राजा, जमींदार, ठिकानेदार ओर किसान सभी अपनी क्षमतानुसार अपने ग्रामीण इलाको एवं कस्बों में तालाब, कुएँ, बावड़ी जैसी जल संरचनाओं का निर्माण कराते रहते थे। यहीं नहीं वे इस बात का ध्यान भी रखते थे कि ऐसी सभी संरचनाएँ सुरक्षित रहे, बल्कि निरंतर उनमें रिपेयर आदि भी होती रहे। आज भी लगभग हर शहर में जैेसे रतलाम, मंदसौर, देवास, उज्जैन, इंदौर आदि में उस जमाने की ऐसी अनेक बावड़ी एवं कुएँ है जो आज हमारी नगर पालिकाओं, नगर निगमो की मेहरबानी से कुड़े के ढेर में तब्दील हो चुके है।

ये उदयपुर जगदीश चौक स्थित 300 साल पुरानी बावड़ी है जो पिछले 40 सालो से बंद पड़ी थी अभी अभी इसको साफ किया गया है। अगर हमको पानी की समस्या से निपटना है तो पहल हमको ही करनी होगी। हमारे ग्राम शहर में स्थित ऐसी सभी जलसंरचनाओं को पुर्नजीवीत करना होगा। नगरपालिका एवं नगर निगमो को दृढ़ता से समझाना होगा कि ऐसी सभी जल संरचनाओं को न केवल साफ रखना है वरन इनका मेंटेनेंस भी करना है।
पानी की समस्या से निपटने के लिए दूसरा उपाय यह है कि हमें सबसे पहले सभी शासकीय भवनो को चाहे वे ग्रामीण इलाके में हो या शहर में हो वाटर रिचार्जिंग सिस्टम लगाना होगा। आर टी आई कार्यकर्ताओं के लिए यह एक अच्छा विषय है कि सरकार से पूछा जाए कि उनके पास कुल कितनी सरकारी बिल्डिंग्स है और उनमें कितनी में वाटर रिचार्जिंग सिस्टम लगा है और कितनी बिल्डिंग्स में यह ठीक से काम कर रहा है?
Image result for water recharging of well

 अगर देखा जाए तो सूखे की समस्या समस्या नही है यह हमारी लापरवाही है। इस लापरवाही में हम ओर सरकार दोनो ही शामिल है। हम सबको पता है कि राजस्थान में राजेन्द्रसिंह पिछले 20-25 सालो से जोहड़, तालाब बनाने में लगे है एवं अभूतपूर्व परिणाम प्राप्त किये है। अन्ना हजारे ने रालेगांव सि्द्दी में पानी संरक्षण में जो कार्य किये है उनके बारे में सब जानते  है। आश्चर्य की बात है कि हम इस ओर कोई कदम क्यों नही उठाते। जब एक बंदर पानी की उपयोगिता समझता है तो हमको तो ध्यान रखना ही चाहिये।