गुरुवार, 7 सितंबर 2023

नरेन्द्र मोदी क्वीन्स गेम्बिट d4

 कुछ दिनो से वन नेशन वन इलेक्शन भारत बनाम इंडिया सनातन का शोर सोशल मीडिया पर छिड़ा है।

दरअसल न तो राजनीतिक दल न आम सोशल मीडिया के बुद्धिजीवी यह समझ पा रहे है कि यह २०२४ के चुनाव की राजनीतिक बिसात पर नरेन्द्र मोदी ने क्वीन्स गेम्बिट खेलते हुए अपना पहला प्यादा d4 आगे बढ़ा दिया है।

अगर आप गौर से आकलन करे तो मोदी ने अलायंस के मुम्बई में मज़बूत होते विपक्ष के धर्रे धर्रे उड़ा दिये। सबसे पहले उन्होंने बीच मीटिंग के विशेष संसद सत्र बुलाने की घोषणा की मुम्बई मीटिंग को छोड़कर सारे चैनल इसी में व्यस्त रहे शाम होते होते आजतक ने स्कूप निकाल लिया और अंजना ओम कश्यप ने हल्ला बोल वन नेशन वन इलेक्शन से शुरु किया ज़ाहिर है लीक पीएमओ से आया होगा कि यह वन नेशन वन इलेक्शन के बारे में है। दो दिन  तक टीवी पर बहस चलती रही मुम्बई में अलायंस की मीटिंग को कोई कवरेज नही मिला।

अभी उससे आप निकले भी नही थे की G20 Bharat के सिर्फ़ एक आमंत्रण कार्ड पर प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा देखकर जयराम रमेश ने उड़ता तीर लपक लिया । कांग्रेस ने जब अपने अलायंस का नाम INDIA रखा तो मोदी क्या मूर्ख है जो उसका प्रचार करेंगे । आप को सही मे कुछ नही बोलना था परंतु पहले जयराम रमेश फिर पूरा विपक्ष कूद गया। दो दिन से सारे टीवी चैनल डिबेट करते घूम रहे है।



देश  में सर्वे हो रहा है हर हिंदुस्तानी बोल रहा है भारत नाम सही है। इसका मतलब समझ रहे है आप देश के सामने कांग्रेसी जब भारत नाम का विरोध करते है तो कांग्रेस की भारत विरोधी छवि बनती हैं ।। अभी तक आप जाति गत  वोट जो ज़्यादातर एक ही जगह वोट करते है उनके हितो की बात करके चुनाव जीतते आए है। फिर हिंदू भी अनेक जातियों में बँटे है इसलिए जातिवाद के आधार पर प्रत्याशी के अनुसार भी वोट बँट जाते है।  रही सही कसर उदयनिधी ने पूरी कर दी। उन्होंने जो बोला सो बोला प्रियांक खरगे को बोलने की क्या जरुरत थी सब बग़ैर सोचे समझे कूद गये। 





आप लोगो नही समझे कि देश में ८० करोड़ सनातनी है यह वोटर अगर आपसे नाराज हो कर एक जगह इकट्ठा हो गया तो अगले १०० साल आप जीत नही सकते। दरअसल सारा विपक्ष मोदी की ताल पर नाच रहा है वे मोदी की आलोचना करते है गाली बकते है लेकिन वे राजनीति की बिसात पर क्या चाल चलेंगे आप नही समझते है। 

अभी तो विशेष संसद सत्र आगे है।

०इब्तिदा-ए-इश्क़ है रोता है क्या, आगे-आगे देखिए होता है क्या”

बुधवार, 22 मई 2019

भारत में चुनाव प्रक्रिया और ईवीएम का सच

अब चुनाव सम्पन्न हो गये है एक्सिट पोल भी आ रहे है लेकिन एक जो बात खासतौर से विपक्ष करने में लगा हुआ है वो यह कि ईवीएम में गड़बड़ की जा सकती है या फिर ईवीएम हेक हो सकती है इससे चुनाव परिणाम प्रभावित हो सकते है। वैसे जो भी हार रहा है वो अपनी हार स्वीकार करने के बजाय उस हार का ठीकरा कहीँ और फोड़ना चाहता है लेकिन फिर भी दुष्प्रचार से कभी कभी सामान्य जन जो चुनाव प्रक्रिया से वाकिफ नही है सोचने लगते है कि हो सकता है ईवीएम में हेराफेरी की गयी हो वरना कोई पार्टी आज के जमाने में 350-400 सीट से कैसे जीत सकती है।
मै यह बताना चाहता हूँ कि मेरे शासकीय सेवा काल में मैने लगभग सभी लोकसभा व विधान सभा चुनाव में अनेक पदो पर सक्रियता से कार्य किया है खासतौर से प्रोटोकॉल ऑफिसर के पद पर लोकसभा व विधान सभा दोनो ही चुनाव में बाहर से आये आईएएस ऑबजरवर के साथ काम करना बड़ा चुनौती पूर्ण है। दरअसल जिले में होने वाले सम्पूर्ण चुनाव के प्रोसिजर पर ऑबजरवर की कड़ी निगाह होती है और जिला निर्वाचन अधिकारी यानी जिला कलेक्टर की सांसे उसकी हर निगाह पर अटकी होती है। विधान सभा में हर विधान सभा के लिए अलग अलग ऑबजरवर होते है इसके साथ ही एक ऑबजरवर जो कि आईआरएस अधिकारी होते है वे उम्मीदवार के द्वारा किये जा रहे खर्च पर नजर रखते है। कई विडियोग्राफर एसएसटी व अन्य अधिकारियों के साथ तैनात होते है जो प्रतिदिन उम्मीदवार द्वारा की जाने वाली रैली, स्टार प्रचारको के भाषण, रैली में आने वाली गाड़ियो आदि कि रोज रिकार्डिंग करते है। उम्मीदवारो द्वारा समय समय पर चुनाव खर्च का विवरण दिया जाता है एवं एक्सपेन्डिचर ऑबजरवर इसका मिलान उक्त विडियो रिकार्डिंग, समाचार पत्रो की कटिंग व इस कार्य में ड्यूटी दे रहे अधिकरियों की जानकारी से मिलान कर के अप्रूव करते है या फिर उसका अपने स्तर से निर्धारण करते है।
चुनाव की घोषणा होने के पहले ही जिले में मौजूद ईवीएम की कलेक्टर कार्यालय में ईवीएम हेतु बने स्ट्राँग रुम चेकिंग शुरु हो जाती है जो विज्ञान के प्रोफेसर, इंजिनियर ऐसे अधिकारियों को ईवीएम चेकिंग की लिए ड्यूटी पर लगाया जाता है जो लगभग एक सप्ताह में सारी ईवीएम चेक करके जो ईवीएम बराबर चल रही उसकी रिपोर्ट कलेक्टक को देते है एक एडीएम स्तर के अधिकारी हमेशा इस कार्य की निगरानी करते है। अगर जिले की आवश्यकता से ईवीएम कम है तो रिक्विजिशन भेज कर समय से पहले ही आपूर्ति की जाती है । इसके बाद चुनाव घोषणा होने पर फिर एक बार सारी ईवीएम चेक करते है उसकी बेटरी वगैहर रिप्लेस करते है और मॉक पोल करके चेक की जा ती है। यह प्रक्रिया ऑबजरवर की निगरानी में की जाती है वे कई बार स्ट्रांग रुम में आते है और रेंडम मशीन खुदके सामने चेक करते है।

                                   

         
                                    


हर ईवीएम का एक स्पेसिफिक नम्बर होता है जैसा सब जानते है दो यूनिट होती है एक जिससे मत डाला जाता है और एक कंट्रोल यूनिट जिससे मत रिलिज किया जाता है दोनो मशीने स्पेशल केस में रखी जाती दोनो पर एक ही स्पेसिफिक नंबर होता है जोकि मशीन की पहचान होती है। आजकल इसमे वीवीपेट भी जुड़ गयी है और अब कुल तीन यूनिट होती है। ये सारी ईवीएम चुनाव में मतदान सामग्री वितरण केन्द्र पर बने स्पेशल स्ट्रांग रुम जिसकी सभी खिड़कियाँ रोशनदान व दरवाजे ईंट सीमेंट से चिनवा दिये जाते है सिर्फ एक दरवाजा छोड़कर जिस पर जो लाक लगाया जाता है।

                                      


उस पर जिला निर्वाचन अधिकारी और जितने उम्मीदवार होते है उन सब पार्टियों के उनके अध्यक्ष द्वारा नामांकित प्रतिनिधियों के दस्तख्त से सील लगायी जाती है जो उस दरवाजे पर चस्पा की जाती है। जिला अधिकारी द्वारा जिले के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों की सूची चुनाव में ड्यूटी लगायी जाने के लिए हर विभाग से मांगी जाती है। हमेशा जिले की एक तहसील में कार्यरत अधिकारियों की ड्यूटी दूसरी तहसील में लगायी जाती है। जिला निर्वाचन अधिकारी, सभी ऑबजरवर एवं अन्य सभी उच्चाधिकारियों की निगरानी में और सभी उम्मीदवार या उनके प्रतिनिधीयों के समक्ष एक स्पेशल सॉफ्टवेयर से चुनाव अधिकारियो की पोलिंग पार्टियां बनायी जाती है यह बिल्कुल रेंडम होता है और किस अधिकारी के साथ कौन सा दूसरा कर्मचारी या अधिकारी जायेगें यह कम्यूटर सॉफ्टवेयर से होता है। इसके बाद कौन सी पार्टी किस बूथ पर जायेगी यह भी चुनाव आयोग द्वारा निर्मित रेंडम सॉफ्टवेयर की मदद से सबके समक्ष किया जाता है। इस सबके बाद सभी अधिकारियों को सामग्री वितरण केन्द्र पर उनके पोलिंग बूथ पर जाने से संबन्धित आदेश व चुनाव कार्य की सारी सामग्री जिसमें मुख्यतः आपकी ईवीेएम व वीवीपेट मशीन स्ट्रांगरुम से निकाली जा कर वितरित की जाती है। कौन सी मशीन किस पार्टी को दी जाना है किस बूथ पर जायेगी यह भी रेंडम सॉफ्टवेयर से पहले ही तय किया होता है।
अब सवाल उठता है कि इतनी चेकिंग के बाद भी ईवीएम मशीन की शिकायत की काम नही कर रही क्यो आती है। आपने देखा होगा कि ज्यादातर ईवीएम मशीने सुबह ही चालू नही हो पाती एवं इस कारण से बूथ पर वोटिंग देर से शुरु होती है। इसका 75-80 प्रतिशत कारण यह है कि जो प्रिसाईडिंग ऑफिसर है उसने ट्रेनिंग के समय ठीक से मॉक पोल करना व मशीन को सील करना नही सीखा। ज्यादातर पोलिंग पार्टी के दूसरे सदस्य जो पहले चुनाव करा चुके है एवं ईवीएम मशीन को पार्टी प्रतिनिधियों के सामने ठीक से सील कर देते है, लेकिन जब पोलिंग पार्टी पूरी नयी होती है उसमें यह समस्या हमेशा आती है मैंने जोनल ऑफिसर के रुप में कई बार इस समस्या का सामना किया है अक्सर जब मैं अपने क्षेत्र में एक दिन पहले ही जान लेता था कि मेरी सभी पोलिंग पार्टियां अपने काम में दक्ष है या नही और जो कमजोर होते थे मैं सबसे पहले उनके पोलिंग बूथ पर पहुँच कर मॉक पोल करवाने और मशीन सील करने मे उनकी मदद कर देता था। ज्यादातर अधिकारी चुनाव ड्यूटी से डरते है और घबराहट में भी सही काम नही कर पाते।

चुनाव के बाद सभी पोलिंग पार्टी के सदस्य निर्धारित बस जो उनको पोलिंग बूथ पर छोड़कर आती है उसी से वापिस आते है बस में उस रुट के लगभग 10-12 पोलिंग पार्टियां होती है जो एक साथ सामग्री कलेक्शन सेंटर पर आती है। चुनाव पर प्रिसाईडिंग ऑफिसर व पोलिंग पार्टी व पूरी चुनाव प्रक्रिया पर नजर रखने के लिए माइक्रो ऑबजरवर की ड्यूटी भी लगायी जाती है जो कि सेंट्रल गवरमेंट के अधिकारी होते है। वे दिन भर पोलिंग बूथ पर बैठते है और सारी चुनाव की प्रक्रिया पर नजर रखते है वे अपनी रिपोर्ट एक निर्धारित फार्म में सीधे ऑबजरवर को देते है।


जब सामग्री और ईवीएम मशीन जमा की जाती है तो देखा जाता है कि ईवीएम मशीन पर सील वगैरह ठीक से लगी है या नही। सील के टूटे पाये जाने पर उस बूथ पर फिर से चुनाव करवाने की सिफारिश ऑबजरवर द्वारा चुनाव आयोग को उसकी रिपोर्ट में की जाती है। ईवीएम मशीन ले जाने के लिए सामग्री संकलन केन्द्र से स्ट्रांगरुम तक एक विशेष कॉरिडोर बनाया जाता है जिससे कर्मचारी ईवीएम मशीन को सीधे ले जाकर स्ट्रांग रुम में रखते है। जब सारी ईवीएम मशीन जिले के सारे पोलिंग बूथ की जमा हो जाती है तो जिला निर्वाचन अधिकारी एवं लगभग सभी अन्य अधिकारियों सारे पोलिटिकल पार्टियों के प्रतिनिधियों एवं सेंट्रल ऑबजरवर के सामने स्ट्रांग रुम लॉक करके सील कर दिया जाता है। स्ट्रांग रुम के चारो तरफ थ्री टियर सिक्यूरिटी होती है जिसमें पेरा मिलिटरी एवं लोकल पुलिस दोनो शामिल होती। सिक्यूरिटी न सिर्फ स्ट्राग रुम के दरवाजे के बाहर बल्कि उस बरामदे एवं बिल्डिंग जहाँ स्ट्रांग रुम है उसके बाहर भी होती हे।




इसके बाद जिस दिन काउंटिंग होना है उसी दिन सबकी मौजूदगी में स्ट्रांग रुम के दरवाजे खुलते है। सभी पोलिटकल पार्टियोे के प्रतिनिधी तसल्ली करते है कि उनके दस्तख्त वाली सील ठीक है या नही उसके बाद दरवाजा खोला जाकर हर तहसील के काउंटिंग रुम में उस तहसील की ईवीम पहुँचायी जाती है। जितनी टेबल काउंटिंग रुम में होती है एक बार में उतनी ही ईवीएम मशीन पहूँचायी जाती है। काउंटिंग रुम में कम से कम दो तरफ जाली लगा कर पोलिटिकल पार्टियों के प्रतिनिधियों द्वारा काउंटिग कार्य देखने के लिए व्यवस्था की जाती है उक्त कक्ष में पोलिटकल पार्टी के अध्यक्ष जिनको काउंटिंग में उपस्थित रहने का पत्र पहले से जारी करते है वे उस जाली के बाहर से सारी काउंटिंग की प्रक्रिया देखते है।




हर राउंड की काउंटिंग के बाद कक्ष में मौजूद नियंत्रण अधिकारी बोर्ड पर मतो की गणना लिखते है व चार्ट में एंट्री करते है। जिला निर्वाचन अधिकारी , ऑबजरवर सभी पूरे समय मौजूद रहते है एवं जीतने वाले उम्मीदवार को उसी समय प्रमाणपत्र जारी करते है।


चुनाव आयोग द्वारा विस्त़त नियम बनाये गये है जिनका अनुसरण कड़ाई से किया जाता है। हर प्रक्रिया पारर्दशी है एवं हर महत्वपूर्ण स्टेप पर या तो उम्मीदवार खुद या उनके प्रतिनिधी न सिर्फ मौजूद रहते है बल्कि हर स्तर पर उनके दस्तख्त भी लिये जाते है। इसके उपरांत भी अगर राजनितिक पार्टियां ईवीएम में गड़बड़ी की आंशका जताती है तो वे सिर्फ आपका ( वोटर ) का अपमान कर रही है।
मुझे गर्व है कि अपनी शासकीय सेवा में अनेक बार भारत के सबसे ज्यादा पारर्दशी, कठोर नियमो से युक्त प्रोफशनल चुनाव आयोग के तहत काम करने का मौका मिला। चुनाव कार्य में चुनाव आयुक्त से लेकर सबसे छोटा कर्मचारी निर्धारित टाईम लाईन में कुशलता से अपना सर्वोच्च देकर लोकतंत्र के पावन यज्ञ में अपनी आहुति देता है। राजनितिक दलो को यह याद रखना चाहिये चुनाव आयोग व उसकी प्रक्रिया पर अविश्वास यह उन सभी अधिकारियों और कर्मचारियों का भी अपमान है।

मंगलवार, 12 सितंबर 2017

#Who Killed Gauri Lankesh


गौरी लंकेश कर्नाटक की एक लेफ्टिस्ट फायर ब्रांड लेखिका थी। उन्होने शुरु में टाईम्स ऑफ इंडिया में काम किया तब उनकी शादी चिनानंद राजघट्ट से हुई वे भी पत्रकार थे दिल्ली में कुछ समय तक साथ काम भी किया। पर शादी ज्यादा चली नही और वे बेंगलुरु आ गयी उस समय वे संडे मेगेजीन में संवाददाता का काम कर रही थी।
 उनके पिता पी लंकेश भी एक जाने माने कन्नड़ जरनलिस्ट थे और लंकेश  के नाम से एक टेबलॉयड निकालते थे। गौरी लंकेश ने  सन 2000 में उनकी मृत्यु के बाद भाई इंद्रजीत लंकेश के प्रकाशक मुद्रण व व्ययसायिक दायित्व संभाले और गौरी लंकेश ने संपादन का कार्य किया। यह कुछ ज्यादा दिनो तक नही चला क्योंकि लंकेश पत्रिका की दोनो भाई बहन की विचारधारा में अत्यधिक फर्क होने से पत्रिका में रिपोर्टिंग को लेकर दोनो में अक्सर विवाद होते रहते थे सन 2005 में दोनो भाई बहन में अच्छी खासी लड़ाई हुई जिसमें पोलिस रिपोर्ट तक हुई एवं प्रेस कांफ्रेस कर इंद्रजीत ने अपनी स्थिती साफ की। इसके बाद लंकेश पत्रिका से अलग होकर अपनी गौरी लंकेश अपनी पत्रिका गौरी लंकेश पत्रिके के नाम से अलग से निकालने लगी।

गौरी लंकेश अपनी एक्स्ट्रीम एंटी राईट विचारधारा के लिये जानी जाती है। वह बगैर लाग लपेट के किसी के लिए कुछ भी लिख सकती थी बोल सकती थी और जब आप ऐसा करते है तो जाहिर है आप के दुश्मन दोस्तो से ज्यादा होते है। आरएसएस और बीजेपी की तो कट्टर दुश्मन थी ही उनके लिखे लेख कन्नड़ भाषी लोगो में बहुत पंसद किये जाते थे। लेकिन उनकी विचार धारा आरएसएस ब्राह्मण वाद के खिलाफ स्पष्ट थी और ऐसा बताया जाता है कि केरला कर्नाटक में किसी आरएसएस वाले की हत्या होने पर वह किसी न किसी बहाने सोशल मिडीया पर अपनी पत्रिका में पोस्ट डालकर न सिर्फ ऐसी हत्याओं का समर्थन करती बल्की खुशी भी जाहिर करती।


गौरी लंकेश नक्सली विचारधारा की तरफ रुझान रखती थी लेकिन वे सक्रिय रुप से  नक्सलियों को मुख्य विचारधारा में लाने की कोशिश करती रहती थी। उनके प्रयासो से कुछ नक्सलियों ने सरेंडर भी किया। जिस दिन उनकी हत्या हुई उस दिन उनके द्वारा दिन में किये गये दो ट्वीट बहुत महत्वपूर्ण है जिसमें वे अपने ही साथियों से गुजारिश कर रही है कि हम लोग गलती कर सकते है जैसे की फेक पोस्ट को शेयर करना. हम सब सावधान रहे और एक दूसरे को एक्सपोज न करें.....शांति कामरेड्स. दूसरा ट्वीट कुछ ऐसा है मैं ऐसा क्यों महसूस कर रही हूँ कि हममें से कुछ आपस में ही लड़ रहे है? हम हमारे सबसे बड़े शत्रु को जानते है क्या हम सबको उस पर ध्यान नही लगाना चाहियें. दोनो ट्वीट बताते है कि गौरी लंकेश अपने ही साथियों के कारण परेशान थी और काफी तनाव में थी। 

वो जानती थी कि जो कुछ वे कर रही है उससे उनकी जान को खतरा है। खासतौर से गौरी लंकेश नागाराजू, नूर जुल्फिकर श्रीधर, शिवू, रिजवान बेगम और कल्पना जैसे नक्सलियों से हिंसा का रास्ता छुड़ाने में कामयाब रही थीं। इसे लेकर ही उन्हें लगातार फोन पर धमकियां मिल रही थीं। विक्रम गौड़ा अपने हाथ से एक एक कर नक्सली साथियों को फिसलता देख कर गौरी लंकेश से काफी नाराज़ था। विक्रम गौड़ा केरल के उड्डुपी जिले का रहने वाला था जहाँ तमिलनाडु में नक्सली कमान कुप्पुस्वामी के हाथ में थी कर्नाटक का नक्सली प्रमुख विक्रम गौड़ा था। गौरी लंकेश के भाई का कहना है कि नक्सली लोगो से उसे धमकियां मिल रही थी।

खुद सिद्दरमैया ने बतायाकि गौरी लंकेश उनकी हत्या के दो तीन दिन पहले उनसे शाम के समय उनके बंगले पर मिली थी। बताया जाता है कि यह मुलाकात लगभग दो घंटे की थी। क्या यह सामान्य मुलकात थी या फिर गौरी लंकेश किसी खास काम से गयी थी। गौरी लंकेश ने वो कर्नाटक के कांग्रेसी विधायक डीके शिवाकुमार के खिलाफ एक मामले में जांच कर रही हैं। डीके शिवाकुमार वही विधायक हैं, जिनके रिसॉर्ट में गुजरात के कांग्रेसी विधायक रुके थे। उन पर सीबीआई के छापे भी पड़ चुके हैं। इसके अलावा कर्नाटक सरकार और मुख्यमंत्री सिद्धरमैया से जुड़े मामले भी गौरी लंकेश की पत्रिका में छपने वाले थे। यह जानना दिलचस्प होगा कि कर्नाटक मुख्यमंत्री सिद्दरमैया के बंगले से जब गौरी शंकर निकली तो किसी डील तय हो जाने से खुश थी या उनका चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था। इस बात को वहाँ लगे सीसीटीवी फूटेज या उस वक्त ड्यूटी पर तैनात कर्मियों से जाना जा सकता है। मेरी समझ से मुख्यमंत्री बंगले के सीसीटीवी फूटेज का उस दिनांक का चेकिंग और कर्मचारियों का इंटरोग्रेशन होना बहुत जरुरी है।

लेकिन असली कातिल कौन है यह लाख टके का सवाल है। जब मैं सिलसिलेवार यह फेक्ट्स नरेट कर रहा हूँ तो मुझे ऐसा लग रहा है जैसे की कोई सस्पेंस फिल्म चल रही है जिसमें मुख्य किरदार की हत्या करने के हर किसी के पास कारण है। जाहिर है कि जिस किसी ने हत्या का षड़यंत्र रचा उसने इसके लिए पेशेवर हत्यारों को चुना ऐसा हम सब समझते है। अब जरा 5 सितंबर की शाम 7 बजे का घटनाक्रम देखे। गौरी लंकेश अपने घर राजराजश्वेरी नगर की और जा रही है कुछ कहते है कि उसने अपनी माँ को फोन कर कहा कि कुछ लोग मेरा पीछा कर रहे है। कन्हैया ने भी कहा कि गौरी लंकेश ने उसे कहा था कि कुछ सदिंग्ध लोग उसके घर के आसपास चक्कर लगाते देखे है।


 इसिलिए उसने हत्या के महज दो दिन पहले सीसीटीवी लगवाए थे जिसमें घर के एंट्रेंस व बरामदे में ही दो केमरे थे।




 घर के दरवाजे डबल थे याने एक जाली वाला और एक रुटीन फ्लश डोर। लगभग 7.30 शाम गौरी लंकेश अपने घर के आगे कार रोकती है यह स्पष्ट नही है कि उसने बाउंड्रीवाल का लोहे का गेट खोल कर कार अंदर रखी फिर या फिर कार बाहर छोड़कर और सदिंग्ध शख्सों को देख भाग कर दरवाजा खोलने का प्रयास किया। हत्या के तुरंत बाद की तस्वीरे बता रही है कि सफेद कार बाहर खड़ी है। लेकिन उसको पुलिस ने निकाल कर बाहर रखा यह भी हो सकता है। पुलिस का गैर पेशवराना तरीका शुरुआती तस्वीरों में साफ दिख रहा है पास पड़ोसी कुछ अधिकारी पुलिस के जवान कम से कम पचास से अधिक लोग घर के परिसर में आते जाते दिख रहे है। जबकि क्राइम सीन को तुरंत सील करना था। 







हमारे यहाँ क्राईम का एक हालिया सीन क्रिएट करना एवं संभावित अपराधियों की प्रोफाइलिंग करना बहुत दूर की बात है अभी हमने उपर तस्वीरों में देखा हर आदमी गौरी लंकेश के घर के परिसर में इस तरह आ जा रहा है जैसे  उसी का घर हो जबकी वहाँ हत्या जैसा गंभीर अपराध घटा है। 7 गोलियों में से तीन के खोल ऐसे ही इन लोगो के पैरो तले दब गये होगें। अब पता लगाना मुश्किल है कि तीन लोगो में से कितने लोग गोली चला रहे थे और गौरी लंकेश को एक शूटर की तीन गोलियाँ लगी या अलग अलग शूटरो की गोलियाँ लगी। गोलियों के खोल से यह भी पता चलता कि गोलियाँ देशी पिस्टल से चलायी गयी है या आथेंटिक रिवाल्वर या पिस्टल से 9 mm थी या फिर .33 या .35 रिवाल्वर थी। अब पुलिस कह रही है कि तीन शख्स थे हेलमेट लगाये हुए एक शख्स पहले से खड़ा था दूसरे दो स्कूटी से आये थे। पहले वाला कितनी देर से खड़ा था क्या सारे समय वह हेलमेट लगाये घूम रहा था अगर कोई ऐसा करता तो निश्चित तौर से किसी पड़ोसी ने देखा होता। मेरी समझ से स्कूटी लेकर कोई पेशेवर सुपारी कातिल हत्या करने नही जाएगा। हर पेशेवर हत्यारा जानता है कि गेट अवे व्हीकल विश्वसनीय एवं फास्ट होना चाहिये स्कूटी वाले को कोई भी पीछा कर पकड़ सकता है। दूसरी बात की कुल सात गोलियां चली जिसमें तीन गौरी लंकेश को लगी चार बरामदे की दीवार या दरवाजो में पेवस्त हो गयी। पुलिस के मुताबिक चार खाली कारतूस के खोल मिले। फिर बाकी तीन कारतूस के खोल कहाँ गये। अभी कहा जा रहा है कि हत्या में देशी पिस्तोल का इस्तेमाल हुआ है यह कुछ ऐसा ही जैसी दाभोलकर, पनसेरे और कलबर्गी की हत्याओं में हुए थे। 

यह अजीब बात है कि हत्यारों को  सात गोलियाँ चलानी पड़ी जाहिर है जब चार गोलियाँ चूक गयी तभी बाकी की तीन चलायी गयी इसका मतलब है कि उनमें से एक नौसिखिया था और पहले गोली चलाने का निर्देश उसको मिला होगा लेकिन वह घबरा गया और उसकी एक भी गोली निशाने पर नही लगी फिर उनमें से एक जरुर पेशेवर होगा जिसने ठीक से निशाने पर गोली चलायी। सिर और सिने में लगी गोली इस बात का सबूत है कि यह जरुर पेशेवर शूटर था। मुझे नही लगता तीसरे शख्स ने गोली चलायी होगी। तीन लोगो की थ्योरी कुछ जम नही रही है फिर भी यदि कोई तीसरा आदमी था तो वह बेकअप के लिए होगा और निश्चित रुप से किसी फोर व्हीलर में होगा क्योंकि आमतौर से खड़ी कार में चुपचाप बैठे शख्स पर किसी का शक नही जाता और स्कूटी पर तीन लोग भाग नही सकते। यदि वो आगे चल कर किसी फोर व्हीलर में बैठे तो यकीनन स्कूटी या बाइक किसी आस पास के इलाके में लावारिस मिलनी चाहिये या फिर किसी नजदीक के पार्किंग में। ऐसी कोई लावारिस व्हीकल यदि हो तो जाहिर है चोरी का होगा लेकिन फिर भी पुलिस अगर बेवकूफी न करे तो हत्यारों के फिंगर प्रिंट्स उठाये जा सकते है। फिंगर प्रिंट्स गौरी लंकेश की कार और बरामदे से भी उठाये जा रहे थे पर वहाँ बहुत से लोगो की मौजूदगी से वे कंटेमिनेटेड हो गये होगे और आरोपियों को सजा दिलाने में कामयाब नही होगे। तीन शख्स अगर है तो एक जरुर बेकअप होगा किसी कार में आसपास लगभग 30 से 40 मिनिट उस इलाके में रहा होगा। अगर किसी पड़ोसी या फिर कामवाली बाई नौकर, कोई खेलकर आता हुआ बच्चा यदि उसने कार को नोटिस किया होगा तो कुछ कामयाबी हाथ लग सकती है। जो दो शख्स स्कूटी पर हेलमेट लगाये हुए थे उनमें से एक 18-20 साल का लड़का दूसरा 30 साल के आसपास का एक्सपिरिंयस्ड शूटर होना चाहिये। ऐसे सभी हिस्ट्री शीटर की तलाश करना चाहिये जो इस प्रकार के प्रोफाइल में फिट बैठते हो। बेक अप वाला शख्स भी लगभग 30-35 साल के एज ग्रुप में होना चाहियें हो सकता है कि उसी ने हत्यारों को हायर किया हो इसलिए ये शख्स ऐसा होना चाहिये जिसके कान्टेक्ट व्हाइट कॉलर लोगो से और अपराध जगत दोनो में ही यह फ्रीली मूव करता हो।
यदि गौरी लंकेश के नक्सली साथियों का ही यह काम है तो मेरी समझ से उनको किलर हायर करने की जरुरत नही है उनके इसमें ही कई लोग ऐसे होगे जो बड़े इत्मीनान के साथ ऐसे काम को अंजाम दे सकते है। आधुनिक हथियारों की उनके पास कमी नही है। जिस तरह से ताबड़तोड़ 7 गोलियाँ चलायी गयी है उससे मुझे लगता है कि गोलियाँ किसी अंग्रेजी पिस्टल या रिवाल्वर से चली है। दो शूटरों ने लगभग 10 फीट की दूरी से गौरी लंकेश पर गोली चलायी क्योंकि हेलमेट पहने संदिग्ध व्यक्तियों को पास आता देख कर गौरी लंकेश कुछ न कुछ एक्शन लेती। लेकिन दोनो शूटरो में से एक ने पहले गोली चलायी जो उसे नही लगी गौरी लंकेश भाग कर घर के दरवाजे को खोलने का प्रयास कर रही थी लेकिन शूटर अब उनके नजदीक पहुँच गये थे और निशाना सही बैठा। लेकिन फिर भी मर्डर पाईंट ब्लैंक रेंज से नही किया गया। जब गौरी लंकेश दरवाजे के पास होगी तब शूटर बरामदे के जस्ट बाहर ही होना चाहिये।
अगर नक्सलियों ने यह वारदात की है तो उनके पास इसको करने के लिए मोटिव, हथियार और मेन पॉवर सब आसानी से था सिर्फ उनको बेक अप के लिए बेंगलुरु में रहने वाला शख्स चाहिये था जो अच्छी तरह से रास्तो से वाफिक हो। जहाँ तक मुझे जानकारी है कर्नाटक पुलिस भी इसी थ्योरी पर काम कर रही है।

अभी बीजेपी, आरएसएस अपने केरियर के शिखर पर है वो ऐसी आलोचनाओं से डरते भी नही है और बरदाश्त करने की ताकत ज्यादा है फिर भी अगर वे लोग ऐसा करना चाहे तो उनसे सहानुभूती रखने वाले ऐसे हार्ड कोर लोग है वे संसाधन भी जुटा सकते है लेकिन यह काम एक दो दिन का नही है और यह लगभग एक-दो महीने की रेकी प्लानिंग से किया गया काम है। पुलिस चाहे तो ऐसे हार्ड कोर एक्टीविस्ट की पिछले दो तीन महीनो की एक्टीवीटी खंगाल सकती है जोएक दो महीने से बेंगलुरु में रह रहे हो।
 गौरी लंकेश कांग्रेस की एमएलए शिवराजा पर भ्रष्टाचार के सबंध में कुछ काम कर रही थी। सिद्दरमैया सरकार के भी कुछ मुद्दे थे गौरी शंकर दो तीन पहले सिद्दरमैया से मिलने उनके बंगले पर भी गयी थी और दो तीन दिन से यानी 5 सितंबर के दो तीन दिन पहले से ही वो तनाव में थी सुरक्षा के प्रति चिंतित भी थी और गौरी लंकेश के साथ वही हुआ जिसकी उसे आशंका थी। शिवकुमार एक सक्षम तेज तर्रार पैसे वाला और जमीन से खड़ा हुआ एमएलए है। उनमें यह ताकत है और पैसा संसाधन मेन पॉवर सब कुछ है और ऐसे राजनितिक माहौल में जिसमें आरोप बीजेपी और आरएसएस पर लगने वाला है। लेकिन अगर यह पोलिटिकली मोटिवेटेड मर्डर है तो हम अगर कातिलों को पकड़ भी ले असली षड़यंत्रकारियों तक कभी पहुँच नही पाएगी। 


  

इंद्रजीत के पास ऐसा कोई कारण नही कि वो अपनी बहन के साथ ऐसा करें। फिर इंद्रजीत के लिए एक इनविड्युल के बतौर शूटर हायर करना केश पेमेंट का बंदोबस्त करना कठिन काम है। इंद्रजीत जानता है कि हत्या करने में किन लोगो का हाथ हो सकता है इसलिए एंटी मोदी मिडिया के लाख चिल्लाने के बावजूद भी उसने एक बार भी बीजेपी का नाम नही लिया और सीबीआई जाँच की मांग कर रहा है अगर उसको जरा भी शक होता कि इसके पिछे बीजेपी या आरएसएस का हाथ है तो वो कभी सीबीआई जाँच की मांग नही करता क्योंकि केन्द्र में बीजेपी की सरकार है और ऐसी स्थिति में जाँच में ढिलाई तो की ही जा सकती है उसके उलट इंद्रजीत को कांग्रेस की लोकल गवरमेंट और पुलिस पर कम विश्वास है हाँलाकि सिद्दरमैया ने लोकल एसआईटी गठन की है पर शुरुआत में ही आधे सबूत तो खो ही चुके है।

जो भी हो गौरी लंकेश एक खूबसूरत शख्सि़यत थी खास बात यह थी कि वे जानती थी कि जो कुछ वे कर रही है उसका अंजाम खतरनाक हो सकता है ऐसे अजांम की उनको आशंका भी थी। लेकिन फिर भी वे जिद्दी थी और मरते दम अपनी बात पर अड़ी रही अपनी विचार धारा से कभी समझौता नही किया। ऐसे लोग दुनिया में कम ही होते है और अक्सर जल्दी चले भी जाते है।
अब सारे तथ्य आपके सामने है आप ही फैसला कर सकते गौरी लंकेश का कौन कातिल है।
मेरी विनम्र श्रद्धांजलि

बुधवार, 1 मार्च 2017

गुरमेहर, क्या है पीछे ?

दिल्ली देश की राजधानी है इसका वो इलाका जो लुटियन ने बसाया था देश की दिशा तय करता है। जैसे मुम्बई में नौजवान फिल्म सितारा बनने का सपना लेकर जाते है वैसे ही दिल्ली यूनिवर्सिटी और जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी में हिन्दुस्तान के कौने कौने से 18-19 साल के छात्र- छात्राएं ब्यूरोक्रेट्स या छात्र राजनीति से राजनीति में अपनी जगह बनाने की लालसा लिए आते है।




             आखिर दिल्ली के कॉलेजो में क्या है फिर वह चाहे श्री राम कॉलेज हो या किरोड़ीमल या फिर रामजस हो या सेंट स्टीफेन कॉलेज और लड़कियों के लिए तो देश का सबसे मशहूर  लेडी श्री राम कॉलेज लिस्ट बहुत लम्बी है पर एक खास बात है जो दिल्ली के कॉलेजो के देश के दूसरे कॉलेजो से अलग करती है वो है निरंतर बहस जो अलग अलग विषयो पर रात दिन कही न कही होती रहती है। नये विचार, बुद्धिजिवियों के साथ इंटरएक्शन यह सब लगभग सभी छात्र और प्रोफेसर्स इन ब्रेन स्टार्मिंग बहसो का हिस्सा होते है और छात्रो की पकड़ कॉलेज के 5-6 साल के समय में लगभग ब्यूरोक्रेसी या नेतागिरी के सभी विषयो पर गहरी होती जाती है।
देश की मशहूर जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी और दिल्ली यूनिवर्सिटी में एक लॉबी और भी है यह लोग सिनियर प्रोफसर्स, रीडर्स और अन्य महत्वपूर्ण पदो पर सालो से काम कर रहे है और यह समझते है कि वो जो देश व देश की जनता के लिए समझते और सोचते है वही सही है, देश के लिए भी और व्यक्तिगत हित के लिए भी। इन लोगो का ज्यादातर झुकाव लेफ्ट की ओर है लेकिन ये लोग जहाँ से फंड मिलते है उस ओर भी झुक जाते है। इन लोगो के साथ नामचीन एंकर, रिपोर्टर जैसे बरखा दत्त, राजदीप, रविश कुमार राणा अय्युब भी जुड़े है। इस लॉबी में आपको सिनियर ब्यूरोक्रेटस् जो इन्ही संस्थानो से निकले है जज, आदि भी मिल जायेगे। ये लॉबी ऐसे स्टूडेंट्स को आइडेंटिफॉय करती है जो कि इनकी आइडियोलॉजी के नजदीक हो आसानी से इनके मोल्ड में ढल जाये और ये लॉबी उनको भविष्य का नेता या ब्यूरोक्रेट बनाती है जो इनका कहना हमेशा मानते है। यह एक निरतंर प्रकिया है और हमेशा चलती रहती है कांग्रेस के शासन काल में जेएनयू अपनी पूरी आजादी में था और किसी भी प्रकार की गतिविधी पर वहाँ कोई रोक नही थी। कन्हैया भी ऐसी ही लॉबी और आइडियोलॉजी का हिस्सा था।






अब बात करे गुरमेहर कौर की, एक 18-19 साल की लड़की ने पजांब के जलंधर से लेडी श्री राम कॉलेज में एडमिशन लिया। गुरमेहर के पिता शहीद थे लड़की के कुछ पोलिटिकल एम्बिशन हो सकते थे यह बात लॉबी को समझ आ गयी कि गुरमेहर के पिता की शहादत को केश किया जा सकता है और कभी भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। गुरमेहर को कल्टीवेट किया गया। शायद गुरमेहर राम सुब्रमण्यम के संपर्क में उनके फेसबुक पेज वॉइस ऑफ राम से आयी और राम सुब्रमण्यम #प्रोफाइलफारपीस कम्पेन चला रहे थे उसके लिये लगभग 9-10 महिने पहले गुरमेहर का एक विडियो राम सुब्रमण्यम ने वॉइस ऑफ राम नाम के अकाउंट से यू टूयब पर डाला जिसमें गुरमेहर प्ले कार्ड से बता रही है कि जंग की विभिषिका में पिता मारे गये थे और पाकिस्तान से दोस्ती की जानी चाहिये, इसमें भारत सरकार के केलिबर पर भी सवाल उठाया गया था। 


     इस विडियो के साथ ही गुरमेहर अपनी ट्वीट के माध्यम से राणा अय्युब के सम्पर्क में अायी। राणा अय्युब ने बरखा दत्त को कहा कि इस लड़की को देखे यह पीस का चेहरा हो सकती है। बरखा दत्त ने गुरमेहर के ट्वीट एनडीटीवी के ट्वीटर हेण्डल से रिट्वीट किये। यह बात मई 2016 की है।




फिर गुरमेहर कविता कृष्णन के साथ भी किसी कार्यक्रम में मंच पर आसीन नजर आयी। एक 20 साल की लड़की ने ऐसा क्या काम किया कि मंच पर नामचीन हस्तियों के साथ नजर आयी। लेकिन अब गुरमेहर बड़ी बड़ी हस्तियों के बीच थी जो उसको कुर्बानी के बकरे की तरह किसी खास दिन के लिए तैयार कर रहे थे। गुर मेहर अब आप पार्टी के कितने नजदीक थी यह आपको उसकी इस ट्वीट से पता चलेगा जो उसने गोवा में केजरीवाल के प्रवास के दौरान किया था।




रामजस कॉलेज की जो घटना हुई इसकी स्क्रिप्ट इन्ही लोगो ने बड़ी सफाई से लिखी थी। इन लोगो को पता था कि जब रामजस कॉलेज के सेमिनार में उमर खालिद को आंमत्रित किया जायेगा तो एबीवीपी चुप बैठने वाली नही है। और ठीक वैसा ही हुअा, उमर खालिद का नाम आते ही एबीवीपी ने हल्ला मचा दिया और फिर रामजस कॉलेज में जो हुआ उसकी कहानी आप जानते ही है। गुरमेहर ने जब वॉक आउट किया तो उसने कहा कि अगर कोई कुछ कहना चाहता है तो राम सुब्रमण्यम के हेण्डल पर ट्वीट करे।



ये राम सुब्रमण्यम कौन है?  राम सुब्रमण्यम एक एड फिल्म मेकर है जो 2013 दिल्ली विधान सभा चुनाव के समय विशाल ददलानी के मार्फत आप पार्टी के सम्पर्क में आया था।  दिल्ली विधानसभा चुनाव में इसने अरविन्द केजरीवाल के लिए एक एड फिल्म बनायी थी। जब 2014 में लोकसभा चुनावो में देश की आभिज्यात ल़ॉबी की सारी कोशिशो के बाद भी नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने जोरदार जीत हासिल की और वे प्रधानमंत्री बन गये इस लॉबी ने 2015 के विधानसभा चुनाव में अरविन्द केजरीवाल को जिताने के लिए सारी ताकत झोंक दी। तब राम सुब्रमण्यम आप पार्टी के मिडीया सेल में सक्रिय रुप से कार्य कर रहे थे। उस समय अरविंद केजरीवाल के लिए राम सुब्रमण्यम ने कई एड बनाये एवं मिडिया कम्पेन चलाया। ऐसा कहा जाता है कि अरविंद केजरीवाल की 2015 विधानसभा चुनाव की जीत में राम सुब्रमण्यम का बड़ा हाथ है और वे उनकी कोर टीम का एक अहम हिस्सा थे। आजकल राम सुब्रमण्यम हेण्डलुम पिक्चर्स के मालिक है और आज भी अरविंद केजरीवाल की कोर टीम के सदस्य है।
बिहार विधानसभा चुनाव के समय बीजेपी को हराने के लिए नयनतारा सहगल ने असहिष्णुता पर नाराजागी जताते हुए पुरुस्कार वापसी की घोषणा की एक के बाद एक नामचीन चेहरे कतार में आगये। देश में एक ऐसा माहौल बना दिया की बेचारे बिहारियों को समझ नही आया की बीजेपी को कहीं जीता दिया तो गलत न हो जाए। नतीजन बिहार बीजेपी हार गयी। अभी यूपी में चुनाव चल रहे है बीजेपी को चोंट पहुँचाने का इससे अच्छा मौका नही है। सब जानते है कि तीसरे, चौथे चरणो बीजेपी ने बढ़त हासिल कर ली है। अंतिम तीन चरणो में बीजेपी की बढ़त यदि कम हो गयी तो सपा कांग्रेस के अवसर अच्छे हो सकते है। इसलिए जैसे ही हंगामा हुआ मूक गुरमेहर एबीवीपी के खिलाफ प्ले कार्ड लेकर ट्वीटर पर खड़ी हो गयी। देखते ही देखते तस्वीर वायरल हो गयी और ट्वीटर पर युद्ध छिड़ गया जिसमें धीरे धीरे जो इसमें शामिल थे वे तो हवा देते ही रहे लेकिन जावेद अख्तर जैसे लोग भी बगैर सोचे समझे ट्वीट करने लगे।



 आजकल मिडिया का जमाना है ज्यादातर ऐस्टाब्लिश्ड मिडिया जैसे टाइम्स ग्रुप, एनडीटीवी, एबीपी न्यूज चैनल व इनके रिपोर्टर्स भी नरेन्द्र मोदी की आर्थिक नितीयों, उनके अख्खड़पन और खासतौर पर जो लूट इन बड़े लोगो ने मचायी हुई थी उसके तमाम रास्ते नरेन्द्र मोदी ने बंद कर दिये है इसलिए ये सख्त नाराज है और हम जानते है कि टीवी चैनल पर एक छोटी सी घटना का प्रसारण देखते ही देखते पूरे देश में फेल जाता है और उसका असर हर जगह होता है इसलिए ये लोग जानते है कि दिल्ली में एबीवीपी की गुंडागिर्दी वाली छवि जो कि एक मासूम 20 साल की लड़की जो बोल भी नही रही है प्ले कार्ड लेकर खड़ी है उसको परेशान कर रही है तो जनता की सहानभूती उसकी तरफ चली जायेगी। इस बात को लेकर मिडिया, कांग्रेस और आभिज्यात लॉबी के जावेद अख्तर, राणा अय्युब, सागरिका घोष, राजदीप, बरखा दत्त  जैसे लोग किरिण रिजिजू, सहवाग, हुड्डा जैसे लोगो को नही छोड़ रहे है। बरखा दत्त, राणा अयुब केजरीवाल इस गुरमेहर को लम्बे समय से कल्टीवेट कर रहे थे। और ठीक समय आने पर इन लोगो ने उसका इस्तेमाल अपने पे मास्टर (कांग्रेस, सपा ) के लिए किया।
 लेकिन सोशल मिडिया में तत्काल गुरमेहर के बारे में धीरे धीरे जानकारी आने लगी कि यह लड़की कोई मासूम निर्दोष लड़की नही है जिसे एबीवीपी वाले सता रहे है या धमका रहे है बल्कि एक शहीद की लड़की को इस लॉबी के शातिर लोगो ने बहला फुसला कर एबीवीपी के खिलाफ चेहरा बनाकर ठीक यूपी चुनाव के समय खड़ा किया है।
जहाँ ऐस्टाब्लिश्ड मिडिया की अपनी ताकत है वैसे ही सोशल मिडिया की भी अपनी एक ताकत है और उस पर लगातार देश की जनता इन सब महानायको की अच्छी खबर ले रही है एक अच्छी बात यह है कि अनुपम खेर, मधुर भंडारकर एवं सुधीर चौधरी एवं रोहित सरदाना जैसे लोग भी है जो ऐसे लोगो को सही जवाब देने में सक्षम है। कम से कम जो लोग सोशल मिडिया पर एक्टिव है वो इस पहलू के दोनो पक्षो को अच्छी तरह जान रहे है। यह हल्ला भी अपने आप 11 मार्च 2017 तक खत्म हो जायेगा और गुरमेहर की जगह इनके पास हल्ला मचाने कोई नया आ जायेगा।

शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

मोदी से इतनी नफ़रत ?

खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने नये साल 2017 के केलेंडर एवं डायरी पर नरेन्द्र मोदी की तस्वीर क्या छाप दी सारे देश में बवाल मच गया। मकर संक्राति के पावन दिन पर रविश कुमार, कमर वहीद जैसे पत्रकारो को गुल्ली डंडा खेलना छोड़कर खादी और ग्रामोद्योग आयोग के केलेंडर से गांधी के चले जाने पर ब्लॉग लिख कर मातमपूर्सी करनी पड़ी।



 फोर्बीस पत्रिका देश के 100 प्रभावशाली लोगो की एक सूची हर साल जारी करती है। जो कि देश की जनता के एक बड़े हिस्से के मत/विचार को प्रभावित कर सकते है या उसको बदल सकते है। रविश कुमार जैसे पत्रकार उनमें से एक है। और सवाल सिर्फ रविश कुमार का ही नही है राजदीप, बरखा दत्त, वीर संघवी, करण थापा सन 2014 के पहले के दोस्त वेद प्रताप वैदिक और ना जाने ऐसे कितने बड़े अंग्रेजी और हिन्दी मिडिया के पत्रकार है जो खासतौर से नरेन्द्र मोदी से नफ़रत करते है। ऐसे ही ममता बनर्जी, अरविन्द केजरीवाल, मणिशंकर अय्यर, कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, सोनिया गांधी जैसे नेता भी है जो नरेन्द्र मोदी से घोर नफ़रत करते है। यहाँ तक अभी अभी रिटायर हुए सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायधीश भी जब भी किसी मंच पर मौका मिला अपनी मोदी के प्रति नफ़रत छुपा नही सके। बाहर तो बाहर बीजेपी में भी उनके खुद के मार्गदर्शक एवं ऐसे साथियो की कमी नही है जो अंदर ही अंदर उनसे नफ़रत करते है गाहे बगाहे उनके व्यक्तव्य दर्शाते है कि ये लोग उनके मित्र कम दुश्मन ज्यादा है। ऐसे ही एक वर्ग बड़े बड़े ब्यूरोक्रेट्स व उद्योगपतियों का भी है जो दिल में छुरी जुबां पर शहद रखते है जब नरेन्द्र मोदी के बारे में बात करते है।
सार्वजनिक जीवन में जरुरी नही विभिन्न लोगो के विचार आपस में मिले लेकिन वे आमतौर पर एक दूसरे का सम्मान करते है यदि खिलाफ़ भी हो तो बहुत ज्यादा मेलजोल नही करेगें लेकिन सामान्य शिष्टाचार निभाते है। लेकिन नरेन्द्र मोदी के मामले में दूसरी बात है इसिलिए मैंने नफ़रत शब्द का इस्तेमाल किया है। देश में एक ऐसा अभिजात वर्ग (ELITE)  है इसमें सीधे सरल रविश कुमार भी है जो देश में नरेन्द्र मोदी जैसे व्यक्ति के हाथ में सत्ता को खतरनाक समझते है। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी यह कह चुके है कि नरेन्द्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना देश के लिए खतरनाक होगा। ठीक है भाई लेकिन नफ़रत क्यों ? जब ये लोग नरेन्द्र मोदी की तारीफ़ करते है तो भी ऐसा लगता है कि शहद में लपेट लपेट कर चाबुक मार रहे हो। इनके दिल में छुपा दर्द दिख ही जाता है फिर चाहे स्क्रीन ब्लेक कर प्राइम टाइम करे या माइम करके।
 नरेन्द्र मोदी की आलोचना जितनी होती है उतनी किसी नेता की होते हुए नही देखी. आप लोगो को नरेन्द्र मोदी के कपड़ो पर आपत्ति है कि वे हमेशा नयी साफ सुथरी जेकेट और कुर्ता पहनते है। हमारे देश में लोगो की याददाश्त बहुत कमजोर है खासतौर से राहुल गांधी की वो जब नरेन्द्र मोदी को सूटबूट की सरकार बोलते है तो यह भूल जाते है कि 1947-50 के सस्ते जमाने में उनके नाना जवाहर लाल नेहरु कपड़े पेरिस से धुल कर आते थे। जो आज मोदी जेकेट कहलाती है कभी वो नेहरु जेकेट कहलाती थी। राहुल गांधी खुद राल्फ लॉरेन या प्राडा की टी शर्ट पहनते जिसकी कीमत लगभग 12-15000 रुपये होती है तो कुछ नही।



 अगर नरेन्द्र मोदी मलिका साराभाई की मां की मौत पर शोक संदेश न लिखे तो लोगो को आपत्ति और राहुल गांधी मोबाइल से नकल कर शोक संदेश लिखे तो कोई बात नही। अगर सोशल मिडिया नरेन्द्र मोदी  कुछ लिख दे तो लोगो को आपत्ति, नरेन्द्र मोदी विदेश जाए तो आपत्ति अगर जापान में ड्रम बजा दे तो बजाय इस बात की तारीफ़ करने के उसमें भी आलोचना। नरेन्द्र मोदी ने जिस दिन पार्लियामेंट में पहली बार कदम रखा और माथा टेका उसमें भी भाई लोगो को तकलीफ़। आप मन्दिर में जाये माथा टेके प्रणाम करे या ना करे आपको कोई कुछ बोलता है क्या फिर आप क्यो हर बात में इतना हल्ला मचाते हो। कोई दिन ऐसा नही जाता कि आप लोग नरेन्द्र मोदी की किसी न किसी बात पर आलोचना नही करे। जीरो बेलेन्स पर 20 करोड़  जन धन अकाउंट खोले गये तो आपत्ति। किसी को इस बात की तारीफ़ करने के लिए दो शब्द नही है कि जो देश में हर दूसरे दिन स्केम की खबरे हम 2014 के पहले पढ़ा करते थे आना बंद हो गयी है। जो कुकिंग गैस हमको 20-25 दिन की वेटिंग में आती थी और जल्दी चाहिये तो ब्लेक देना होता था आज बुकिंग के बाद 4-5 घंटे में आती है। मुझे अच्छे से याद है कि जिस दिन कांग्रेस सरकार सन 2004 में बनी उसी दिन से कुकिंग गैस की किल्लत हो गयी। टूरिस्ट प्लेसेस गंदगी व प्लास्टिक की थैलियों से अटे पड़े होते थे आज ऐसी सब जगहो पर डस्टबीन है। वाराणसी के घाट गंदगी से टनो मिट्टी और कचरे के ढेर से लबालब पड़े रहते थे आज साफ सुथरे है वहाँ रोज कई कार्यक्रम होते है। 


2009

                                   2016

   रक्षा सौदे फटाफट हो रहे है कोई स्केम की खबर नही है। हाइ वे स्पीड से बन रहे है। सालो से रेल्वे और हाइ वे के बीच विवाद महिनो में सुलझ गये है। क्यों रविश कुमार आपके यहाँ खाना क्या सोलर से बनता है आपको कभी इस बात का अहसास नही हुआ की जो कुकिंग की गैस की नकली किल्लत बतायी जा कर ब्लेक में पैसा बनाया जा रहा था वो अब बंद हो गया एक आध ब्लाग उस पर भी लिख देते। या फिर हर साल सीजन में प्याज आलू टमाटर दाल के दाम बढ़ा कर काला बाजारी की जाती थी अब बंद हो गयी। दाल आज 60 रुपये किलो मिल रही है जब 200 रुपये किलो मिल रही थी उस समय तो आप दिल्ली के सदर बाजार चले गये थे दाल बेचने वालो से मिलने। जब सब्जियां सस्ती हो गयी तो समस्या है कि किसान को पैसा नही मिल रहा जब दाम ज्यादा थे तो बेचारा मिडिल क्लास लुट रहा था। क्या गज़ब है।
       अपनी जवानी की दहलीज पर नरेन्द्र मोदी एक आदर्श वादी व्यक्ति थे आरएसएस से जुड़ने के पर उनकी  समपर्ण व आज्ञाकारिता के चलते तेजी से आर एस एस की रेंक में उपर चढ़ने लगे मेरी समझ से तब वे अत्यंत विन्रम एवं अमहत्वाकांक्षी अपने आपको एक साधारण कार्यकर्ता मानने वाले व्यक्ति थे । अडवाणी एवं अटल बिहारी से नजदीकी के कारण अचानक गुजरात के सीएम की पोस्ट उनकी झोली में आ गिरी। 


        गुजरात सीएम बनते ही उनका सामना गोधरा कांड से हो गया और उनकी जुझारु प्रवृत्ति ने उनको जितने आरोप उन पर लगाये गये उनसे लड़ने की प्रेरणा दी। नरेन्द्र मोदी में एक कला है कि वे विपरित विषम परिस्थितियों से फायदा उठाते है और उसी को हथियार बनाकर वे स्थितियों को अपने पक्ष में कर लेते है यही उनकी जीत का राज है। और इसलिए जब वे तीसरी बार गुजरात सीएम बने तो फिर उन्होने अपना लक्ष्य तय कर लिया और समझ लिया कि उनकी डेस्टिनी उनको कहाँ ले जाना चाहती है। जब मणिशंकर अय्यर नें कांग्रेस के तालकटोरा अधिवेशन में पत्रकारो से बात करते हुए उनको चाय वाला कह कर कहा कि वे यहाँ आ जाये हम चाय बेचने के लिए नरेन्द्र मोदी को स्टाल उपलब्ध करा देगें तो नरेन्द्र मोदी ने उसको चाय पर चर्चा कर ऐसा भुनाया कि बीजेपी 270 से उपर सीट लोक सभा में ले लायी।
            आखिर ऐसा क्या कर दिया जो ये अभिजात वर्ग नरेन्द्र मोदी के इतना खिलाफ़ हो गया। क्या गुजरात दंगे 2002 ? दंगे तो देश में आजादी के बाद से होते ही रहे है ना ही ये सब लोग मुसलमानो के इतने खैरख्वाह है की उनके लिए लगातार 14-15 साल रोते रहे। 1984 के दंगो में जितने सिक्ख देश भर में मारे गये व उनकी संपत्ति लुटी गयी कोई राजदीप रवीश बरखा सोनिया राहुल को उसकी याद नही दिलाता ना किसी भी मंच पर उस घाव को कुरदने की कोशिश करता है जिस तरह से गुजरात दंगो की याद आज तक बार बार दिलाई जाती है। 1984 के दंगो को मैने नजदीक से देखा है उसका तो 10% भी गुजरात में नही हुआ फिर असल बात क्या है।




       दरअसल यह अभिजात वर्ग जो हमारी कल्पना से परे अमीर है और अचरज की बात यह है कि यह लोग खून पसीने की कमाई से अमीर नही बने है अंग्रेजी में जिसे कहते by virtue of their post and position उससे यह लोग अमीर बने है। ज्यादातर नौकरशाहो जैसे अरविन्द केजरीवाल,  निर्मला बुच या फिर राजदीप, बरखा, रवीश कुमार जैसे पत्रकार, तीस्ता सीतलवाड़, मनीष सिसोदिया, अन्ना हजारे, किरण बेदी जैसे समाज सेवी और सलमान खुर्शीद, कपिल सिब्बल जैसे नेता, प्रशांत भूषण, कामिनी जयसवाल जैसे वकील सेवानिवृत न्यायधीश इन सबके पास अपने अपने एनजीओ है कांग्रेस सरकार की पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप पालिसी के तहत ऐसे सभी लोगो ने अथाह पैसा इन एन जी ओ के माध्यम से प्रतिवर्ष उठाया है। एनजीओ के माध्यम से किस तरह पैसा बनाया जाता है उसकी एक बानगी है कि  सलमान खुर्शीद ने कानून मंत्री रहते हुए अपने एनजीओ जो उनकी पत्नी लुइस खुर्शीद चलाती है के लिए  विकलांग लोगो को ट्राईसाइकल, हियरिंग ऐड आदि देने के लिए 70 लाख रुपये मिले थे जिसमें से उस एनजीओ द्वारा 1 रुपये के भी उपकरण नही बांटे गये और फर्जी बिल से सारे का सारा पैसा हजम कर लिया गया। इसका खुलासा अरविंद केजरीवाल अपने इंडिया अंगेस्ट करप्शन आंदोलन के समय किया था।
          इन्ही लोगो के बड़े बड़े बिजनेस है जैसे कपिल सिब्बल की पत्नी देश के सबसे बडे कत्लखाने के मालिक है और बीफ के सबसे बड़े एक्सपोर्टर। ये सब हर प्रकार का लाभ उठाते टेक्स चोरी करते और कोई सरकारी विभाग इनकी तरफ आंख उठा कर नही देखता था। इस प्रकार हर साल ये लोग विभिन्न कार्यो के लिए लाखो रुपया सरकारी विभागो से लेते है और चुपचाप हजम कर जाते है किसी को ख़बर भी नही होती थी। ये  कांग्रेस सरकार इस प्रकार सब लोगो को संतुष्ट रखती थी। बरखा दत्त वीर संघवी जैसे पत्रकार इतने ताकतवर थे कि कांग्रेस सरकार में ये किसी को मंत्री बना सकते थे या हटा सकते थे। नीरा राडिया टेप इस बात के गवाह है और रतन टाटा जैसे आदमी को शर्मिंदा होने से बचने के लिए नीरा रा़डिया टेप सार्वजनिक न होने देने के लिए सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी पड़ी थी। यही नही सुप्रीम कोर्ट के जस्टीस, चीफ सेक्रेट्री,  चुनाव आयुक्त, सीएजी के लेखा नियंत्रक जैसे पदो से रिटायर होने वाले व्यक्तियों का खास ख्याल रखा जाता था एवं या तो इनके कार्यकाल में वृद्दी की जाती या रिटायर होते ही किसी न किसी लाभ के पद जैसे कि मानव आयोग का अध्यक्ष आदि पर बिठा दिया जाता। कांग्रेस सरकार के इस कदम से यह सारा अभिजात वर्ग चुपचाप रहता था और लाखो रुपये प्रतिवर्ष बनाये जाते थे। यही नही यह लोग नियमित रुप से विदेशी फाउंडेशन से भी पैसा प्राप्त करते रहते थे जिस पर कांग्रेस सरकार आंखे मूंदे रहती थी। कभी इस अभिजात वर्ग से यह नही पूछा गया कि आपने इतना पैसा कहाँ से कमाया क्या टेक्स दिया ना ही कभी इनके एनजीओ के कभी सरकारी ऑडिट हुए। जाकिर नाइक के पीस फाउंडेशन के बारे में आप अभी सब जानते है कि वर्षो से वे विदेशो से अपने एनजीओ के लिए चंदा ले रहे थे और कभी उसका किसी सरकारी एजेंसी को कोई हिसाब नही दिया गया।
जब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने तो इस अभिजात वर्ग को उनके गुजरात के मुख्यमंत्री के कार्यकाल को देखते हुए मालूम था कि नरेन्द्र मोदी अगर प्रधानमंत्री बन गये तो ये जो मुफ्त़ की मलाई खाने को मिल रही है बंद हो जायेगी और उनको  विश्वास भी था कि यह कभी प्रधानमंत्री नही बन पायेगें और गुजरात दंगो का इन सभी लोगो द्वारा जम कर प्रचार प्रसार किया गया। नरेन्द्र मोदी की एक मुसलमान विरोधी छवि बनायी गयी लेकिन आज के सोशल मिडिया, टीवी एवं वाट्सएप के जमाने में सारे देश के लोगो को मोदी का गुजरात की तरक्की एवं वहाँ के मुसलमानो की अच्छी आर्थिक स्थिति से समझ में आ गया था कि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री पद के लिए सही उम्मीदवार है आज जब वे देश के प्रधानमंत्री 2-1/2 सालो से है तो धीरे धीरे इस अभिजात वर्ग की सारी अवेध कमाई बंद हो रही है और इसलिए ये सब लोग तिलमिला रहे है। और जो काली कमाई इन लोगो ने 500-1000 के नोट में छुपा रखी थी उसका नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी करके कचरा कर दिया। यही कारण है कि एक वर्ग विशेष नरेन्द्र मोदी से नफ़रत करता है और आलोचना का कोई मौका नही छोड़ता है।