गौरी लंकेश कर्नाटक की एक लेफ्टिस्ट फायर ब्रांड लेखिका थी।
उन्होने शुरु में टाईम्स ऑफ इंडिया में काम किया तब उनकी शादी चिनानंद राजघट्ट से
हुई वे भी पत्रकार थे दिल्ली में कुछ समय तक साथ काम भी किया। पर शादी ज्यादा चली
नही और वे बेंगलुरु आ गयी उस समय वे संडे मेगेजीन में संवाददाता का काम कर रही थी।
उनके पिता पी लंकेश
भी एक जाने माने कन्नड़ जरनलिस्ट थे और लंकेश के नाम से एक टेबलॉयड निकालते थे। गौरी लंकेश ने
सन 2000 में उनकी मृत्यु के बाद भाई
इंद्रजीत लंकेश के प्रकाशक मुद्रण व व्ययसायिक दायित्व संभाले और गौरी लंकेश ने
संपादन का कार्य किया। यह कुछ ज्यादा दिनो तक नही चला क्योंकि लंकेश पत्रिका की
दोनो भाई बहन की विचारधारा में अत्यधिक फर्क होने से पत्रिका में रिपोर्टिंग को
लेकर दोनो में अक्सर विवाद होते रहते थे सन 2005 में दोनो भाई बहन में अच्छी खासी
लड़ाई हुई जिसमें पोलिस रिपोर्ट तक हुई एवं प्रेस कांफ्रेस कर इंद्रजीत ने अपनी
स्थिती साफ की। इसके बाद लंकेश पत्रिका से अलग होकर अपनी गौरी लंकेश अपनी पत्रिका “गौरी लंकेश पत्रिके” के नाम से अलग से निकालने
लगी।
गौरी लंकेश अपनी एक्स्ट्रीम एंटी राईट विचारधारा के लिये
जानी जाती है। वह बगैर लाग लपेट के किसी के लिए कुछ भी लिख सकती थी बोल सकती थी और
जब आप ऐसा करते है तो जाहिर है आप के दुश्मन दोस्तो से ज्यादा होते है। आरएसएस और
बीजेपी की तो कट्टर दुश्मन थी ही उनके लिखे लेख कन्नड़ भाषी लोगो में बहुत पंसद किये
जाते थे। लेकिन उनकी विचार धारा आरएसएस ब्राह्मण वाद के खिलाफ स्पष्ट थी और ऐसा
बताया जाता है कि केरला कर्नाटक में किसी आरएसएस वाले की हत्या होने पर वह किसी न
किसी बहाने सोशल मिडीया पर अपनी पत्रिका में पोस्ट डालकर न सिर्फ ऐसी हत्याओं का
समर्थन करती बल्की खुशी भी जाहिर करती।
गौरी लंकेश नक्सली विचारधारा की तरफ रुझान रखती थी लेकिन वे
सक्रिय रुप से नक्सलियों को मुख्य
विचारधारा में लाने की कोशिश करती रहती थी। उनके प्रयासो से कुछ नक्सलियों ने
सरेंडर भी किया। जिस दिन उनकी हत्या हुई उस दिन उनके द्वारा दिन में किये गये दो
ट्वीट बहुत महत्वपूर्ण है जिसमें वे अपने ही साथियों से गुजारिश कर रही है कि “हम लोग गलती कर सकते है जैसे की फेक पोस्ट को शेयर करना. हम
सब सावधान रहे और एक दूसरे को एक्सपोज न करें.....शांति कामरेड्स.” दूसरा ट्वीट कुछ ऐसा है “मैं ऐसा क्यों महसूस कर रही
हूँ कि हममें से कुछ आपस में ही लड़ रहे है? हम हमारे “सबसे बड़े शत्रु” को जानते है क्या हम सबको उस पर ध्यान नही लगाना चाहियें.” दोनो ट्वीट बताते है कि गौरी
लंकेश अपने ही साथियों के कारण परेशान थी और काफी तनाव में थी।
वो जानती थी कि जो
कुछ वे कर रही है उससे उनकी जान को खतरा है। खासतौर से गौरी लंकेश नागाराजू,
नूर जुल्फिकर श्रीधर,
शिवू, रिजवान बेगम और कल्पना जैसे नक्सलियों से हिंसा का
रास्ता छुड़ाने में कामयाब रही थीं। इसे लेकर ही उन्हें लगातार फोन पर धमकियां मिल
रही थीं। विक्रम गौड़ा अपने हाथ से एक एक कर नक्सली साथियों को फिसलता देख कर गौरी
लंकेश से काफी नाराज़ था। विक्रम गौड़ा केरल के उड्डुपी जिले का रहने वाला था जहाँ
तमिलनाडु में नक्सली कमान कुप्पुस्वामी के हाथ में थी कर्नाटक का नक्सली प्रमुख
विक्रम गौड़ा था। गौरी लंकेश के भाई का कहना है कि नक्सली लोगो से उसे धमकियां मिल
रही थी।
खुद सिद्दरमैया ने बतायाकि गौरी लंकेश उनकी हत्या के दो तीन
दिन पहले उनसे शाम के समय उनके बंगले पर मिली थी। बताया जाता है कि यह मुलाकात
लगभग दो घंटे की थी। क्या यह सामान्य मुलकात थी या फिर गौरी लंकेश किसी खास काम से
गयी थी। गौरी लंकेश ने वो कर्नाटक के कांग्रेसी विधायक डीके शिवाकुमार के खिलाफ एक
मामले में जांच कर रही हैं। डीके शिवाकुमार वही विधायक हैं, जिनके रिसॉर्ट में गुजरात के कांग्रेसी विधायक रुके
थे। उन पर सीबीआई के छापे भी पड़ चुके हैं। इसके अलावा कर्नाटक सरकार और
मुख्यमंत्री सिद्धरमैया से जुड़े मामले भी गौरी लंकेश की पत्रिका में छपने वाले
थे। यह जानना दिलचस्प होगा कि कर्नाटक मुख्यमंत्री सिद्दरमैया के बंगले से जब गौरी
शंकर निकली तो किसी डील तय हो जाने से खुश थी या उनका चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ
था। इस बात को वहाँ लगे सीसीटीवी फूटेज या उस वक्त ड्यूटी पर तैनात कर्मियों से
जाना जा सकता है। मेरी समझ से मुख्यमंत्री बंगले के सीसीटीवी फूटेज का उस दिनांक
का चेकिंग और कर्मचारियों का इंटरोग्रेशन होना बहुत जरुरी है।
लेकिन असली कातिल कौन है यह लाख टके का सवाल है। जब मैं
सिलसिलेवार यह फेक्ट्स नरेट कर रहा हूँ तो मुझे ऐसा लग रहा है जैसे की कोई सस्पेंस
फिल्म चल रही है जिसमें मुख्य किरदार की हत्या करने के हर किसी के पास कारण है। जाहिर
है कि जिस किसी ने हत्या का षड़यंत्र रचा उसने इसके लिए पेशेवर हत्यारों को चुना
ऐसा हम सब समझते है। अब जरा 5 सितंबर की शाम 7 बजे का घटनाक्रम देखे। गौरी लंकेश
अपने घर राजराजश्वेरी नगर की और जा रही है कुछ कहते है कि उसने अपनी माँ को फोन कर
कहा कि कुछ लोग मेरा पीछा कर रहे है। कन्हैया ने भी कहा कि गौरी लंकेश ने उसे कहा
था कि कुछ सदिंग्ध लोग उसके घर के आसपास चक्कर लगाते देखे है।
इसिलिए उसने हत्या
के महज दो दिन पहले सीसीटीवी लगवाए थे जिसमें घर के एंट्रेंस व बरामदे में ही दो
केमरे थे।
घर के दरवाजे डबल थे याने एक जाली वाला और एक रुटीन फ्लश डोर। लगभग 7.30
शाम गौरी लंकेश अपने घर के आगे कार रोकती है यह स्पष्ट नही है कि उसने बाउंड्रीवाल
का लोहे का गेट खोल कर कार अंदर रखी फिर या फिर कार बाहर छोड़कर और सदिंग्ध शख्सों
को देख भाग कर दरवाजा खोलने का प्रयास किया। हत्या के तुरंत बाद की तस्वीरे बता
रही है कि सफेद कार बाहर खड़ी है। लेकिन उसको पुलिस ने निकाल कर बाहर रखा यह भी हो
सकता है। पुलिस का गैर पेशवराना तरीका शुरुआती तस्वीरों में साफ दिख रहा है पास
पड़ोसी कुछ अधिकारी पुलिस के जवान कम से कम पचास से अधिक लोग घर के परिसर में आते
जाते दिख रहे है। जबकि क्राइम सीन को तुरंत सील करना था।
हमारे यहाँ क्राईम का एक हालिया सीन क्रिएट करना एवं संभावित अपराधियों की प्रोफाइलिंग करना बहुत दूर की बात है अभी हमने उपर तस्वीरों में देखा हर आदमी गौरी लंकेश के घर के परिसर में इस तरह आ जा रहा है जैसे उसी का घर हो जबकी वहाँ हत्या जैसा गंभीर अपराध घटा है। 7 गोलियों में से तीन के खोल ऐसे ही इन लोगो के पैरो तले दब गये होगें। अब पता लगाना मुश्किल है कि तीन लोगो में से कितने लोग गोली चला रहे थे और गौरी लंकेश को एक शूटर की तीन गोलियाँ लगी या अलग अलग शूटरो की गोलियाँ लगी। गोलियों के खोल से यह भी पता चलता कि गोलियाँ देशी पिस्टल से चलायी गयी है या आथेंटिक रिवाल्वर या पिस्टल से 9 mm थी या फिर .33 या .35 रिवाल्वर थी। अब पुलिस कह रही है कि
तीन शख्स थे हेलमेट लगाये हुए एक शख्स पहले से खड़ा था दूसरे दो स्कूटी से आये थे।
पहले वाला कितनी देर से खड़ा था क्या सारे समय वह हेलमेट लगाये घूम रहा था अगर कोई
ऐसा करता तो निश्चित तौर से किसी पड़ोसी ने देखा होता। मेरी समझ से स्कूटी लेकर
कोई पेशेवर सुपारी कातिल हत्या करने नही जाएगा। हर पेशेवर हत्यारा जानता है कि
गेट अवे व्हीकल विश्वसनीय एवं फास्ट होना चाहिये स्कूटी वाले को कोई भी पीछा कर पकड़
सकता है। दूसरी बात की कुल सात गोलियां चली जिसमें तीन गौरी लंकेश को लगी चार
बरामदे की दीवार या दरवाजो में पेवस्त हो गयी। पुलिस के मुताबिक चार खाली कारतूस
के खोल मिले। फिर बाकी तीन कारतूस के खोल कहाँ गये। अभी कहा जा रहा है कि हत्या
में देशी पिस्तोल का इस्तेमाल हुआ है यह कुछ ऐसा ही जैसी दाभोलकर, पनसेरे और कलबर्गी
की हत्याओं में हुए थे।
यह अजीब बात है कि हत्यारों को सात गोलियाँ चलानी पड़ी जाहिर है जब चार गोलियाँ
चूक गयी तभी बाकी की तीन चलायी गयी इसका मतलब है कि उनमें से एक नौसिखिया था और
पहले गोली चलाने का निर्देश उसको मिला होगा लेकिन वह घबरा गया और उसकी एक भी गोली
निशाने पर नही लगी फिर उनमें से एक जरुर पेशेवर होगा जिसने ठीक से निशाने पर गोली
चलायी। सिर और सिने में लगी गोली इस बात का सबूत है कि यह जरुर पेशेवर शूटर था। मुझे नही लगता तीसरे शख्स ने गोली चलायी होगी। तीन लोगो की थ्योरी कुछ जम नही रही है फिर भी यदि कोई तीसरा आदमी था तो वह बेकअप के लिए होगा और निश्चित
रुप से किसी फोर व्हीलर में होगा क्योंकि आमतौर से खड़ी कार में चुपचाप बैठे शख्स
पर किसी का शक नही जाता और स्कूटी पर तीन लोग भाग नही सकते। यदि वो आगे चल कर किसी
फोर व्हीलर में बैठे तो यकीनन स्कूटी या बाइक किसी आस पास के इलाके में लावारिस
मिलनी चाहिये या फिर किसी नजदीक के पार्किंग में। ऐसी कोई लावारिस व्हीकल यदि हो
तो जाहिर है चोरी का होगा लेकिन फिर भी पुलिस अगर बेवकूफी न करे तो हत्यारों के फिंगर
प्रिंट्स उठाये जा सकते है। फिंगर प्रिंट्स गौरी लंकेश की कार और बरामदे से भी
उठाये जा रहे थे पर वहाँ बहुत से लोगो की मौजूदगी से वे कंटेमिनेटेड हो गये होगे
और आरोपियों को सजा दिलाने में कामयाब नही होगे। तीन शख्स अगर है तो एक जरुर बेकअप
होगा किसी कार में आसपास लगभग 30 से 40 मिनिट उस इलाके में रहा होगा। अगर किसी
पड़ोसी या फिर कामवाली बाई नौकर, कोई खेलकर आता हुआ बच्चा यदि उसने कार को नोटिस
किया होगा तो कुछ कामयाबी हाथ लग सकती है। जो दो शख्स स्कूटी पर हेलमेट लगाये हुए
थे उनमें से एक 18-20 साल का लड़का दूसरा 30 साल के आसपास का एक्सपिरिंयस्ड शूटर
होना चाहिये। ऐसे सभी हिस्ट्री शीटर की तलाश करना चाहिये जो इस प्रकार के प्रोफाइल
में फिट बैठते हो। बेक अप वाला शख्स भी लगभग 30-35 साल के एज ग्रुप में होना
चाहियें हो सकता है कि उसी ने हत्यारों को हायर किया हो इसलिए ये शख्स ऐसा होना
चाहिये जिसके कान्टेक्ट व्हाइट कॉलर लोगो से और अपराध जगत दोनो में ही यह फ्रीली
मूव करता हो।
यदि गौरी लंकेश के नक्सली साथियों का ही यह काम है तो मेरी
समझ से उनको किलर हायर करने की जरुरत नही है उनके इसमें ही कई लोग ऐसे होगे जो
बड़े इत्मीनान के साथ ऐसे काम को अंजाम दे सकते है। आधुनिक हथियारों की उनके पास कमी नही है। जिस तरह से ताबड़तोड़ 7 गोलियाँ चलायी गयी है उससे मुझे लगता है कि गोलियाँ किसी अंग्रेजी पिस्टल या रिवाल्वर से चली है। दो शूटरों ने लगभग 10 फीट की दूरी से गौरी लंकेश पर गोली चलायी क्योंकि हेलमेट पहने संदिग्ध व्यक्तियों को पास आता देख कर गौरी लंकेश कुछ न कुछ एक्शन लेती। लेकिन दोनो शूटरो में से एक ने पहले गोली चलायी जो उसे नही लगी गौरी लंकेश भाग कर घर के दरवाजे को खोलने का प्रयास कर रही थी लेकिन शूटर अब उनके नजदीक पहुँच गये थे और निशाना सही बैठा। लेकिन फिर भी मर्डर पाईंट ब्लैंक रेंज से नही किया गया। जब गौरी लंकेश दरवाजे के पास होगी तब शूटर बरामदे के जस्ट बाहर ही होना चाहिये।
अगर नक्सलियों ने यह वारदात की है तो उनके पास इसको करने के लिए मोटिव, हथियार और मेन पॉवर सब आसानी से था सिर्फ उनको बेक अप के लिए बेंगलुरु में रहने वाला शख्स चाहिये था जो अच्छी तरह से रास्तो से वाफिक हो। जहाँ तक मुझे जानकारी है कर्नाटक पुलिस भी इसी थ्योरी पर काम कर रही है।
अगर नक्सलियों ने यह वारदात की है तो उनके पास इसको करने के लिए मोटिव, हथियार और मेन पॉवर सब आसानी से था सिर्फ उनको बेक अप के लिए बेंगलुरु में रहने वाला शख्स चाहिये था जो अच्छी तरह से रास्तो से वाफिक हो। जहाँ तक मुझे जानकारी है कर्नाटक पुलिस भी इसी थ्योरी पर काम कर रही है।
अभी बीजेपी, आरएसएस अपने केरियर के शिखर पर है वो ऐसी
आलोचनाओं से डरते भी नही है और बरदाश्त करने की ताकत ज्यादा है फिर भी अगर वे लोग
ऐसा करना चाहे तो उनसे सहानुभूती रखने वाले ऐसे हार्ड कोर लोग है वे संसाधन भी जुटा सकते है लेकिन यह काम
एक दो दिन का नही है और यह लगभग एक-दो महीने की रेकी प्लानिंग से किया गया काम है।
पुलिस चाहे तो ऐसे हार्ड कोर एक्टीविस्ट की पिछले दो तीन महीनो की एक्टीवीटी खंगाल सकती है जोएक दो महीने से बेंगलुरु में रह रहे
हो।
गौरी लंकेश कांग्रेस की एमएलए शिवराजा पर भ्रष्टाचार के सबंध में कुछ काम कर
रही थी। सिद्दरमैया सरकार के भी कुछ मुद्दे थे गौरी शंकर दो तीन पहले सिद्दरमैया
से मिलने उनके बंगले पर भी गयी थी और दो तीन दिन से यानी 5 सितंबर के दो तीन दिन
पहले से ही वो तनाव में थी सुरक्षा के प्रति चिंतित भी थी और गौरी लंकेश के साथ
वही हुआ जिसकी उसे आशंका थी। शिवकुमार एक सक्षम तेज तर्रार पैसे वाला और जमीन से खड़ा हुआ एमएलए है। उनमें यह ताकत है और पैसा संसाधन मेन पॉवर सब कुछ है और ऐसे राजनितिक माहौल में जिसमें आरोप बीजेपी और आरएसएस पर लगने वाला है। लेकिन अगर यह पोलिटिकली मोटिवेटेड मर्डर है तो हम अगर कातिलों को पकड़ भी ले असली षड़यंत्रकारियों तक कभी पहुँच नही पाएगी।
इंद्रजीत के पास ऐसा कोई कारण नही कि वो अपनी बहन के साथ
ऐसा करें। फिर इंद्रजीत के लिए एक इनविड्युल के बतौर शूटर हायर करना केश पेमेंट का
बंदोबस्त करना कठिन काम है। इंद्रजीत जानता है कि हत्या करने में किन लोगो का हाथ
हो सकता है इसलिए एंटी मोदी मिडिया के लाख चिल्लाने के बावजूद भी उसने एक बार भी
बीजेपी का नाम नही लिया और सीबीआई जाँच की मांग कर रहा है अगर उसको जरा भी शक होता
कि इसके पिछे बीजेपी या आरएसएस का हाथ है तो वो कभी सीबीआई जाँच की मांग नही करता
क्योंकि केन्द्र में बीजेपी की सरकार है और ऐसी स्थिति में जाँच में ढिलाई तो की
ही जा सकती है उसके उलट इंद्रजीत को कांग्रेस की लोकल गवरमेंट और पुलिस पर कम
विश्वास है हाँलाकि सिद्दरमैया ने लोकल एसआईटी गठन की है पर शुरुआत में ही आधे
सबूत तो खो ही चुके है।
जो भी हो गौरी लंकेश एक खूबसूरत शख्सि़यत थी खास बात यह थी कि वे जानती थी कि जो कुछ वे कर रही है उसका अंजाम खतरनाक हो सकता है ऐसे अजांम की उनको आशंका भी थी। लेकिन फिर भी वे जिद्दी थी और मरते दम अपनी बात पर अड़ी रही अपनी विचार धारा से कभी समझौता नही किया। ऐसे लोग दुनिया में कम ही होते है और अक्सर जल्दी चले भी जाते है।
अब सारे तथ्य आपके सामने है आप ही फैसला कर सकते गौरी लंकेश
का कौन कातिल है।
मेरी विनम्र श्रद्धांजलि