शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

मोदी से इतनी नफ़रत ?

खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने नये साल 2017 के केलेंडर एवं डायरी पर नरेन्द्र मोदी की तस्वीर क्या छाप दी सारे देश में बवाल मच गया। मकर संक्राति के पावन दिन पर रविश कुमार, कमर वहीद जैसे पत्रकारो को गुल्ली डंडा खेलना छोड़कर खादी और ग्रामोद्योग आयोग के केलेंडर से गांधी के चले जाने पर ब्लॉग लिख कर मातमपूर्सी करनी पड़ी।



 फोर्बीस पत्रिका देश के 100 प्रभावशाली लोगो की एक सूची हर साल जारी करती है। जो कि देश की जनता के एक बड़े हिस्से के मत/विचार को प्रभावित कर सकते है या उसको बदल सकते है। रविश कुमार जैसे पत्रकार उनमें से एक है। और सवाल सिर्फ रविश कुमार का ही नही है राजदीप, बरखा दत्त, वीर संघवी, करण थापा सन 2014 के पहले के दोस्त वेद प्रताप वैदिक और ना जाने ऐसे कितने बड़े अंग्रेजी और हिन्दी मिडिया के पत्रकार है जो खासतौर से नरेन्द्र मोदी से नफ़रत करते है। ऐसे ही ममता बनर्जी, अरविन्द केजरीवाल, मणिशंकर अय्यर, कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, सोनिया गांधी जैसे नेता भी है जो नरेन्द्र मोदी से घोर नफ़रत करते है। यहाँ तक अभी अभी रिटायर हुए सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायधीश भी जब भी किसी मंच पर मौका मिला अपनी मोदी के प्रति नफ़रत छुपा नही सके। बाहर तो बाहर बीजेपी में भी उनके खुद के मार्गदर्शक एवं ऐसे साथियो की कमी नही है जो अंदर ही अंदर उनसे नफ़रत करते है गाहे बगाहे उनके व्यक्तव्य दर्शाते है कि ये लोग उनके मित्र कम दुश्मन ज्यादा है। ऐसे ही एक वर्ग बड़े बड़े ब्यूरोक्रेट्स व उद्योगपतियों का भी है जो दिल में छुरी जुबां पर शहद रखते है जब नरेन्द्र मोदी के बारे में बात करते है।
सार्वजनिक जीवन में जरुरी नही विभिन्न लोगो के विचार आपस में मिले लेकिन वे आमतौर पर एक दूसरे का सम्मान करते है यदि खिलाफ़ भी हो तो बहुत ज्यादा मेलजोल नही करेगें लेकिन सामान्य शिष्टाचार निभाते है। लेकिन नरेन्द्र मोदी के मामले में दूसरी बात है इसिलिए मैंने नफ़रत शब्द का इस्तेमाल किया है। देश में एक ऐसा अभिजात वर्ग (ELITE)  है इसमें सीधे सरल रविश कुमार भी है जो देश में नरेन्द्र मोदी जैसे व्यक्ति के हाथ में सत्ता को खतरनाक समझते है। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी यह कह चुके है कि नरेन्द्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना देश के लिए खतरनाक होगा। ठीक है भाई लेकिन नफ़रत क्यों ? जब ये लोग नरेन्द्र मोदी की तारीफ़ करते है तो भी ऐसा लगता है कि शहद में लपेट लपेट कर चाबुक मार रहे हो। इनके दिल में छुपा दर्द दिख ही जाता है फिर चाहे स्क्रीन ब्लेक कर प्राइम टाइम करे या माइम करके।
 नरेन्द्र मोदी की आलोचना जितनी होती है उतनी किसी नेता की होते हुए नही देखी. आप लोगो को नरेन्द्र मोदी के कपड़ो पर आपत्ति है कि वे हमेशा नयी साफ सुथरी जेकेट और कुर्ता पहनते है। हमारे देश में लोगो की याददाश्त बहुत कमजोर है खासतौर से राहुल गांधी की वो जब नरेन्द्र मोदी को सूटबूट की सरकार बोलते है तो यह भूल जाते है कि 1947-50 के सस्ते जमाने में उनके नाना जवाहर लाल नेहरु कपड़े पेरिस से धुल कर आते थे। जो आज मोदी जेकेट कहलाती है कभी वो नेहरु जेकेट कहलाती थी। राहुल गांधी खुद राल्फ लॉरेन या प्राडा की टी शर्ट पहनते जिसकी कीमत लगभग 12-15000 रुपये होती है तो कुछ नही।



 अगर नरेन्द्र मोदी मलिका साराभाई की मां की मौत पर शोक संदेश न लिखे तो लोगो को आपत्ति और राहुल गांधी मोबाइल से नकल कर शोक संदेश लिखे तो कोई बात नही। अगर सोशल मिडिया नरेन्द्र मोदी  कुछ लिख दे तो लोगो को आपत्ति, नरेन्द्र मोदी विदेश जाए तो आपत्ति अगर जापान में ड्रम बजा दे तो बजाय इस बात की तारीफ़ करने के उसमें भी आलोचना। नरेन्द्र मोदी ने जिस दिन पार्लियामेंट में पहली बार कदम रखा और माथा टेका उसमें भी भाई लोगो को तकलीफ़। आप मन्दिर में जाये माथा टेके प्रणाम करे या ना करे आपको कोई कुछ बोलता है क्या फिर आप क्यो हर बात में इतना हल्ला मचाते हो। कोई दिन ऐसा नही जाता कि आप लोग नरेन्द्र मोदी की किसी न किसी बात पर आलोचना नही करे। जीरो बेलेन्स पर 20 करोड़  जन धन अकाउंट खोले गये तो आपत्ति। किसी को इस बात की तारीफ़ करने के लिए दो शब्द नही है कि जो देश में हर दूसरे दिन स्केम की खबरे हम 2014 के पहले पढ़ा करते थे आना बंद हो गयी है। जो कुकिंग गैस हमको 20-25 दिन की वेटिंग में आती थी और जल्दी चाहिये तो ब्लेक देना होता था आज बुकिंग के बाद 4-5 घंटे में आती है। मुझे अच्छे से याद है कि जिस दिन कांग्रेस सरकार सन 2004 में बनी उसी दिन से कुकिंग गैस की किल्लत हो गयी। टूरिस्ट प्लेसेस गंदगी व प्लास्टिक की थैलियों से अटे पड़े होते थे आज ऐसी सब जगहो पर डस्टबीन है। वाराणसी के घाट गंदगी से टनो मिट्टी और कचरे के ढेर से लबालब पड़े रहते थे आज साफ सुथरे है वहाँ रोज कई कार्यक्रम होते है। 


2009

                                   2016

   रक्षा सौदे फटाफट हो रहे है कोई स्केम की खबर नही है। हाइ वे स्पीड से बन रहे है। सालो से रेल्वे और हाइ वे के बीच विवाद महिनो में सुलझ गये है। क्यों रविश कुमार आपके यहाँ खाना क्या सोलर से बनता है आपको कभी इस बात का अहसास नही हुआ की जो कुकिंग की गैस की नकली किल्लत बतायी जा कर ब्लेक में पैसा बनाया जा रहा था वो अब बंद हो गया एक आध ब्लाग उस पर भी लिख देते। या फिर हर साल सीजन में प्याज आलू टमाटर दाल के दाम बढ़ा कर काला बाजारी की जाती थी अब बंद हो गयी। दाल आज 60 रुपये किलो मिल रही है जब 200 रुपये किलो मिल रही थी उस समय तो आप दिल्ली के सदर बाजार चले गये थे दाल बेचने वालो से मिलने। जब सब्जियां सस्ती हो गयी तो समस्या है कि किसान को पैसा नही मिल रहा जब दाम ज्यादा थे तो बेचारा मिडिल क्लास लुट रहा था। क्या गज़ब है।
       अपनी जवानी की दहलीज पर नरेन्द्र मोदी एक आदर्श वादी व्यक्ति थे आरएसएस से जुड़ने के पर उनकी  समपर्ण व आज्ञाकारिता के चलते तेजी से आर एस एस की रेंक में उपर चढ़ने लगे मेरी समझ से तब वे अत्यंत विन्रम एवं अमहत्वाकांक्षी अपने आपको एक साधारण कार्यकर्ता मानने वाले व्यक्ति थे । अडवाणी एवं अटल बिहारी से नजदीकी के कारण अचानक गुजरात के सीएम की पोस्ट उनकी झोली में आ गिरी। 


        गुजरात सीएम बनते ही उनका सामना गोधरा कांड से हो गया और उनकी जुझारु प्रवृत्ति ने उनको जितने आरोप उन पर लगाये गये उनसे लड़ने की प्रेरणा दी। नरेन्द्र मोदी में एक कला है कि वे विपरित विषम परिस्थितियों से फायदा उठाते है और उसी को हथियार बनाकर वे स्थितियों को अपने पक्ष में कर लेते है यही उनकी जीत का राज है। और इसलिए जब वे तीसरी बार गुजरात सीएम बने तो फिर उन्होने अपना लक्ष्य तय कर लिया और समझ लिया कि उनकी डेस्टिनी उनको कहाँ ले जाना चाहती है। जब मणिशंकर अय्यर नें कांग्रेस के तालकटोरा अधिवेशन में पत्रकारो से बात करते हुए उनको चाय वाला कह कर कहा कि वे यहाँ आ जाये हम चाय बेचने के लिए नरेन्द्र मोदी को स्टाल उपलब्ध करा देगें तो नरेन्द्र मोदी ने उसको चाय पर चर्चा कर ऐसा भुनाया कि बीजेपी 270 से उपर सीट लोक सभा में ले लायी।
            आखिर ऐसा क्या कर दिया जो ये अभिजात वर्ग नरेन्द्र मोदी के इतना खिलाफ़ हो गया। क्या गुजरात दंगे 2002 ? दंगे तो देश में आजादी के बाद से होते ही रहे है ना ही ये सब लोग मुसलमानो के इतने खैरख्वाह है की उनके लिए लगातार 14-15 साल रोते रहे। 1984 के दंगो में जितने सिक्ख देश भर में मारे गये व उनकी संपत्ति लुटी गयी कोई राजदीप रवीश बरखा सोनिया राहुल को उसकी याद नही दिलाता ना किसी भी मंच पर उस घाव को कुरदने की कोशिश करता है जिस तरह से गुजरात दंगो की याद आज तक बार बार दिलाई जाती है। 1984 के दंगो को मैने नजदीक से देखा है उसका तो 10% भी गुजरात में नही हुआ फिर असल बात क्या है।




       दरअसल यह अभिजात वर्ग जो हमारी कल्पना से परे अमीर है और अचरज की बात यह है कि यह लोग खून पसीने की कमाई से अमीर नही बने है अंग्रेजी में जिसे कहते by virtue of their post and position उससे यह लोग अमीर बने है। ज्यादातर नौकरशाहो जैसे अरविन्द केजरीवाल,  निर्मला बुच या फिर राजदीप, बरखा, रवीश कुमार जैसे पत्रकार, तीस्ता सीतलवाड़, मनीष सिसोदिया, अन्ना हजारे, किरण बेदी जैसे समाज सेवी और सलमान खुर्शीद, कपिल सिब्बल जैसे नेता, प्रशांत भूषण, कामिनी जयसवाल जैसे वकील सेवानिवृत न्यायधीश इन सबके पास अपने अपने एनजीओ है कांग्रेस सरकार की पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप पालिसी के तहत ऐसे सभी लोगो ने अथाह पैसा इन एन जी ओ के माध्यम से प्रतिवर्ष उठाया है। एनजीओ के माध्यम से किस तरह पैसा बनाया जाता है उसकी एक बानगी है कि  सलमान खुर्शीद ने कानून मंत्री रहते हुए अपने एनजीओ जो उनकी पत्नी लुइस खुर्शीद चलाती है के लिए  विकलांग लोगो को ट्राईसाइकल, हियरिंग ऐड आदि देने के लिए 70 लाख रुपये मिले थे जिसमें से उस एनजीओ द्वारा 1 रुपये के भी उपकरण नही बांटे गये और फर्जी बिल से सारे का सारा पैसा हजम कर लिया गया। इसका खुलासा अरविंद केजरीवाल अपने इंडिया अंगेस्ट करप्शन आंदोलन के समय किया था।
          इन्ही लोगो के बड़े बड़े बिजनेस है जैसे कपिल सिब्बल की पत्नी देश के सबसे बडे कत्लखाने के मालिक है और बीफ के सबसे बड़े एक्सपोर्टर। ये सब हर प्रकार का लाभ उठाते टेक्स चोरी करते और कोई सरकारी विभाग इनकी तरफ आंख उठा कर नही देखता था। इस प्रकार हर साल ये लोग विभिन्न कार्यो के लिए लाखो रुपया सरकारी विभागो से लेते है और चुपचाप हजम कर जाते है किसी को ख़बर भी नही होती थी। ये  कांग्रेस सरकार इस प्रकार सब लोगो को संतुष्ट रखती थी। बरखा दत्त वीर संघवी जैसे पत्रकार इतने ताकतवर थे कि कांग्रेस सरकार में ये किसी को मंत्री बना सकते थे या हटा सकते थे। नीरा राडिया टेप इस बात के गवाह है और रतन टाटा जैसे आदमी को शर्मिंदा होने से बचने के लिए नीरा रा़डिया टेप सार्वजनिक न होने देने के लिए सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी पड़ी थी। यही नही सुप्रीम कोर्ट के जस्टीस, चीफ सेक्रेट्री,  चुनाव आयुक्त, सीएजी के लेखा नियंत्रक जैसे पदो से रिटायर होने वाले व्यक्तियों का खास ख्याल रखा जाता था एवं या तो इनके कार्यकाल में वृद्दी की जाती या रिटायर होते ही किसी न किसी लाभ के पद जैसे कि मानव आयोग का अध्यक्ष आदि पर बिठा दिया जाता। कांग्रेस सरकार के इस कदम से यह सारा अभिजात वर्ग चुपचाप रहता था और लाखो रुपये प्रतिवर्ष बनाये जाते थे। यही नही यह लोग नियमित रुप से विदेशी फाउंडेशन से भी पैसा प्राप्त करते रहते थे जिस पर कांग्रेस सरकार आंखे मूंदे रहती थी। कभी इस अभिजात वर्ग से यह नही पूछा गया कि आपने इतना पैसा कहाँ से कमाया क्या टेक्स दिया ना ही कभी इनके एनजीओ के कभी सरकारी ऑडिट हुए। जाकिर नाइक के पीस फाउंडेशन के बारे में आप अभी सब जानते है कि वर्षो से वे विदेशो से अपने एनजीओ के लिए चंदा ले रहे थे और कभी उसका किसी सरकारी एजेंसी को कोई हिसाब नही दिया गया।
जब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने तो इस अभिजात वर्ग को उनके गुजरात के मुख्यमंत्री के कार्यकाल को देखते हुए मालूम था कि नरेन्द्र मोदी अगर प्रधानमंत्री बन गये तो ये जो मुफ्त़ की मलाई खाने को मिल रही है बंद हो जायेगी और उनको  विश्वास भी था कि यह कभी प्रधानमंत्री नही बन पायेगें और गुजरात दंगो का इन सभी लोगो द्वारा जम कर प्रचार प्रसार किया गया। नरेन्द्र मोदी की एक मुसलमान विरोधी छवि बनायी गयी लेकिन आज के सोशल मिडिया, टीवी एवं वाट्सएप के जमाने में सारे देश के लोगो को मोदी का गुजरात की तरक्की एवं वहाँ के मुसलमानो की अच्छी आर्थिक स्थिति से समझ में आ गया था कि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री पद के लिए सही उम्मीदवार है आज जब वे देश के प्रधानमंत्री 2-1/2 सालो से है तो धीरे धीरे इस अभिजात वर्ग की सारी अवेध कमाई बंद हो रही है और इसलिए ये सब लोग तिलमिला रहे है। और जो काली कमाई इन लोगो ने 500-1000 के नोट में छुपा रखी थी उसका नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी करके कचरा कर दिया। यही कारण है कि एक वर्ग विशेष नरेन्द्र मोदी से नफ़रत करता है और आलोचना का कोई मौका नही छोड़ता है।



शुक्रवार, 13 जनवरी 2017

ठंडी दाल में उबाल


          तेज बहादुर यादव जवान 29 बटालियन बीएसएफ  ने अचानक एक  सर्द सुबह ठंडी दाल में उबाल ला दिया। तेज बहादुर यादव की आक्रोश दुःख से लाल व डबडबाई आंखो से अपने को मिलने वाले खाने का सोशल साइट पर अपने विडियो के साथ जो उसने एक के बाद एक तीन विडियो अपलोड किये है वो देखते ही देखते वाइरल हो गये। यहाँ तक की गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह को बीएसएफ से रिपोर्ट सात दिन में अंतरिम रिपोर्ट तलब करनी पड़ी।



          पेरामिलिटरी एवं मिलिटरी ऐसी जगह है जहाँ अनुशासन का महत्व है कोई भी फौज बगैर अनुशासन के अपने मिशन में कामयाब नही हो सकती और इसलिए इन जगहो पर सख्त अनुशासना रखा जाता है। आमतौर पर जब हम घर से बाहर होते है तो खासतौर से मेस, होस्टल में मिलने वाला खाना एक समान स्तर का होने से दो चार दिन में ही बेस्वाद लगने लगता है। लेकिन यह बात भी उतनी ही सच है कि लम्बे समय से फौज के सख्त अनुशासन का फायदा दूर दराज की पोस्ट के सीओ ( कमांडिग ऑफिसर) अफसरो द्वारा उठाया जा रहा है। दूरस्थ पोस्टो पर निगरानी की कोई कामयाब व्यवस्था नही होती वहाँ पर सिनियर ऑफिसरो का भी दौरा भी कम से कम होता है। हालात वैसे ही नाजुक और सख्त होते है वहाँ जवान के खाने पर किसका ध्यान जा सकता है। वैसे भी खाने की आलोचना करना हमारे भारतीय संस्कारो  में अच्छी बात नही समझी जाती और इसलिए ज्यादातर खाने की बात मुखर रुप से करने से जवान बचते है। लेकिन बीएसएफ में ही खाने को लेकर यह पहली शिकायत नही है। इसके पहले एक जवान विनोद त्यागी ने गृह मंत्रालय से लेकर करीब 40 जगह शिकायत की है। एक  रिटायर्ड बीएसएफ श्री मुरारी लाल ने न सिर्फ आई जी बीएसएफ बल्कि होम मिनिस्ट्री को भी कई शिकायते की कई आर टी आई भी डाली लेकिन आज तक कोई कार्यवाही नही हुई।


जिस संजीदगी से आई जी श्री डी के उपाध्याय ने इसे संवेदनशील मामला बताया वैसा असल में कुछ नही है बल्कि हमेशा बीएसएफ के उच्चअधिकारी पोस्ट के कमांडिग ऑफिसर को बचाने में लगी रही है। यहाँ तक कि होम मिनिस्ट्री को लगभग सभी जानकारी है और काफी लम्बे समय से जवानो द्वारा विभिन्न स्तरो पर शिकायते की जाती रही है लेकिन कभी किसी भी स्तर पर कार्यवाही कभी नही हुई। इसिलिए तेज बहादुर यादव ने तरीका अपनाया जो कि लगभग 40 लाख बार देखा गया।



          पिछले 70 सालो में भारत में भ्रष्टाचार का घुन जीवन के हर क्षेत्र में चाहे जन्म मृत्यु का प्रमाण पत्र चाहिये, नर्सरी स्कूल में बच्चे का एडमिशन हो या फिर मेडिकल कॉलेज में काउन्सिलिंग हो या जवानो के लिए वर्दी खरीद हो या जूते या फिर हम तोप खरीद रहे हो या फाइटर जेट या हेलिकॉप्टर सबमें लग चुका है। क्या हम आज अखबार में नही पढ़ रहे या मिडिया चेनल्स पर नही देख रहे है। तो फिर क्या जवानो के खाने पीने के सामान में भ्रष्टाचार नही हो सकता?  कुछ बड़े लोग जैसे नाना पाटेकर कह रहे है कि हमें इस बात को बढ़ा चढ़ा कर नही करना चाहिये क्योंकि इससे मिलिटरी का मनोबल कमजोर पड़ेगा। लेकिन मैं समझता हूँ यह अच्छा समय है इस समस्या को जड़ मूल से खत्म करने का और क्योंकि अभी नेतृत्व ताकतवर है डंडा चलाना जानता है। यह समय इसको दूर करने के लिए सबसे अच्छा है।
           बीएसएफ द्वारा बताया गया है कि एक जवान को 95 रुपये प्रतिदिन खाने का अलाउंस मिलता है और उसी में से उसके खाने की व्यवस्था की जाती है मेस जवानो के द्वारा ही चलायी जाती है और उन्ही लोगो में से एक मेस कमांडर चुना जाता है और एक जवान मेस 2 IC । आप यहाँ यह समझने की भूल न करे की मेस कमांडर या 2 IC कोई बड़े उच्च अधिकारी होते है ये जवान ही होते जो मेस का राशन वगैरह खरीदते है और मेस में रोजमर्रा के खाना बनने आदि की निगरानी करते है। आमतौर पर यह पोस्ट के कमांडिग ऑफिसर के चहेते जवान होते है और इनको उनके दिशा निर्देशो का पालन करना होता है।


            किसी भी सरकारी विभाग में सामान्यतः से रिश्वतखोरी या कमीशन का सीधा तरीका उच्चाधिकारियो द्वारा सीधी खरीद में किया जाता है। एक ही पसंद के व्यापारी को तीन कोटेशन लाने का जिम्मेदारी दी जाती है जाहिर है उसमें से सबसे कम दाम वाले कोटेशन को मान्य कर दिया जाता है पर जो सबसे कम दाम वाला कोटेशन है वह भी मार्केट रेट से कम से कम तीन गुना ज्यादा मुल्य का होता है अन्य दो कोटेशन जो निरस्त होते उसमें वस्तु का मुल्य बाजार मुल्य से चार पांच गुना तक हो सकता है। जब राशि रुपये 2 लाख से ज्यादा हो तो टेंडर निकाले जाते है टेंडर में क्रय कि जाने वाली वस्तु की स्पेसिफिकेशन और सप्लाय करने वाली कम्पनी के स्पेफिकिशेन की शर्ते ऐसी रखी जाती है जिससे अपनी पसंद की कंपनी को वरियता मिले। जैसी की अगस्टा वेस्टलेंड हेलिकॉप्टर के घोटाले के बारे में हम पढ़ रहे है। जब कभी किसी दूसरी कम्पनी का टेंडर कम दामो का निकलता है तो कुछ न कुछ कमी निकाल कर कुछ समय रुक कर फिर से टेंडर प्रक्रिया जारी की जाती है। 
            लेकिन एक और तरीका है जिसमें पैसे खाने में हींग लगे ना फिटकरी रंग चोखा आता है। यह तरीका है कि हितग्राही को वस्तु का मुल्य चेक दे दिया जाये या जैसे स्कूलो में स्टेशनरी ब्लेक बोर्ड आदि क्रय करने है तो सभी स्कूलो के प्राचार्य के नाम आवंटित राशि के चेक दे दिये जाते है। शर्त यह होती है कि उसी सप्लायर से सामान खरीदा जाना है जो उच्च अधिकारी द्वारा अप्रुव किया गया है। मजबूरी में वही से सामान खरीदना पड़ता है जो की वस्तु का अत्यधिक मुल्य लगाता है। अगर किसी और दुकान का बिल है तो वो मान्य नही किया जाता। इसमें ऑडिटर को बताया जाता है कि हमने चेक से संबन्धित को पेमेंट कर दिया था वस्तु की गुणवत्ता की जिम्मेदारी क्रय करने वाले अधिकारी की है। यहाँ यह बताना इसलिए जरुरी है कि बीएसएफ के संबन्धित अधिकारी पर कानूनी रुप से कभी भी कोई कार्यवाही नही की जा सकती क्योंकि प्रति जवान 2945 रुपये राशन की आवंटित राशि का पेमेंट जवान की मेस में पूरा कर दिया गया था। राशन जवानो द्वारा ही खरीदा गया उन्ही के द्वारा बनाया गया उन्ही के लोग मेस के इंचार्ज मेस कमांडर थे 2 IC थे। इसलिए पोस्ट के सीओ की इसमें कोई गलती नही है। लेकिन होता यह है कि इस राशन का अधिकांश भाग मार्केट से लिया ही नही जाता उसकी झूठी स्टोर एंट्री की जाती है एवं प्रति दिन झूठा ही स्टाक रजिस्टर से निकाला जाना बताया जाता है और यदि सप्लाय में आता है तो नजदीक के मार्केट में बेच दिया जाता है। इस बची राशि का उपयोग पोस्ट के ऐसे खर्च की पूर्ति के लिए किया जाता है जिसके लिए सरकार कोई बजट आवंटित नही करती। इसलिए इसे भ्रष्टाचार कम चतुराई ज्यादा माना जाता है।
           मैने एनसीसी बी और सी सर्टिफिकेट किया है एक आर्मी अटेचमेंट केंप भी किया है और एक बार मैं बारा पानी शिंलाग में आईटीबीपी के ट्रेनिंग सेंटर में रहा हूँ एवं वहाँ के मेस में 15 दिन तक खाना भी खाया है। मैं कहूँगा कि आईटीबीपी के ट्रेनिंग सेंटर के मेस बकायदा उनके लिए निर्धारित मीनू के हिसाब से खाना मिलता है। अटेचमेंट केंप में हमको वही खाना मिलता था जो वहाँ के जवानो को मिलता था। आमतौर पर ऐसे मेस में नानवेज अच्छा बनाया जाता है लेकिन दाल और हरी सब्जी ठीक नही मिलती तेज बहादुर लगता है वेजिटेरियन है इसिलिये पानी वाली बगैर तड़के की दाल वो बर्दाश्त नही कर पाया और झमेला खड़ा कर दिया। बीएसएफ ने अपनी अंतरिम जाँच में बताया है कि जो निर्धारित राशि 95 रुपये  जवान को प्रतिदिन के हिसाब से खाना दिया जा रहा है चूंकि हाई अल्टिट्यूड पर आर्मी से राशन सप्लाई होता है और सर्दियों में विंटर राशन मिलता है जो कि टिन बंद होता है और जो दाल विडियो में दिखायी गयी है वो टिन बंद दाल है इसलिए इसमें बीएसएफ की गलती नही है। मेरी समझ से जब मटर कीमा इतना तरी वाला बन सकता है तो दाल में थोड़े से तेल का तड़का तो लगाया ही जा सकता है टिन से तो दाल को निकाला ही था गरम भी किया ही होगा तो ये बीएसएफ की यह एस्क्यूज कुछ ठीक नही है। विडियो में दिखाया गया पराठा भी सूखा सूखा है कोई प्लेट नही कुछ बैठने की व्यवस्था नही काले और गंदी से जगह में मेस चलायी जा रही है जमीन पर बैठ कर खाना पकाया जा रहा है जब पोस्ट पक्की है तो क्या वहाँ की ऑफिसर मेस भी वैसी ही हैमेस का विडियो देख कर लग रहा था कि वहाँ कुछ व्यवस्था नही है और संबन्धित पोस्ट के कमांडिग ऑफिसर लापरवाह किस्म के इंसान है। और जम्मु काश्मीर के अधिकांश मिलिटरी पोस्ट केंप कहने को तो बड़े सतर्क है लेकिन उनकी बाउंड्री वाल टूटी हूई है, वायर फेंसिग जगह जगह से कटी फटी है पोस्ट के अंदर भी बिल्डिंगो का मेंटेनेंस नही दिखता है यह बात मैने नागरोटा कैंप की टीवी मिडिया तस्वीरो में देखी और इसलिए आंतकियो के लिए साफ्ट टारगेट है।
            तेज बहादुर एक व्यवस्था से नाराज आदमी है अपने हक के लिए बोलना व लड़ना चाहता है ऐसा वो जाहिर है पहले भी कर चुका है जिस पोस्ट पर वह आया था वहाँ 10 वे दिन ही उसने व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठा दी। अपने पहले के अनुभव से वो जानता था कि शिकायत करने से उसी के खिलाफ कार्यवाही होगी व उसे प्रताड़ित किया जाएगा। इसलिए उसने अबकी बार सोशल मिडिया का सहारा लिया। उसने वीआरएस के लिए भी अप्लाय कर रखा था और 31 जनवरी 2017 को उसका रिटायरमेंट भी है हो सकता है इसिलिए उसने हिम्मत की हो । पर जो भी कुछ है उसके विडियो में उसकी बात में सचाई है। बाद में एक बीएसएफ रिटायर्ड सबइंस्पेक्टर का विडियो और आया है सीआरपीएफ के एक जवान ने भी ऐसा ही विडियो डाला है और सरकार को यह समझना चाहिये कि आज फौज के इस कठिन अनुशासन की वजह से जवान बदइंतजामी के खिलाफ आवाज नही उठा सकता इसलिए वीआरएस के लिए अप्लाय करने वालो की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है।

            आज के हालात में इस द्रुत गति से चलते संचार माध्यम  सोशल मिडिया के जमाने में समस्याओं को त्वरित तरीके से निपटाने की अहम जरुरत है बजाय उसको ढकाने या छिपाने के।
उम्मीद है तेज बहादुर की हिम्मत व्यर्थ नही जाएगी।




शनिवार, 7 जनवरी 2017

महिलाओं की रक्षा कौन करेगा ?

           बेंगलुरु में 31 दिसम्बर 2016 की शाम को हजारो की तादाद में युवा लोग हर साल की तरह नये साल का आगमन करने के लिए एम जी रोड एवं ब्रिगेड रोड पर इक्कठा होने लगे। हर कोई खुश था नये साल के जश्न में मस्त था। इस भीड़ में युवा लड़के, लड़कियां, नवविवाहित युगल और टीनएजर, स्कूली बच्चे और अपने युवा माता पिता के साथ उनके छोटे बच्चे भी शामिल थे। जैसे जैसे शाम गहराती गयी पब, रेस्टोरेंट और सड़क पर भीड़ बढ़ती गयी।


           इस भीड़ में कुछ कुंठित, बदमाश और घिनोने लोग भी शामिल थे यह बात जश्न में डूबे नवयुवा नही जानते थे। आधी रात लगभग  हैवानियत का नंगा नाच शुरु हो गया। इन गुंडो के झुंड देखते ही देखते लड़कियों महिलाओ को छेड़ने लगे, पकड़ने लगे, उनके कपड़े खिंचने लगे लड़कियां  इधर उधर भागने लगी, उनके साथ के पुरुष उनको बचाने की चेष्टा करते रहे। कुल 1200 पुलिस वाले जैसे तैसे भाग भाग कर हजारो की भीड़ में इन गुंडो को तितर बितर करने की असफल प्रयास करते रहे। 



           यदि किसी को याद हो तो सन 1 जनवरी 2008 में मुम्बई में भी जे एम मेरियट होटल के पास ऐसा वाकया हो चुका है। जिसको लेकर उस समय काफी बवाल मचा था। आश्चर्य़ की बात यह है कि तब भी मुम्बई पुलिस अधिकारियों ने ऐसा ही बयान दिया था जैसा आज बेंगलुरु पुलिस दे रही है कि हमारी तरफ से पुरी व्यवस्था की गयी थी हमारे जवान पर्याप्त संख्या में थे और हमारे स्तर पर कोई लापरवाही नही की गयी।
            इसी रात को नये साल का जश्न कुछ नये अंदाज में मनाने के लिए युवा कपल्स ने एक ट्रेकिंग वेब साइट के जरिये  लोनावाला (पुने) के नजदीक विसापुर फोर्ट में ट्रेकिंग बुक की। जब ये कपल वहाँ पहुँचा तो लगभग 25 कपल और मौजुद थे। रात लगभग 9-10 बजे 10-12 लोग जिनमें एक महिला भी थी वहाँ आये और ट्रेकिंग दल के पुरुष सदस्यो को डंडे व बेल्ट से पीटा।  महिलाओं से अभ्रद हरकते की। उन्होने बताया कि वे फोर्ट लवर ग्रुप के सदस्य है और विसापुर फोर्ट में किसी को गंदगी नही फैलाने देते है। गांव वालो की मदद से उन लोगो से पीछा छुड़ाया गया। इस घटना की पुलिस कम्पलेंट भी की गयी है।



                            उपरोक्त सारी घटनाए बताती है कि महिलाओं के साथ कही भी कभी भी कोई घटना घट सकती है पुरुष मित्र साथ होने पर भी गुंडो से निपटना आसान नही होता है। इसिलिए निर्भया जैसे कांड रोज होते है। सरकारे आती है जाती है घटनाओं से कोई सबक नही लेता ना तो सरकार ना ही जनता। कल हम सब फिर भूल जाएगे किसी अगली घटना के इंतजार में। निर्भया फंड का 1000 करोड़ का इस्तेमाल आज लगभग चार साल बीतने के बाद भी नही हो पाया है। इस समस्या का सिर्फ एक ही हल है वो यह कि लड़कियों को खुद अपनी सुरक्षा के लिए आत्म निर्भर होना होगा।

आप किसी इवेंट में शामिल होने जा रहे है जहाँ काफी भीड़ भाड़ होने वाली है। आप भरपुर खुशी के साथ जश्न मनाना चाहती है या फिर आप अपने काम पर जा रही है। आप कॉल सेंटर में काम करती है या हॉस्पिटल में या फिर किसी स्कूल में टीचर है आपके काम के घंटे आपको वक्त बेवक्त घर से निकलने पर मजबूर करते है। लेकिन घर से निकलने के पहले आप यह भी ध्यान रखें कि कुछ गलत लोग समाज में ऐसे है जिनकी जश्न और खुशी मनाने के पैमाने आप से बिल्कुल अलग है वो लोग आपको कही भी कभी भी मिल सकते है। वो अकेले भी हो सकते है भीड़ में भी। जैसा की हम सब समझते है हमारी प्रशासनिक व्यवस्था में पुलिस जनता की सुरक्षा जब नेताओं की सुरक्षा से फुरसत मिले तब ही कर सकती है तब सिर्फ एक ही उपाय है हमको अपने आपको सक्षम, सबल बनाना होगा। पिंक की अभिनेत्री तापसी पन्नू ने अभी हाल ही में दिये इंटरव्यू में कहा है कि जो कि बेंगलुरु में हुआ उसकी जितनी निंदा की जाए कम है लेकिन मैं चाहुँगी की हम सब अपनी सुरक्षा का खुद ख्याल रखे हमको खुदको ही सबल बनाना होगा। फिल्म स्टार अक्षय कुमार ने भी अपने वायरल हो रहे विडियो में ऐसा ही कहा है।
आप क्या करें-
1.       जहाँ जाना है यदि वो नयी जगह है तो ठीक से उसके बारे में अपने दोस्तो से पता कर ले। आने जाने का रास्ता भी गुगल मेप में न सिर्फ चेक करे बल्कि उसे ऑफ लाइन मोड में सेव भी कर ले। जिससे नेटवर्क न होने की स्थिति में आपको दिक्कत न हो।
2.       घर से ज्यादा देर तक बाहर जाने का यदि तय हो तो मोबाइल को फुल चार्ज कर ले। अच्छा हो यदि आप एक पावर बैंक इमरजेंसी के लिए साथ रखे। मोबाइल में इमरजेंसी के लिए स्पीड डायल में घर के सदस्यो के नंबर रखे। लोकल थाने का नंबर भी हमेशा स्पीड डायल में रखे।
3.       आप हमेशा सतर्क रहे  चाहे आप सड़क पर हो या श़ॉपिंग म़ॉल में या फिर सिनेमा ह़ॉल में अपने आस पास चारो तरफ निगाह रखे और बीच बीच में चेक करती रहे। बाहर निकलने के रास्ते का भी ध्यान रखे।
4.       अपने साथ पर्स में छोटा नुकिला हेयर पिन या पेन नाइफ जैसी चीज जरुर रखे। देहली में सीआईएसएफ ने महिलाओं के लिए मेट्रो आदि में छोटा चाकू लेकर चलना मान्य किया है।
5.       एक पीपर स्प्रे जरुर रखे। यदि आप अफोर्ड कर सकती है तो एक स्टनिंग गन भी रख सकती है जो टार्च के समान होती है एवं आप दूर से ही एक से अधिक व्यक्तियों पर भी अटेक कर रोक सकती है।
6.       आटो या टेक्सी में बैठते समय उसके नंबर का फोटो जरुर अपने मोबाइल में ले यदि उसकी कोई गलत मंशा है तो भी वह ऐसा कुछ करने के पहले 10 बार सोचेगा। उसके सामने ही फोन पर चाहे झूठमूठ ही सही बताये कि फलां जगह से मैने आटो लिया है मैं इतने समय तक घर पहुँच जाउंगी।
7.       सड़क के दाये चले, जिससे ट्रेफिक आपके सामने से आये, पैदल चलने वाले भी सामने से आयेगे, यदि वे कुछ कमेंट करते तो आप उनको पहचान सकेगी।
8.       यदि आप पार्टी में है और ड्रिंक कर रही है तो हमेशा ध्यान रखे की जिस बाटल से ड्रिंक सर्व किया जा रहा है वह बाटल सील पेक ही हो। आप कभी भी अपना ड्रिंक छोड़े नही ना ही टेबल पर छोड़कर कही बाहर जाये। यदि ऐसा हो तो वापिस आने पर नया ड्रिंक ले। किसी भी हालत में जरुरत से ज्यादा ड्रिंक ना करें।
9.       याद रहे कि असामाजिक तत्व जानते है कि वे गलत काम कर रहे है इसलिए उनका आत्म विश्वास भी कम होता है। अतः जब आपको लगता है कि वो आपका पीछा नही छोड़ रहा है तो उसको आंख से आंख मिला कर चुनौती दे।
10.   आप फिट ओर तंदुरुस्त रहे। आपकी बॉडी लेंगवेज ठीक व आत्म विश्वास से भरपूर होना चाहिये।
11.   आप अपनी सुरक्षा के लिए बचाव के कुछ स्टेप जरुर प्रेक्टिस करे। अच्छा हो यदि आप अपने ग्रुप की लड़कियों के साथ इन स्टेप्स की प्रेक्टिस नियमित करती रहे इससे आप फिट रहेगी और आपका आत्म विश्वास अच्छा रहेगा कोई भी प्रतिकूल स्थिति होने पर आप अच्छी तरह उससे निपट सकेगी। आपकी सहुलियत के लिए देहली पुलिस की तरफ से जारी एक यू ट्यूब लिंक दी जा रही है जिसकी सहायता से आप सड़क छाप गुंडो से अपने बचाव की कुछ स्टेप्स सीख सकती है।