बुधवार, 22 मई 2019

भारत में चुनाव प्रक्रिया और ईवीएम का सच

अब चुनाव सम्पन्न हो गये है एक्सिट पोल भी आ रहे है लेकिन एक जो बात खासतौर से विपक्ष करने में लगा हुआ है वो यह कि ईवीएम में गड़बड़ की जा सकती है या फिर ईवीएम हेक हो सकती है इससे चुनाव परिणाम प्रभावित हो सकते है। वैसे जो भी हार रहा है वो अपनी हार स्वीकार करने के बजाय उस हार का ठीकरा कहीँ और फोड़ना चाहता है लेकिन फिर भी दुष्प्रचार से कभी कभी सामान्य जन जो चुनाव प्रक्रिया से वाकिफ नही है सोचने लगते है कि हो सकता है ईवीएम में हेराफेरी की गयी हो वरना कोई पार्टी आज के जमाने में 350-400 सीट से कैसे जीत सकती है।
मै यह बताना चाहता हूँ कि मेरे शासकीय सेवा काल में मैने लगभग सभी लोकसभा व विधान सभा चुनाव में अनेक पदो पर सक्रियता से कार्य किया है खासतौर से प्रोटोकॉल ऑफिसर के पद पर लोकसभा व विधान सभा दोनो ही चुनाव में बाहर से आये आईएएस ऑबजरवर के साथ काम करना बड़ा चुनौती पूर्ण है। दरअसल जिले में होने वाले सम्पूर्ण चुनाव के प्रोसिजर पर ऑबजरवर की कड़ी निगाह होती है और जिला निर्वाचन अधिकारी यानी जिला कलेक्टर की सांसे उसकी हर निगाह पर अटकी होती है। विधान सभा में हर विधान सभा के लिए अलग अलग ऑबजरवर होते है इसके साथ ही एक ऑबजरवर जो कि आईआरएस अधिकारी होते है वे उम्मीदवार के द्वारा किये जा रहे खर्च पर नजर रखते है। कई विडियोग्राफर एसएसटी व अन्य अधिकारियों के साथ तैनात होते है जो प्रतिदिन उम्मीदवार द्वारा की जाने वाली रैली, स्टार प्रचारको के भाषण, रैली में आने वाली गाड़ियो आदि कि रोज रिकार्डिंग करते है। उम्मीदवारो द्वारा समय समय पर चुनाव खर्च का विवरण दिया जाता है एवं एक्सपेन्डिचर ऑबजरवर इसका मिलान उक्त विडियो रिकार्डिंग, समाचार पत्रो की कटिंग व इस कार्य में ड्यूटी दे रहे अधिकरियों की जानकारी से मिलान कर के अप्रूव करते है या फिर उसका अपने स्तर से निर्धारण करते है।
चुनाव की घोषणा होने के पहले ही जिले में मौजूद ईवीएम की कलेक्टर कार्यालय में ईवीएम हेतु बने स्ट्राँग रुम चेकिंग शुरु हो जाती है जो विज्ञान के प्रोफेसर, इंजिनियर ऐसे अधिकारियों को ईवीएम चेकिंग की लिए ड्यूटी पर लगाया जाता है जो लगभग एक सप्ताह में सारी ईवीएम चेक करके जो ईवीएम बराबर चल रही उसकी रिपोर्ट कलेक्टक को देते है एक एडीएम स्तर के अधिकारी हमेशा इस कार्य की निगरानी करते है। अगर जिले की आवश्यकता से ईवीएम कम है तो रिक्विजिशन भेज कर समय से पहले ही आपूर्ति की जाती है । इसके बाद चुनाव घोषणा होने पर फिर एक बार सारी ईवीएम चेक करते है उसकी बेटरी वगैहर रिप्लेस करते है और मॉक पोल करके चेक की जा ती है। यह प्रक्रिया ऑबजरवर की निगरानी में की जाती है वे कई बार स्ट्रांग रुम में आते है और रेंडम मशीन खुदके सामने चेक करते है।

                                   

         
                                    


हर ईवीएम का एक स्पेसिफिक नम्बर होता है जैसा सब जानते है दो यूनिट होती है एक जिससे मत डाला जाता है और एक कंट्रोल यूनिट जिससे मत रिलिज किया जाता है दोनो मशीने स्पेशल केस में रखी जाती दोनो पर एक ही स्पेसिफिक नंबर होता है जोकि मशीन की पहचान होती है। आजकल इसमे वीवीपेट भी जुड़ गयी है और अब कुल तीन यूनिट होती है। ये सारी ईवीएम चुनाव में मतदान सामग्री वितरण केन्द्र पर बने स्पेशल स्ट्रांग रुम जिसकी सभी खिड़कियाँ रोशनदान व दरवाजे ईंट सीमेंट से चिनवा दिये जाते है सिर्फ एक दरवाजा छोड़कर जिस पर जो लाक लगाया जाता है।

                                      


उस पर जिला निर्वाचन अधिकारी और जितने उम्मीदवार होते है उन सब पार्टियों के उनके अध्यक्ष द्वारा नामांकित प्रतिनिधियों के दस्तख्त से सील लगायी जाती है जो उस दरवाजे पर चस्पा की जाती है। जिला अधिकारी द्वारा जिले के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों की सूची चुनाव में ड्यूटी लगायी जाने के लिए हर विभाग से मांगी जाती है। हमेशा जिले की एक तहसील में कार्यरत अधिकारियों की ड्यूटी दूसरी तहसील में लगायी जाती है। जिला निर्वाचन अधिकारी, सभी ऑबजरवर एवं अन्य सभी उच्चाधिकारियों की निगरानी में और सभी उम्मीदवार या उनके प्रतिनिधीयों के समक्ष एक स्पेशल सॉफ्टवेयर से चुनाव अधिकारियो की पोलिंग पार्टियां बनायी जाती है यह बिल्कुल रेंडम होता है और किस अधिकारी के साथ कौन सा दूसरा कर्मचारी या अधिकारी जायेगें यह कम्यूटर सॉफ्टवेयर से होता है। इसके बाद कौन सी पार्टी किस बूथ पर जायेगी यह भी चुनाव आयोग द्वारा निर्मित रेंडम सॉफ्टवेयर की मदद से सबके समक्ष किया जाता है। इस सबके बाद सभी अधिकारियों को सामग्री वितरण केन्द्र पर उनके पोलिंग बूथ पर जाने से संबन्धित आदेश व चुनाव कार्य की सारी सामग्री जिसमें मुख्यतः आपकी ईवीेएम व वीवीपेट मशीन स्ट्रांगरुम से निकाली जा कर वितरित की जाती है। कौन सी मशीन किस पार्टी को दी जाना है किस बूथ पर जायेगी यह भी रेंडम सॉफ्टवेयर से पहले ही तय किया होता है।
अब सवाल उठता है कि इतनी चेकिंग के बाद भी ईवीएम मशीन की शिकायत की काम नही कर रही क्यो आती है। आपने देखा होगा कि ज्यादातर ईवीएम मशीने सुबह ही चालू नही हो पाती एवं इस कारण से बूथ पर वोटिंग देर से शुरु होती है। इसका 75-80 प्रतिशत कारण यह है कि जो प्रिसाईडिंग ऑफिसर है उसने ट्रेनिंग के समय ठीक से मॉक पोल करना व मशीन को सील करना नही सीखा। ज्यादातर पोलिंग पार्टी के दूसरे सदस्य जो पहले चुनाव करा चुके है एवं ईवीएम मशीन को पार्टी प्रतिनिधियों के सामने ठीक से सील कर देते है, लेकिन जब पोलिंग पार्टी पूरी नयी होती है उसमें यह समस्या हमेशा आती है मैंने जोनल ऑफिसर के रुप में कई बार इस समस्या का सामना किया है अक्सर जब मैं अपने क्षेत्र में एक दिन पहले ही जान लेता था कि मेरी सभी पोलिंग पार्टियां अपने काम में दक्ष है या नही और जो कमजोर होते थे मैं सबसे पहले उनके पोलिंग बूथ पर पहुँच कर मॉक पोल करवाने और मशीन सील करने मे उनकी मदद कर देता था। ज्यादातर अधिकारी चुनाव ड्यूटी से डरते है और घबराहट में भी सही काम नही कर पाते।

चुनाव के बाद सभी पोलिंग पार्टी के सदस्य निर्धारित बस जो उनको पोलिंग बूथ पर छोड़कर आती है उसी से वापिस आते है बस में उस रुट के लगभग 10-12 पोलिंग पार्टियां होती है जो एक साथ सामग्री कलेक्शन सेंटर पर आती है। चुनाव पर प्रिसाईडिंग ऑफिसर व पोलिंग पार्टी व पूरी चुनाव प्रक्रिया पर नजर रखने के लिए माइक्रो ऑबजरवर की ड्यूटी भी लगायी जाती है जो कि सेंट्रल गवरमेंट के अधिकारी होते है। वे दिन भर पोलिंग बूथ पर बैठते है और सारी चुनाव की प्रक्रिया पर नजर रखते है वे अपनी रिपोर्ट एक निर्धारित फार्म में सीधे ऑबजरवर को देते है।


जब सामग्री और ईवीएम मशीन जमा की जाती है तो देखा जाता है कि ईवीएम मशीन पर सील वगैरह ठीक से लगी है या नही। सील के टूटे पाये जाने पर उस बूथ पर फिर से चुनाव करवाने की सिफारिश ऑबजरवर द्वारा चुनाव आयोग को उसकी रिपोर्ट में की जाती है। ईवीएम मशीन ले जाने के लिए सामग्री संकलन केन्द्र से स्ट्रांगरुम तक एक विशेष कॉरिडोर बनाया जाता है जिससे कर्मचारी ईवीएम मशीन को सीधे ले जाकर स्ट्रांग रुम में रखते है। जब सारी ईवीएम मशीन जिले के सारे पोलिंग बूथ की जमा हो जाती है तो जिला निर्वाचन अधिकारी एवं लगभग सभी अन्य अधिकारियों सारे पोलिटिकल पार्टियों के प्रतिनिधियों एवं सेंट्रल ऑबजरवर के सामने स्ट्रांग रुम लॉक करके सील कर दिया जाता है। स्ट्रांग रुम के चारो तरफ थ्री टियर सिक्यूरिटी होती है जिसमें पेरा मिलिटरी एवं लोकल पुलिस दोनो शामिल होती। सिक्यूरिटी न सिर्फ स्ट्राग रुम के दरवाजे के बाहर बल्कि उस बरामदे एवं बिल्डिंग जहाँ स्ट्रांग रुम है उसके बाहर भी होती हे।




इसके बाद जिस दिन काउंटिंग होना है उसी दिन सबकी मौजूदगी में स्ट्रांग रुम के दरवाजे खुलते है। सभी पोलिटकल पार्टियोे के प्रतिनिधी तसल्ली करते है कि उनके दस्तख्त वाली सील ठीक है या नही उसके बाद दरवाजा खोला जाकर हर तहसील के काउंटिंग रुम में उस तहसील की ईवीम पहुँचायी जाती है। जितनी टेबल काउंटिंग रुम में होती है एक बार में उतनी ही ईवीएम मशीन पहूँचायी जाती है। काउंटिंग रुम में कम से कम दो तरफ जाली लगा कर पोलिटिकल पार्टियों के प्रतिनिधियों द्वारा काउंटिग कार्य देखने के लिए व्यवस्था की जाती है उक्त कक्ष में पोलिटकल पार्टी के अध्यक्ष जिनको काउंटिंग में उपस्थित रहने का पत्र पहले से जारी करते है वे उस जाली के बाहर से सारी काउंटिंग की प्रक्रिया देखते है।




हर राउंड की काउंटिंग के बाद कक्ष में मौजूद नियंत्रण अधिकारी बोर्ड पर मतो की गणना लिखते है व चार्ट में एंट्री करते है। जिला निर्वाचन अधिकारी , ऑबजरवर सभी पूरे समय मौजूद रहते है एवं जीतने वाले उम्मीदवार को उसी समय प्रमाणपत्र जारी करते है।


चुनाव आयोग द्वारा विस्त़त नियम बनाये गये है जिनका अनुसरण कड़ाई से किया जाता है। हर प्रक्रिया पारर्दशी है एवं हर महत्वपूर्ण स्टेप पर या तो उम्मीदवार खुद या उनके प्रतिनिधी न सिर्फ मौजूद रहते है बल्कि हर स्तर पर उनके दस्तख्त भी लिये जाते है। इसके उपरांत भी अगर राजनितिक पार्टियां ईवीएम में गड़बड़ी की आंशका जताती है तो वे सिर्फ आपका ( वोटर ) का अपमान कर रही है।
मुझे गर्व है कि अपनी शासकीय सेवा में अनेक बार भारत के सबसे ज्यादा पारर्दशी, कठोर नियमो से युक्त प्रोफशनल चुनाव आयोग के तहत काम करने का मौका मिला। चुनाव कार्य में चुनाव आयुक्त से लेकर सबसे छोटा कर्मचारी निर्धारित टाईम लाईन में कुशलता से अपना सर्वोच्च देकर लोकतंत्र के पावन यज्ञ में अपनी आहुति देता है। राजनितिक दलो को यह याद रखना चाहिये चुनाव आयोग व उसकी प्रक्रिया पर अविश्वास यह उन सभी अधिकारियों और कर्मचारियों का भी अपमान है।