भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु
ने आधी रात को तिरंगा फहराते हुए कहा कि “At the stroke of the midnight
hour, when the world sleeps, India will awake to life and freedom.” उस समय आजादी ही
हमारी सबसे बड़ी जरुरत थी। देश की बुनियाद भारत पाकिस्तान के विभाजन पर रखी गयी थी
जो कि गांधी जी और जवाहरलाल नेहरु की सबसे बड़ी गलती थी। हिन्दु मुस्लिम दंगो ने
पेशावर से लेकर दिल्ली तक नफरत खून कत्लो गारत की ऐसी होली खेली गयी कि देश कई
दिनो तक इसका सदमा बर्दाश्त करता रहा।
सन 1945 में एक महत्वाकांक्षी मलयाली नौजवान एम ओ मथाई ने नेहरु को एक खत
लिखकर उनके साथ काम करने की इच्छा जताई। नेहरु ने उसे अपने साथा मलाया ट्रिप पर
चलने को कहा। बाद में एम ओ मथाई कुछ दिन आनंद भवन में भी नेहरु के साथ रहे। सन
1946 से वे नेहरु के निजी सचिव का काम नियमति रुप से करने लगे। नेहरु ने एम ओ मथाई
को 15 अगस्त 1947 से नियमित
सरकारी अधिकारी के रुप में अपाइंट करने के लिए उस समय विदेश विभाग के सेक्रेटरी
जनरल गिरिजाशंकर को निर्देश दिये। एम ओ मथाई निर्बाध रुप से जवाहर लाल नेहरु के
निजी सचिव का कार्य करने लगे एवं सभी पत्र मथाई के माध्यम एवं उनकी नोटिंग के साथ
ही नेहरु को पुट अप होते थे। इसी प्रकार कोई भी पत्र उनकी नजर से गुजरे बिना पीएमओ
से बाहर नही निकल सकता था। मथाई नेहरु के निजी सचिव के अलावा पीर, बावर्ची,
भिश्ति, राजदार सबकुछ थे। सन 1978 में मथाई ने एक किताब लिखी “Reminiscences of
Nehru Age” जिसको कांग्रेस
सरकार ने भारत में बेन कर दिया और यह किताब आज भी बेन है। नेहरु ने के
प्रधानमंत्री कार्यकाल में मथाई की ताकत इतनी बढ़ गयी थी कि उन्हे डिप्टी प्राईम
मिनिस्टर तक कहा जाने लगा। हाँलाकि अपनी किताब “Reminiscences of
Nehru Age” में बार बार पैसो के प्रति अपनी निर्लिप्तता प्रदर्शित की
है यहाँ तक वे सेलेरी भी नही लेना चाहते थे लेकिन शायद ऐसा उन्होने अपनी छवि
सुधारने की कोशिश 1978 में किताब लिखकर करी हो क्यों कि मथाई की मर्जी के बगैर कोई
भी बड़े से बड़ा व्यक्ति नेहरु से नही मिल सकता था। कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों नें नेहरु से मथाई की शिकायत
समय समय पर की लेकिन नेहरु हमेशा टाल जाते या कभी कह भी देते की क्या हुआ मथाई
गरीब आदमी है कोई बात नही। अंततः सन 1959 में मथाई को कम्युनिस्ट पार्टी के भारी
दबाव के कारण पद छोड़ना पड़ा। लेकिन आजाद भारत में भ्रष्टाचार की बुनियाद पड़ गयी
थी।
आज़ाद भारत का सबसे
पहला जीप घोटाला सन 1948-49 में हुआ था। पाकिस्तानी हमले के बाद भारतीय सेना को
क़रीब 4500 जीपों की जरूरत थी। इग्लेंड में भारत के उच्चायुक्त वी के कृष्ण मेनन ने
इस सौदे को अंजाम दिया। रक्षा मंत्रालय ने विवादास्पद कंपनियों से समझौते किए और
उन्हें भारी धनराशि अग्रिम भुगतान के रूप में दे दी। उन कंपनियों को 2000 जीपों के
लिए क्रय आदेश दिया गया था लेकिन ब्रिटेन से भारत में 155 जीपों, जो कि चलने की स्थिति में भी नहीं थीं की मात्र एक खेप ही पहुंची। तत्कालीन
विपक्ष ने वीके कृष्णामेनन पर 1948 में जीप घोटाले का गंभीर आरोप लगाया। उन दिनो
विपक्ष नाममात्र को ही था। मामले को रफादफ करने के लिए अनन्तसायनम अयंगर के नेतृत्व में एक जांच कमेटी
बिठा दी गई। 30 सितम्बर 1955 में भारत सरकार ने जांच प्रकरण को समाप्त कर दिया। इनाम
के तौर पर फरवरी 1956 के बाद शीघ्र ही कृष्णामेनन को नेहरू केबिनेट में रक्षा
मंत्री नियुक्त कर दिया गया।
फिरोज गांधी ने सन 1958 में संसद में उद्योगपति हरिदास मूंदड़ा कांड के खिलाफ भारतीय जीवन बीमा
निगम से उनकी कंपनियों के शेयर उंचे दामो पर खरीदे जा कर लाभ पहुंचाने के आरोप
लगाये। मूंदड़ा पर लगभग 160 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के आरोप थे। रिटायर्ड जज
छागला को जांच सौंपी गयी जिन्होने मात्र 24 दिन में जांच रिपोर्ट पेश कर दी हुई
तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी
कृष्णामाचारी ने इस्तिफा दे दिया।
हरिदास मूंदड़ा को 22 साल की सजा हुई। मेरा ख्याल है कि आजाद भारत की यह पहली ओर
आखिरी जांच रिपोर्ट थी जो सबसे कम समय में न सिर्फ पूरी हुई बल्कि आरोपी को इस
रिपोर्ट के आधार पर सजा भी हुई।
नागरवाला कांड इंदिरा गांधी के शासनकाल के दौरान 24 मई 1971 में एक रहस्यमय घोटाले के रुप में जाना जाता है। स्टेट बैंक
ऑफ इंडिया संसद मार्ग दिल्ली के मुख्य कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा को बैंक के चालू होने के कुछ समय बाद ही एक फोन
आया। फोन पर कहा गया कि मैं पीएन
हक्सर बोल रहा हूँ प्राइम मिनिस्टर इंदिरा गांधी बात करेगी। मुख्य कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा को कहा गया
कि बंगला देश के गोपनीय मिशन के लिए ₹ 60 लाख की तुरन्त
जरुरत है और आप एक आदमी जो आपको कोड “बंगला देश का
बाबू” बतायेगा उसे आपको यह रुपया देना है। एक बात जो
बहुत कम लोग जानते है कि मुख्य कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा प्राइम मिनिस्टर रिलीफ
फंड की कमेटी का मेम्बर था और अक्सर इससे संबन्धित कार्यो के लिए प्राइम मिनिस्टर निवास पर जाता रहता था ओर इस
कारण से वह पीएन हक्सर एवं इंदिरा गांधी से परिचित भी था।
आदेश मिलते ही मुख्य
कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा ने अपने असिस्टेंट की सहायता से ₹ 60 लाख का केश
बाक्स तैयार करवाया और बैंक के कर्मचारियों की मदद से कार में रख कर बैंक के बाहर
उस व्यक्ति का इंतजार करने लगा जिसे उसे रुपये देने थे। थोड़ी ही देर में एक ऊंची
कद काठी का अधेड़ व्यक्ति ने पास आकर कहा “बंगला देश का
बाबू” मुख्य कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा ने कहा मैं “भारत का बाबू” वह व्यक्ति मुख्य
कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा के साथ कार में बैठकर टेक्सी स्टेंड तक गया एवं बाक्स
उसने एक टेक्सी में रख कर चला गया। मुख्य कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा प्राइम
मिनिस्टर आवास पर वाउचर साइन कराने पहुँचा तो वहाँ बताय गया की इंदिरा गांधी वहाँ
नही है। तब वह पार्लियामेंट गया वहाँ भी इंदिरा गांधी उसे नही मिली तब तक मुख्य
कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा के असिस्टेंट केशियर राम प्रकाश बत्रा ने मुख्य
कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा के देर तक नही आने से घबरा कर पुलिस में कम्पलेंट
दर्ज करा दी। मुख्य कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा पार्लियामेंट में इंदिरा गांधी के
सचिव पीएन हक्सर से मिला उनको तब तक सारे मामले की जानकारी हो चुकी थी उन्होने मुख्य
कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा को पुलिस में जाने की सलाह दी। ₹ 60 लाख
ले जाने वाला व्यक्ति सोहराब रुस्तम नागरवाला एक 50 साल का एक्स आर्मी
आफिसर था। ऐसा कहा जाता है कि उस समय पूर्वी पाकिस्तान की सीमा से लगे भारतीय
इलाके में बंगला देश मुक्ति वाहिनी के ट्रेनिंग केम्प चल रहे थे, नागरवाला आर्मी बीएसएफ और रॉ का कम्बाइन्ड एजेंट था एवं मुक्ति वाहिनी ट्रेनिंग
केम्पो के लिए हथियार पैसा ओर जरुरी सामग्री पहुँचाने की जिम्मेदारी उसकी थी।
लेकिन पुलिस कम्प्लेंट के बाद 24 मई 1971 को जंगल की आग की तरह यह खबर पूरी दिल्ली में फेल
गयी। सभी मिडिया अखबारो के प्रतिनिधी पुलिस थानो पार्लियामेंट हाउस राजनितिक हल्को
में चक्कर लगाने लगे।
रात लगभग 9.30 पर सोहराब रुस्तम नागरवाला ₹ 60 लाख सहित एक इनवेस्टिंग आफिसर एससीपी डीके कश्यप द्वारा अरेस्ट कर लिया गया। सोहराब
रुस्तम नागरवाला को उसके इकबाले जुर्म की बिना पर 4 साल की सजा और ₹ 1000 जुर्माना हुआ। लेकिन कुछ दिन बाद ही उसने रि ट्रायल
की मांग सेशन कोर्ट से की नवंबर 1971 में नागरवाला ने फिर एक अपील की मुख्य कैशियर
वेद प्रकाश मल्होत्रा के जाँच के बाद ही उसकी ट्रायल शुरु की जाए। 20 नवंबर 1971
को इनवेस्टिंग आफिसर एससीपी डीके कश्यप की
मौत एक कार एक्सीडेंट में रहस्यमय तरीके से हो गयी। नागरवाला ने जेल से कंरट के
संपादक को एक इंटरव्यू देने के लिए पत्र लिखा। लेकिन कंरट के संपादक उस समय नही आ
सके और फरवरी 1972 में नागरवाला तबियत खराब होने के कारण तिहाड़ जेल के अस्पताल
में भरती हुआ। कुछ दिनो बाद उसे गोविंद वल्लभ पंत हास्पिटल में भेज दिया गया। 2
मार्च 1972 को लंच के बाद दोपहर लगभग 2 बजे नागरवाला भी रहस्यमय तरीके से इस
दुनिया को अलविदा कह गये। उसके साथ इस कांड से जुड़े सारे राज दफ़न हो गये।
कहानी अभी बाकी है दोस्तों..............