मंगलवार, 29 नवंबर 2016

आजाद भारत के भ्रष्ट्राचार की कहानी पार्ट-1

भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने आधी रात को तिरंगा फहराते हुए कहा कि   “At the stroke of the midnight hour, when the world sleeps, India will awake to life and freedom.”  उस समय आजादी ही हमारी सबसे बड़ी जरुरत थी। देश की बुनियाद भारत पाकिस्तान के विभाजन पर रखी गयी थी जो कि गांधी जी और जवाहरलाल नेहरु की सबसे बड़ी गलती थी। हिन्दु मुस्लिम दंगो ने पेशावर से लेकर दिल्ली तक नफरत खून कत्लो गारत की ऐसी होली खेली गयी कि देश कई दिनो तक इसका सदमा बर्दाश्त करता रहा।
सन 1945 में एक महत्वाकांक्षी मलयाली नौजवान एम ओ मथाई ने नेहरु को एक खत लिखकर उनके साथ काम करने की इच्छा जताई। नेहरु ने उसे अपने साथा मलाया ट्रिप पर चलने को कहा। बाद में एम ओ मथाई कुछ दिन आनंद भवन में भी नेहरु के साथ रहे। सन 1946 से वे नेहरु के निजी सचिव का काम नियमति रुप से करने लगे। नेहरु ने एम ओ मथाई को 15 अगस्त 1947 से नियमित सरकारी अधिकारी के रुप में अपाइंट करने के लिए उस समय विदेश विभाग के सेक्रेटरी जनरल गिरिजाशंकर को निर्देश दिये। एम ओ मथाई निर्बाध रुप से जवाहर लाल नेहरु के निजी सचिव का कार्य करने लगे एवं सभी पत्र मथाई के माध्यम एवं उनकी नोटिंग के साथ ही नेहरु को पुट अप होते थे। इसी प्रकार कोई भी पत्र उनकी नजर से गुजरे बिना पीएमओ से बाहर नही निकल सकता था। मथाई नेहरु के निजी सचिव के अलावा पीर, बावर्ची, भिश्ति, राजदार सबकुछ थे। सन 1978 में मथाई ने एक किताब लिखी “Reminiscences of Nehru Age”  जिसको कांग्रेस सरकार ने भारत में बेन कर दिया और यह किताब आज भी बेन है। नेहरु ने के प्रधानमंत्री कार्यकाल में मथाई की ताकत इतनी बढ़ गयी थी कि उन्हे डिप्टी प्राईम मिनिस्टर तक कहा जाने लगा। हाँलाकि अपनी किताब “Reminiscences of Nehru Age”  में बार बार पैसो के प्रति अपनी निर्लिप्तता प्रदर्शित की है यहाँ तक वे सेलेरी भी नही लेना चाहते थे लेकिन शायद ऐसा उन्होने अपनी छवि सुधारने की कोशिश 1978 में किताब लिखकर करी हो क्यों कि मथाई की मर्जी के बगैर कोई भी बड़े से बड़ा व्यक्ति नेहरु से नही मिल सकता था। कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों नें नेहरु से मथाई की शिकायत समय समय पर की लेकिन नेहरु हमेशा टाल जाते या कभी कह भी देते की क्या हुआ मथाई गरीब आदमी है कोई बात नही। अंततः सन 1959 में मथाई को कम्युनिस्ट पार्टी के भारी दबाव के कारण पद छोड़ना पड़ा। लेकिन आजाद भारत में भ्रष्टाचार की बुनियाद पड़ गयी थी।

आज़ाद भारत का  सबसे पहला जीप घोटाला सन 1948-49 में हुआ था। पाकिस्तानी हमले के बाद भारतीय सेना को क़रीब 4500 जीपों की जरूरत थी। इग्लेंड में भारत के उच्चायुक्त वी के कृष्ण मेनन ने इस सौदे को अंजाम दिया। रक्षा मंत्रालय ने विवादास्पद कंपनियों से समझौते किए और उन्हें भारी धनराशि अग्रिम भुगतान के रूप में दे दी। उन कंपनियों को 2000 जीपों के लिए क्रय आदेश दिया गया था लेकिन ब्रिटेन से भारत में 155 जीपों, जो कि चलने की स्थिति में भी नहीं थीं की मात्र एक खेप ही पहुंची। तत्कालीन विपक्ष ने वीके कृष्णामेनन पर 1948 में जीप घोटाले का गंभीर आरोप लगाया। उन दिनो विपक्ष नाममात्र को ही था। मामले को रफादफ करने के लिए  अनन्तसायनम अयंगर के नेतृत्व में एक जांच कमेटी बिठा दी गई। 30 सितम्बर 1955 में भारत सरकार ने जांच प्रकरण को समाप्त कर दिया। इनाम के तौर पर फरवरी 1956 के बाद शीघ्र ही कृष्णामेनन को नेहरू केबिनेट में रक्षा मंत्री नियुक्त कर दिया गया।
फिरोज गांधी ने सन 1958 में संसद में उद्योगपति  हरिदास मूंदड़ा कांड के खिलाफ भारतीय जीवन बीमा निगम से उनकी  कंपनियों के शेयर  उंचे दामो पर खरीदे जा कर लाभ पहुंचाने के आरोप लगाये। मूंदड़ा पर लगभग 160 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के आरोप थे। रिटायर्ड जज छागला को जांच सौंपी गयी जिन्होने मात्र 24 दिन में जांच रिपोर्ट पेश कर दी हुई तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामाचारी ने इस्तिफा दे दिया। हरिदास मूंदड़ा को 22 साल की सजा हुई। मेरा ख्याल है कि आजाद भारत की यह पहली ओर आखिरी जांच रिपोर्ट थी जो सबसे कम समय में न सिर्फ पूरी हुई बल्कि आरोपी को इस रिपोर्ट के आधार पर सजा भी हुई।

नागरवाला कांड  इंदिरा गांधी के शासनकाल के दौरान 24 मई 1971 में एक रहस्यमय घोटाले के रुप में जाना जाता है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया संसद मार्ग दिल्ली के मुख्य कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा  को बैंक के चालू होने के कुछ समय बाद ही एक फोन आया। फोन पर कहा गया कि मैं पीएन हक्सर बोल रहा हूँ प्राइम मिनिस्टर इंदिरा गांधी बात करेगी।  मुख्य कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा को कहा गया कि बंगला देश के गोपनीय मिशन के लिए  60 लाख की तुरन्त जरुरत है और आप एक आदमी जो आपको कोड बंगला देश का बाबूबतायेगा उसे आपको यह रुपया देना है। एक बात जो बहुत कम लोग जानते है कि मुख्य कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा प्राइम मिनिस्टर रिलीफ फंड की कमेटी का मेम्बर था और अक्सर इससे संबन्धित कार्यो के लिए  प्राइम मिनिस्टर निवास पर जाता रहता था ओर इस कारण से वह पीएन हक्सर एवं इंदिरा गांधी से परिचित भी था। 




आदेश मिलते ही मुख्य कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा ने अपने असिस्टेंट की सहायता से   60 लाख का केश बाक्स तैयार करवाया और बैंक के कर्मचारियों की मदद से कार में रख कर बैंक के बाहर उस व्यक्ति का इंतजार करने लगा जिसे उसे रुपये देने थे। थोड़ी ही देर में एक ऊंची कद काठी का अधेड़ व्यक्ति ने पास आकर कहा बंगला देश का बाबूमुख्य कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा ने कहा मैं भारत का बाबू  वह व्यक्ति मुख्य कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा के साथ कार में बैठकर टेक्सी स्टेंड तक गया एवं बाक्स उसने एक टेक्सी में रख कर चला गया। मुख्य कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा प्राइम मिनिस्टर आवास पर वाउचर साइन कराने पहुँचा तो वहाँ बताय गया की इंदिरा गांधी वहाँ नही है। तब वह पार्लियामेंट गया वहाँ भी इंदिरा गांधी उसे नही मिली तब तक मुख्य कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा के असिस्टेंट केशियर राम प्रकाश बत्रा ने मुख्य कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा के देर तक नही आने से घबरा कर पुलिस में कम्पलेंट दर्ज करा दी। मुख्य कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा पार्लियामेंट में इंदिरा गांधी के सचिव पीएन हक्सर से मिला उनको तब तक सारे मामले की जानकारी हो चुकी थी उन्होने मुख्य कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा को पुलिस में जाने की सलाह दी।   60 लाख  ले जाने वाला व्यक्ति सोहराब रुस्तम नागरवाला एक 50 साल का एक्स आर्मी आफिसर था। ऐसा कहा जाता है कि उस समय पूर्वी पाकिस्तान की सीमा से लगे भारतीय इलाके में बंगला देश मुक्ति वाहिनी के ट्रेनिंग केम्प चल रहे थे, नागरवाला आर्मी बीएसएफ और रॉ का कम्बाइन्ड एजेंट था एवं मुक्ति वाहिनी ट्रेनिंग केम्पो के लिए हथियार पैसा ओर जरुरी सामग्री पहुँचाने की जिम्मेदारी उसकी थी। लेकिन पुलिस कम्प्लेंट के बाद 24 मई 1971 को  जंगल की आग की तरह यह खबर पूरी दिल्ली में फेल गयी। सभी मिडिया अखबारो के प्रतिनिधी पुलिस थानो पार्लियामेंट हाउस राजनितिक हल्को में चक्कर लगाने लगे।
रात लगभग 9.30 पर सोहराब रुस्तम नागरवाला 60 लाख सहित एक इनवेस्टिंग आफिसर  एससीपी डीके कश्यप द्वारा अरेस्ट कर लिया गया। सोहराब रुस्तम नागरवाला को उसके इकबाले जुर्म की बिना पर 4 साल की सजा और 1000 जुर्माना हुआ। लेकिन कुछ दिन बाद ही उसने रि ट्रायल की मांग सेशन कोर्ट से की नवंबर 1971 में नागरवाला ने फिर एक अपील की मुख्य कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा के जाँच के बाद ही उसकी ट्रायल शुरु की जाए। 20 नवंबर 1971 को इनवेस्टिंग आफिसर  एससीपी डीके कश्यप की मौत एक कार एक्सीडेंट में रहस्यमय तरीके से हो गयी। नागरवाला ने जेल से कंरट के संपादक को एक इंटरव्यू देने के लिए पत्र लिखा। लेकिन कंरट के संपादक उस समय नही आ सके और फरवरी 1972 में नागरवाला तबियत खराब होने के कारण तिहाड़ जेल के अस्पताल में भरती हुआ। कुछ दिनो बाद उसे गोविंद वल्लभ पंत हास्पिटल में भेज दिया गया। 2 मार्च 1972 को लंच के बाद दोपहर लगभग 2 बजे नागरवाला भी रहस्यमय तरीके से इस दुनिया को अलविदा कह गये। उसके साथ इस कांड से जुड़े सारे राज दफ़न हो गये।
                                                          कहानी अभी बाकी है दोस्तों..............

सोमवार, 21 नवंबर 2016

इंदौर पटना रेल एक्सिडेंट और आपदा प्रबंधन

                              इंदौर से पटना के लिए निकली इंदौर-राजेंद्र नगर एक्सप्रेस (19321) रविवार तड़के 3.10 बजे कानपुर देहात के पुखरायां के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गई। ट्रेन की 14 बोगियां बेपटरी होने से 138 लोगों की मौत हो गई, जबकि 300 लोग घायल हैं। सुबह की गहरी नींद में सोये यात्रियों को पता भी नही चला होगा कि उनके साथ क्या हो गया है। जब तक होश आया उनकी दुनिया उजड़ चुकी थी। 
                           अखबारो की रिपोर्टस् यात्रियों के बयानो से पता चलता है कि ट्रेन के पहिये अजीब सी आवाज़ कर रहे थे। झांसी में यात्रियों द्वारा शिकायत की गयी ट्रेन को दो बार रोक कर चेक भी किया गया। यात्रियो ने बताया की एस-2 एस-1 डब्बों में से ज्यादा आवाज आ रही थी रेल के अधिकारियों को बार बार बताया गया। ड्राइवर जलत शर्मा का कहना है कि उसने झांसी में ही रिपोर्ट दे दी थी लेकिन उसे कहा गया कि ट्रेन कानपुर तक ले जाओ। सबसे पहली बात तो यह है कि अगर ड्राइवर ट्रेन को चलाना सेफ न समझे तो वह उसे चलाने से साफ मना कर सकता था। और यदि उसने आदेश मान भी लिया था तो उसे ट्रेन की खराब स्थिति देखते हुए उसे फुल स्पीड में चलाने की कोई जरुरत नही थी। अगर ट्रेन 40-50 कि.मी. की रफ्तार से चल रही होती तो दुर्धटना में 150 लोगो की मौत नही होती। लेकिन  आश्चर्य की बात है इस सब के बाद भी ड्राइवर ट्रेन को फुल स्पीड पर चलाता रहा जिससे यह दुर्धटना घटित हुई। इस प्रकरण में ट्रेन में ड्यूटी दे रहे सभी रेल अधिकारियों कर्मचारियों गार्ड की लापरवाही दर्शित होती है। 

                          हमेशा हादसे होते है लेकिन सरकार हादसो से सबक नही लेती। खासतौर पर रेल दुर्धटनाओं के बारे में कहा जा सकता है कि  ज तक रेल यात्रा केसे सुरक्षित हो यात्रियों को सामान्य सुविधाएें केसे मिले इस पर कोई काम नही किया है। आजादी के बाद से ही जितने नेताओ के पास रेल मंत्रालय रहा उन्होने अपने संसदीय क्षेत्र में एक दो नई रेल चलाने एवं एक आध रेल्वे से सबंधित कोई फेक्ट्री लगाने के सिवाय कोई काम नही किया। रेल में एक समय में 1500-1600 यात्री होते है दुर्घटना होने पर बहुत अधिक जन हानि होती है कुछ लोग हमेशा के लिए अपंग हो जाते है। राज्य सरकार / केन्द्र सरकार मुवाअजा दे कर पल्ला झाड़ लेती है। अभी यू पी में चुनाव होने वाले है इसलिए राज्य व केन्द्र सरकार दोनो ही जरा एक्टिव है वरना दुर्घटनाग्रस्त यात्रियों की कोई सुध लेने वाला नही होता।  यह सच है  प्राकृतिक आपदा / हादसे टाले नही जा सकते है लेकिन अगर प्रशासन उसके लिए तैयार है तो आपदा के प्रभाव को कम किया जा सकता है। 

                              राष्ट्रीय स्तर पर जून 2016 में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने देश का पहला नेशनल डिज़ास्टर मेनेजमेंट प्लान जारी किया है। देश में नेशनल डिज़ास्टर मेनेजमेंट अथारिटी देहली, नेशनल सिविल डिफेंस स्कूल नागपूर, डिज़ास्टर मेनेजमेंट इन्सटीट्यूट भोपाल जैसी संस्थाए लम्बे समय से कार्यरत है लेकिन  राज्य स्तर पर  तक कोई विशेष कार्यवाही कभी नही की गयी  है। समय समय पर केन्द्र  एवं राज्य सरकारो द्वारा जारी आपदा प्रबंधन सबंधी निर्देशो का जिला स्तर व अनुविभागिय स्तर पर कोई पालन नही किया जाता है इसिलिए इस प्रकार की दुर्धटनाओं में अधिक जन धन हानि होती है। आम आदमी को लगता है कि प्रशासन द्वारा युद्ध स्तर पर हादसे से निपटने के लिए प्रयास किये जा रहे है लेकिन ऐसा होता नही है। विदेशो  में इस प्रकार की आपदा से निपटने के लिए स्थानिय स्तर पर हमेशा कम से कम दो प्लान, प्लान ए व प्लान बी तैयार होता है एवं वे लोग निर्धारित प्लान के हिसाब से कार्य करते है। इसलिए वहाँ जन हानि बहुत कम होती है।
                           आपदा प्रबंधन का कोई भी प्लान तब तक सफल नही है जब तक स्थानिय स्तर - जिला स्तर व तहसील स्तर पर उसकी तैयारी न हो। लगभग 5-6 वर्ष पूर्व में जारी दिशा निर्देशानुसार प्रत्येक जिला स्तर पर एक आपदा प्रबंधन प्रकोष्ठ होना चाहिये जिसका इन्जार्ज एक एस डी एम स्तर का अधिकारी होना चाहिये। इसके लिए एक अलग भवन होना चाहिये एवं पर्याप्त स्टॉफ होना चाहिये। लेकिन मेरी जानकारी में देश के एक भी जिले में इसे आज तक क्रियान्वयित नही किया गया है। जिला स्तर पर कार्यशील आपदा प्रबंधन केन्द्र में कम से कम निम्नानुसार प्रारंभिक जानकारी हमेशा होना चाहिये।
  • जिले के सभी सरकारी एवं प्राइवेट अस्पतालो  की सूचि मय बेड क्षमता, स्पेशलाइजेशन, अार्थोपिडिक, जनरल सर्जन आदि की जानकारी सभी चिकित्सालायों के संचालको के टेलिफोन, मोबाइल नंबर सहित।
  • जिले के सभी मेडिकल स्टोर्स की जानकारी 
  • जिले में उपलब्ध सभी एम्बुलेंस संचालको की जानकारी, सूची एवं उनके ड्राइवरो के नाम व मोबाइल नंबर।
  • जिले की सभी पशु चिकित्सा संस्थाओ की जानकारी सक्षम अधिकारियों के टेलिफोन, मोबाइल नंबर सहित।
  • जिले के सभी लॉ एन्ड ऑर्डर एजेन्सी की सूचि अधिकारियों के टेलिफोन एवं मोबाइल नंबर सहित
  • जिले की सिविक एडमिनिस्ट्रेशन जैसे नगर पालिका नगर निगम आदि के अधिकारियों की सूची, शहर का सिविक प्लान, रोड मेप, कॉलानी की बसाहट, सीवेज प्लान, स्लम एरिया, रेल्वे लाइन के पास की बस्तियां, शहर की घनी बस्तियां की जानकारी आदि।
  • जिले में यदि कोई पेरा मिलिटरी एजेन्सी जैसे सी आर पी एफ आदि के सक्षम अधिकारियों की सूचि।
  • जिले के सभी एन जी ओ एवं सामाजिक संस्थाए जो आपदा के समय मेन पॉवर से मदद कर सके, खाने के पेकेट सप्लाय कर सके, मेडिकल हेल्प कर सके।
  • जिले के सभी गेस वेल्डर्स/कटर्स की सूचि क्योंकी सबसे ज्यादा जरुरत कार, बस या ट्रेन में फंसे घायल लोगो को निकालने में इन्ही की होती है।
  • जिले के सभी क्रेन आपरेटर्स एवं जेसीबी संचालको की सूचि मय टेलिफोन, मोबाइल नंबर सहित।
  • जिले की सभी टेक्सी, बस एवं ट्रक ऑपरेटर्स की सूचि टेलिफोन, मोबाइल नंबर सहित।
  • जिले में उपलब्ध सभी नावों, स्पीड बोट, लाइफ बोट, स्टीमर की जानकारी।
  • समय समय पर जिला प्रशासन के कर्मचारियों एवं अधिकारियों हेतु आपदा प्रबंधन सबंधी प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना।
                               यदि जिला आपदा प्रकोष्ठ पर्याप्त रुप से संगठित है वह त्वरित रुप से एम्बुलेंस डिप्लॉय कर  घायलो को अस्पताल भेज सकता है। उसे यह भी पता कि किस अस्पताल में किस प्रकार के घायलो को भेजना है। अस्पताल की बेड क्षमता मालूम होने से एक ही जगह ज्यादा घायल नही पहुँचेगे व अव्यवस्था की स्थिति निर्मित नही होगी। जो कि हम हमेशा देखते है कि जमीन पर घायल पड़े होते उनको देखने वाले भी कोई नही होते क्योंकि एक ही अस्पताल में सारे घायल भेज दिये जाते है। एक्सपर्ट गेस कटर्स व वेल्डर्स की अधिक संख्या में जरुरत होती है क्योंकि वे ही लोग घायलो को निकाल सकते है। एन जी ओ ऐसे वक्त बहुत मददगार होते है वे पीड़ितो को खाने के पेकेट वितरित कर सकते है, जिन लोगो को ज्यादा चोंट नही है ऐसे लोगो को अपने गंत्वय की ओर जाने के लिए गाइड कर सकते है। जाहिर है क्रेन एवं जेसीबी की जरुरत भी मलवा हटाने डब्बो को एक दूसरे के उपर से हटाने के लिए होती है। समय समय पर जिला प्रशासन के कर्मचारियों एवं अधिकारियों हेतु आपदा प्रबंधन सबंधी प्रशिक्षण कार्यक्रम जिला स्तर या राज्य स्तर पर होते रहने से वे हमेशा आपदा से निपटने के लिए तैयार रहेगे एवं बेहतर तरीके से आपदा से निपट सकेगें।

Courtesy: Alfilo Safety Solutions Pvt Ltd. 


                     


सोमवार, 14 नवंबर 2016

क्या हम बेईमान है या फिर मूर्ख है?

                  8 नवम्बर 2016 की रात लगभग 8 बजे  प्रधान मंत्री मोदी जी  ने एक बेहद धमाकेदार ऐलान कर रात 12 बजे से ₹ 500 और ₹ 1000 रुपये के नोट चलना बंद कर दिया।  प्रधान मंत्री मोदी जी के भाषण खत्म होते न होते हमारे देश के सारे समझदार लोगो के दिमाग सक्रिय हो गये। धड़ाधड़ लोगो ने  ₹ 500 और ₹ 1000 रुपये के नोट लेकर सबसे पहले ज्वेलरी शॉप का रुख किया देखते ही देखते सोने की कीमत ₹ 45000 प्रति 10 ग्राम हो गयी घंटे भर में ही दिल्ली की ज्वेलरी बाजार को समझ आ गया कि ये लोग ब्लेक मनी लेकर आ रहे है उन्होने ₹ 77000 प्रति 10 ग्राम सोना कर दिया। सारे देश में जयपुर, देहली, मुम्बई से लेकर छोटे छोटे शहरो के ज्वेलरी बाजार सारी रात खुले रहे। पता चला है कि मध्य प्रदेश भोपाल में रेल्वे स्टेशन की चेस्ट में 8 नवम्बर की रात लगभग 10 लाख रुपये 100-100 के नोट में रखे थे जिसको रेल्वे के ऑफिसरो ने दो तीन घंटो में ही अपने घरो से लाये से ₹ 500 व  ₹1000 के नोटों से बदल दिया छोटे कर्मचारी बेचारे कुछ बोल भी न पाए।  भोपाल में ही इकोनॉमिक ऑफेंस विंग के एस पी साहब भी रात 9 बजे सपत्निक ज्वेलरी शॉप में शॉपिंग करते नजर आये।
                  कुछ और समझदार थे जिनके पास दस बीस ₹ 500 या ₹ 1000 के नोट थे वे चल दिये पेट्रोल पम्प की ओर, वहाँ उन्होने ₹ 500 का नोट देकर ₹ 50 का पेट्रोल भराना शुरु किया देखते ही देखते पेट्रोल पम्प पर छुट्टे पैसे खत्म हो गये फिर वहाँ झगड़ा शुरु हुआ कि मुझे तो ₹100 का  पेट्रोल चाहिये पेट्रोल पम्प छुट्टे पैसे नही दे रहे। दरअसल आपको न तो पेट्रोल की जरुरत है ना ही छुट्टे पैसो की पर आप लोग जब मार्केट में जाकर अनावश्यक रुप से छुट्टे पैसे, पेट्रोल, सोना आदि संग्रहित करेगें तो उनकी कीमते बढ़ जायेगी फिर आप ही लोग दो चार दिन बाद सरकार को गाली बकना शुरु कर देगें। देश के सारे मनी एक्सचेंजर की भी बल्ले बल्ले हो गयी सब ₹500 और ₹ 1000 के नोट लेकर डॉलर एक्सचेंज में लग गये, ₹ 67 - 68 प्रति डॉलर से रेट ₹ 140 डॉलर तक जा पहुँचा।  ₹ 500 और ₹ 1000 के नोट बंद होने के लगभग एक हफ्ते बाद भी यह खेल आज भी चल रहा है।
                  घर में काम करने वाले नौकर, बाईयों से आधार कार्ड एवं बैंक पास बुक एटीएम कार्ड मंगवाये जा रहे है ताकि उनके खाते में अपने काले धन को जमा कराया जाकर बाद में धीरे धीरे निकाल लिया जा सके। अभी अभी पता चला है कि काले धन के खिलाड़ियों की नजर जनधन योजना में खुलवाये गये गरीब लोगो के जीरो बेलेंस खातो पर है। जन धन योजना के खातो में भी काला धन जमा किये जाने का खेल शुरु हो गया है। गरीब लोग हमेशा की तरह गरीब ही रहने वाले है क्यों कि ये शातिर लोग उनकी पासबुक अपने पास रख लेगे ओर विथड्रॉल स्लिप पर दस्तखत करा लेगे। हमको चाहिये कि ऐसे लोगो की चालो में आये ना ही अपने छोटे आर्थिक हित के लिये अपनी ईमानदारी को दाग लगने दे।
                  ऐसे ही बैंको के सामने लाईन लगाये खडे़ लोगो में कम से कम 40 प्रतिशत ऐसे लोग है जिनको तत्काल पैसे बदलवाने की या फिर रुपयो की कोई जरुरत नही है। लेकिन फिर भी वे लोग रोज बैंक जाते है लाईन में लगते है परेशान होते है और ऐसे लोग जिनको वाकई पैसो की इमरजेंसी है जरुरत है उनका पैसे मिलने में देरी पैदा करते है उनका नुकसान करते है और कई बार जरुरतमंद लोगो को बगैर पैसे मिले घर वापिस जाना होता है। अरविन्द केजरीवाल बार बार कह रहे है कि जो लोग लाईन में लगे क्या उनके पास काला धन है? या कोई पैसे वाला लाईन में लगा है? दरअसल पैसे वाले लोग अपने घरो में, फेक्टरियों में काम करने वाले स्टाफ को  ₹ 4000 देकर लाईन में लगवा कर अपना काला धन सफेद कर रहे है। मजदूरो को भी  ₹ 300 रोज पर लाईन में पैसे बदलवाने के लिए लगाया जा रहा है।  मैं आज तक बैंक नही गया हूँ मेरा काम गुल्लक के कुछ सौ रुपये से आराम से चल रहा है। जबकि मेरे दोस्त अभी तक तीन बार बैंक हो आये है। ₹ 500 के मेरे पास 8 नोट थे जिसमें ₹ 2000 का पेट्रोल 12 नवम्बर को अपनी ऐस्टीम में डलवाया और ₹ 2000 का डीजल बलेनो में कल डला कर खत्म किये। यह काम करने मैं भी तभी गया जब मुझे पेट्रोल और डीजल की जरुरत हुई। 
                 सरकार ने आपको पुराने ₹500 और ₹ 1000 जमा कराने के लिए 31 दिसम्बर 2016 तक का वक्त दिया है। आप कभी भी अपना पैसा आराम से जमा करा सकते है। लेकिन दिल है कि मानता ही नही, लोग आज के आज जाकर अपने पैसे से निजात पाना चाहते है  और हड़बड़ी करते है जिसका दलाल और शातिर लोग फायदा उठाते है जैसे कि नमक खत्म होने की अफवाह उड़ा कर लोगो ने यूपी, दिल्ली और मुम्बई तक ₹200 किलो नमक बेच दिया। अगर हम में जरा सी समझ होती तो हमको सोचना चाहिये कि एक 4-5 लोगो के परिवार में माह में सिर्फ 1 से 2 किलो नमक लगता है। आम तौर पर घरो में इतना नमक होता ही है। अगर नमक की वाकई शार्टेज हो भी जाती तो एक माह में तो वैसे भी आपूर्ति जो जाती है। लेकिन बहुत से लोगो को मैंने साईकिल पर 10-10 किलो के बेग ₹2000 में ले जाते हुए टीवी न्यूज में देखा है। वे क्या सोच कर इतना नमक ले जा रहे थे कि अगले साल दो साल नमक नही मिलेगा।
                  इसी कारण देखा देखी, कुछ हमारी मूर्खता और कुछ हमारी बेईमान आदतो के कारण न सिर्फ हम तकलीफ उठाते है बल्कि दूसरे जरुरतमंद लोगो की जरुरुत का हनन करते है। थोड़ी सी देश, सरकार और वास्तविकता में देखा जाये तो खुद के साथ बेईमानी कर खुश हो लेते है।

रविवार, 1 मई 2016

पानी रे पानी

देश में सूखे के कारण शहरी ओर ग्रामीण दोनो ही परेशान है। सिर्फ पीने के पानी के लिए छोटे- छोटे बच्चे जान हथेली पर लेकर गहरे कुऔं में उतर कर उलीच उलीच कर बरतनो में पानी भर रहे है। क्या बच्चे बूढ़े महिलाएँ सभी के पास एक काम रह गया है कि जैसे तैसे पीने के पानी का इंतजाम किया जाए। सूखे से परेशान इलाको में पानी दूर दूर से लाने में कितने मानव श्रम के घंटे बरबाद होते है इस पर तो हमारी सरकार का ध्यान ही नही है।

Children Skip School to be Lowered into Wells to Fetch Water


क्या देश में ऐसा पहली बार हुआ है ? साल दर साल मार्च अप्रेल मेंं सरकार हक्का बक्का होकर सकपकायी सी जागती है। आम जनता बेहाल परेशान सरकार का मुँह ताकती है। गरीब बच्चे, महिलाएँ ओर बूढ़े सबसे ज्यादा परेशान होते है। यह तो भला हो टीवी चैनलो का जो दिन रात लातूर की त्रासदी दिखाते रहे जब तक कि रेलमंत्री ने पानी की ट्रेन नहीं भेज दी।
 अबकी बार बात कुछ इस तरह बढ़ गयी कि हमारे प्रधानमंत्री को भी ''मन की बात'' में सूखे के मुद्दे पर चर्चा करनी पड़ी एवं लगे हाथो उन्होने ग्रामीण जनता को नसीहत भी दे डाली कि आपको गांव का पानी गांव में और खेत का पानी खेत में रखना होगा ।  एक दो साल पहले तक हमारे मौसम विभाग वाले जो ठीक से यह नही बता पाते थे कि कल पानी बरसेगा या नही इस बार खम ठोंक के कह रहे कि अबकी बार मानसून अच्छा रहेगा।आम जनता को दिलासा मिलता है कि कुछ दिनो में बारिश होने वाली है। उम्मीद पर दुनिया कायम है  ओर बारिश कम ज्यादा कैसी भी हो ही जायेगी।  ओर जबसे देश आजाद हुआ है तब से आम जनता आज तक ऐसे ही उम्मीद पर जी रही है तो अच्छे मानसून की आशा करना क्या बुरा है?  मान लिया कि अच्छा मानसून तो आने वाला है लेकिन सरकार को यह याद रखना चाहिये कि अगले साल मार्च अप्रेल भी आने वाला है। 
क्या हम हमेशा से पानी की समस्या से परेशान है? किसी जमाने में हम लोग पानी के प्रति अत्यधिक संवेदनशील थे।  पहले छोटे छोटे राजा, जमींदार, ठिकानेदार ओर किसान सभी अपनी क्षमतानुसार अपने ग्रामीण इलाको एवं कस्बों में तालाब, कुएँ, बावड़ी जैसी जल संरचनाओं का निर्माण कराते रहते थे। यहीं नहीं वे इस बात का ध्यान भी रखते थे कि ऐसी सभी संरचनाएँ सुरक्षित रहे, बल्कि निरंतर उनमें रिपेयर आदि भी होती रहे। आज भी लगभग हर शहर में जैेसे रतलाम, मंदसौर, देवास, उज्जैन, इंदौर आदि में उस जमाने की ऐसी अनेक बावड़ी एवं कुएँ है जो आज हमारी नगर पालिकाओं, नगर निगमो की मेहरबानी से कुड़े के ढेर में तब्दील हो चुके है।

ये उदयपुर जगदीश चौक स्थित 300 साल पुरानी बावड़ी है जो पिछले 40 सालो से बंद पड़ी थी अभी अभी इसको साफ किया गया है। अगर हमको पानी की समस्या से निपटना है तो पहल हमको ही करनी होगी। हमारे ग्राम शहर में स्थित ऐसी सभी जलसंरचनाओं को पुर्नजीवीत करना होगा। नगरपालिका एवं नगर निगमो को दृढ़ता से समझाना होगा कि ऐसी सभी जल संरचनाओं को न केवल साफ रखना है वरन इनका मेंटेनेंस भी करना है।
पानी की समस्या से निपटने के लिए दूसरा उपाय यह है कि हमें सबसे पहले सभी शासकीय भवनो को चाहे वे ग्रामीण इलाके में हो या शहर में हो वाटर रिचार्जिंग सिस्टम लगाना होगा। आर टी आई कार्यकर्ताओं के लिए यह एक अच्छा विषय है कि सरकार से पूछा जाए कि उनके पास कुल कितनी सरकारी बिल्डिंग्स है और उनमें कितनी में वाटर रिचार्जिंग सिस्टम लगा है और कितनी बिल्डिंग्स में यह ठीक से काम कर रहा है?
Image result for water recharging of well

 अगर देखा जाए तो सूखे की समस्या समस्या नही है यह हमारी लापरवाही है। इस लापरवाही में हम ओर सरकार दोनो ही शामिल है। हम सबको पता है कि राजस्थान में राजेन्द्रसिंह पिछले 20-25 सालो से जोहड़, तालाब बनाने में लगे है एवं अभूतपूर्व परिणाम प्राप्त किये है। अन्ना हजारे ने रालेगांव सि्द्दी में पानी संरक्षण में जो कार्य किये है उनके बारे में सब जानते  है। आश्चर्य की बात है कि हम इस ओर कोई कदम क्यों नही उठाते। जब एक बंदर पानी की उपयोगिता समझता है तो हमको तो ध्यान रखना ही चाहिये।