शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

मोदी से इतनी नफ़रत ?

खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने नये साल 2017 के केलेंडर एवं डायरी पर नरेन्द्र मोदी की तस्वीर क्या छाप दी सारे देश में बवाल मच गया। मकर संक्राति के पावन दिन पर रविश कुमार, कमर वहीद जैसे पत्रकारो को गुल्ली डंडा खेलना छोड़कर खादी और ग्रामोद्योग आयोग के केलेंडर से गांधी के चले जाने पर ब्लॉग लिख कर मातमपूर्सी करनी पड़ी।



 फोर्बीस पत्रिका देश के 100 प्रभावशाली लोगो की एक सूची हर साल जारी करती है। जो कि देश की जनता के एक बड़े हिस्से के मत/विचार को प्रभावित कर सकते है या उसको बदल सकते है। रविश कुमार जैसे पत्रकार उनमें से एक है। और सवाल सिर्फ रविश कुमार का ही नही है राजदीप, बरखा दत्त, वीर संघवी, करण थापा सन 2014 के पहले के दोस्त वेद प्रताप वैदिक और ना जाने ऐसे कितने बड़े अंग्रेजी और हिन्दी मिडिया के पत्रकार है जो खासतौर से नरेन्द्र मोदी से नफ़रत करते है। ऐसे ही ममता बनर्जी, अरविन्द केजरीवाल, मणिशंकर अय्यर, कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, सोनिया गांधी जैसे नेता भी है जो नरेन्द्र मोदी से घोर नफ़रत करते है। यहाँ तक अभी अभी रिटायर हुए सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायधीश भी जब भी किसी मंच पर मौका मिला अपनी मोदी के प्रति नफ़रत छुपा नही सके। बाहर तो बाहर बीजेपी में भी उनके खुद के मार्गदर्शक एवं ऐसे साथियो की कमी नही है जो अंदर ही अंदर उनसे नफ़रत करते है गाहे बगाहे उनके व्यक्तव्य दर्शाते है कि ये लोग उनके मित्र कम दुश्मन ज्यादा है। ऐसे ही एक वर्ग बड़े बड़े ब्यूरोक्रेट्स व उद्योगपतियों का भी है जो दिल में छुरी जुबां पर शहद रखते है जब नरेन्द्र मोदी के बारे में बात करते है।
सार्वजनिक जीवन में जरुरी नही विभिन्न लोगो के विचार आपस में मिले लेकिन वे आमतौर पर एक दूसरे का सम्मान करते है यदि खिलाफ़ भी हो तो बहुत ज्यादा मेलजोल नही करेगें लेकिन सामान्य शिष्टाचार निभाते है। लेकिन नरेन्द्र मोदी के मामले में दूसरी बात है इसिलिए मैंने नफ़रत शब्द का इस्तेमाल किया है। देश में एक ऐसा अभिजात वर्ग (ELITE)  है इसमें सीधे सरल रविश कुमार भी है जो देश में नरेन्द्र मोदी जैसे व्यक्ति के हाथ में सत्ता को खतरनाक समझते है। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी यह कह चुके है कि नरेन्द्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना देश के लिए खतरनाक होगा। ठीक है भाई लेकिन नफ़रत क्यों ? जब ये लोग नरेन्द्र मोदी की तारीफ़ करते है तो भी ऐसा लगता है कि शहद में लपेट लपेट कर चाबुक मार रहे हो। इनके दिल में छुपा दर्द दिख ही जाता है फिर चाहे स्क्रीन ब्लेक कर प्राइम टाइम करे या माइम करके।
 नरेन्द्र मोदी की आलोचना जितनी होती है उतनी किसी नेता की होते हुए नही देखी. आप लोगो को नरेन्द्र मोदी के कपड़ो पर आपत्ति है कि वे हमेशा नयी साफ सुथरी जेकेट और कुर्ता पहनते है। हमारे देश में लोगो की याददाश्त बहुत कमजोर है खासतौर से राहुल गांधी की वो जब नरेन्द्र मोदी को सूटबूट की सरकार बोलते है तो यह भूल जाते है कि 1947-50 के सस्ते जमाने में उनके नाना जवाहर लाल नेहरु कपड़े पेरिस से धुल कर आते थे। जो आज मोदी जेकेट कहलाती है कभी वो नेहरु जेकेट कहलाती थी। राहुल गांधी खुद राल्फ लॉरेन या प्राडा की टी शर्ट पहनते जिसकी कीमत लगभग 12-15000 रुपये होती है तो कुछ नही।



 अगर नरेन्द्र मोदी मलिका साराभाई की मां की मौत पर शोक संदेश न लिखे तो लोगो को आपत्ति और राहुल गांधी मोबाइल से नकल कर शोक संदेश लिखे तो कोई बात नही। अगर सोशल मिडिया नरेन्द्र मोदी  कुछ लिख दे तो लोगो को आपत्ति, नरेन्द्र मोदी विदेश जाए तो आपत्ति अगर जापान में ड्रम बजा दे तो बजाय इस बात की तारीफ़ करने के उसमें भी आलोचना। नरेन्द्र मोदी ने जिस दिन पार्लियामेंट में पहली बार कदम रखा और माथा टेका उसमें भी भाई लोगो को तकलीफ़। आप मन्दिर में जाये माथा टेके प्रणाम करे या ना करे आपको कोई कुछ बोलता है क्या फिर आप क्यो हर बात में इतना हल्ला मचाते हो। कोई दिन ऐसा नही जाता कि आप लोग नरेन्द्र मोदी की किसी न किसी बात पर आलोचना नही करे। जीरो बेलेन्स पर 20 करोड़  जन धन अकाउंट खोले गये तो आपत्ति। किसी को इस बात की तारीफ़ करने के लिए दो शब्द नही है कि जो देश में हर दूसरे दिन स्केम की खबरे हम 2014 के पहले पढ़ा करते थे आना बंद हो गयी है। जो कुकिंग गैस हमको 20-25 दिन की वेटिंग में आती थी और जल्दी चाहिये तो ब्लेक देना होता था आज बुकिंग के बाद 4-5 घंटे में आती है। मुझे अच्छे से याद है कि जिस दिन कांग्रेस सरकार सन 2004 में बनी उसी दिन से कुकिंग गैस की किल्लत हो गयी। टूरिस्ट प्लेसेस गंदगी व प्लास्टिक की थैलियों से अटे पड़े होते थे आज ऐसी सब जगहो पर डस्टबीन है। वाराणसी के घाट गंदगी से टनो मिट्टी और कचरे के ढेर से लबालब पड़े रहते थे आज साफ सुथरे है वहाँ रोज कई कार्यक्रम होते है। 


2009

                                   2016

   रक्षा सौदे फटाफट हो रहे है कोई स्केम की खबर नही है। हाइ वे स्पीड से बन रहे है। सालो से रेल्वे और हाइ वे के बीच विवाद महिनो में सुलझ गये है। क्यों रविश कुमार आपके यहाँ खाना क्या सोलर से बनता है आपको कभी इस बात का अहसास नही हुआ की जो कुकिंग की गैस की नकली किल्लत बतायी जा कर ब्लेक में पैसा बनाया जा रहा था वो अब बंद हो गया एक आध ब्लाग उस पर भी लिख देते। या फिर हर साल सीजन में प्याज आलू टमाटर दाल के दाम बढ़ा कर काला बाजारी की जाती थी अब बंद हो गयी। दाल आज 60 रुपये किलो मिल रही है जब 200 रुपये किलो मिल रही थी उस समय तो आप दिल्ली के सदर बाजार चले गये थे दाल बेचने वालो से मिलने। जब सब्जियां सस्ती हो गयी तो समस्या है कि किसान को पैसा नही मिल रहा जब दाम ज्यादा थे तो बेचारा मिडिल क्लास लुट रहा था। क्या गज़ब है।
       अपनी जवानी की दहलीज पर नरेन्द्र मोदी एक आदर्श वादी व्यक्ति थे आरएसएस से जुड़ने के पर उनकी  समपर्ण व आज्ञाकारिता के चलते तेजी से आर एस एस की रेंक में उपर चढ़ने लगे मेरी समझ से तब वे अत्यंत विन्रम एवं अमहत्वाकांक्षी अपने आपको एक साधारण कार्यकर्ता मानने वाले व्यक्ति थे । अडवाणी एवं अटल बिहारी से नजदीकी के कारण अचानक गुजरात के सीएम की पोस्ट उनकी झोली में आ गिरी। 


        गुजरात सीएम बनते ही उनका सामना गोधरा कांड से हो गया और उनकी जुझारु प्रवृत्ति ने उनको जितने आरोप उन पर लगाये गये उनसे लड़ने की प्रेरणा दी। नरेन्द्र मोदी में एक कला है कि वे विपरित विषम परिस्थितियों से फायदा उठाते है और उसी को हथियार बनाकर वे स्थितियों को अपने पक्ष में कर लेते है यही उनकी जीत का राज है। और इसलिए जब वे तीसरी बार गुजरात सीएम बने तो फिर उन्होने अपना लक्ष्य तय कर लिया और समझ लिया कि उनकी डेस्टिनी उनको कहाँ ले जाना चाहती है। जब मणिशंकर अय्यर नें कांग्रेस के तालकटोरा अधिवेशन में पत्रकारो से बात करते हुए उनको चाय वाला कह कर कहा कि वे यहाँ आ जाये हम चाय बेचने के लिए नरेन्द्र मोदी को स्टाल उपलब्ध करा देगें तो नरेन्द्र मोदी ने उसको चाय पर चर्चा कर ऐसा भुनाया कि बीजेपी 270 से उपर सीट लोक सभा में ले लायी।
            आखिर ऐसा क्या कर दिया जो ये अभिजात वर्ग नरेन्द्र मोदी के इतना खिलाफ़ हो गया। क्या गुजरात दंगे 2002 ? दंगे तो देश में आजादी के बाद से होते ही रहे है ना ही ये सब लोग मुसलमानो के इतने खैरख्वाह है की उनके लिए लगातार 14-15 साल रोते रहे। 1984 के दंगो में जितने सिक्ख देश भर में मारे गये व उनकी संपत्ति लुटी गयी कोई राजदीप रवीश बरखा सोनिया राहुल को उसकी याद नही दिलाता ना किसी भी मंच पर उस घाव को कुरदने की कोशिश करता है जिस तरह से गुजरात दंगो की याद आज तक बार बार दिलाई जाती है। 1984 के दंगो को मैने नजदीक से देखा है उसका तो 10% भी गुजरात में नही हुआ फिर असल बात क्या है।




       दरअसल यह अभिजात वर्ग जो हमारी कल्पना से परे अमीर है और अचरज की बात यह है कि यह लोग खून पसीने की कमाई से अमीर नही बने है अंग्रेजी में जिसे कहते by virtue of their post and position उससे यह लोग अमीर बने है। ज्यादातर नौकरशाहो जैसे अरविन्द केजरीवाल,  निर्मला बुच या फिर राजदीप, बरखा, रवीश कुमार जैसे पत्रकार, तीस्ता सीतलवाड़, मनीष सिसोदिया, अन्ना हजारे, किरण बेदी जैसे समाज सेवी और सलमान खुर्शीद, कपिल सिब्बल जैसे नेता, प्रशांत भूषण, कामिनी जयसवाल जैसे वकील सेवानिवृत न्यायधीश इन सबके पास अपने अपने एनजीओ है कांग्रेस सरकार की पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप पालिसी के तहत ऐसे सभी लोगो ने अथाह पैसा इन एन जी ओ के माध्यम से प्रतिवर्ष उठाया है। एनजीओ के माध्यम से किस तरह पैसा बनाया जाता है उसकी एक बानगी है कि  सलमान खुर्शीद ने कानून मंत्री रहते हुए अपने एनजीओ जो उनकी पत्नी लुइस खुर्शीद चलाती है के लिए  विकलांग लोगो को ट्राईसाइकल, हियरिंग ऐड आदि देने के लिए 70 लाख रुपये मिले थे जिसमें से उस एनजीओ द्वारा 1 रुपये के भी उपकरण नही बांटे गये और फर्जी बिल से सारे का सारा पैसा हजम कर लिया गया। इसका खुलासा अरविंद केजरीवाल अपने इंडिया अंगेस्ट करप्शन आंदोलन के समय किया था।
          इन्ही लोगो के बड़े बड़े बिजनेस है जैसे कपिल सिब्बल की पत्नी देश के सबसे बडे कत्लखाने के मालिक है और बीफ के सबसे बड़े एक्सपोर्टर। ये सब हर प्रकार का लाभ उठाते टेक्स चोरी करते और कोई सरकारी विभाग इनकी तरफ आंख उठा कर नही देखता था। इस प्रकार हर साल ये लोग विभिन्न कार्यो के लिए लाखो रुपया सरकारी विभागो से लेते है और चुपचाप हजम कर जाते है किसी को ख़बर भी नही होती थी। ये  कांग्रेस सरकार इस प्रकार सब लोगो को संतुष्ट रखती थी। बरखा दत्त वीर संघवी जैसे पत्रकार इतने ताकतवर थे कि कांग्रेस सरकार में ये किसी को मंत्री बना सकते थे या हटा सकते थे। नीरा राडिया टेप इस बात के गवाह है और रतन टाटा जैसे आदमी को शर्मिंदा होने से बचने के लिए नीरा रा़डिया टेप सार्वजनिक न होने देने के लिए सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी पड़ी थी। यही नही सुप्रीम कोर्ट के जस्टीस, चीफ सेक्रेट्री,  चुनाव आयुक्त, सीएजी के लेखा नियंत्रक जैसे पदो से रिटायर होने वाले व्यक्तियों का खास ख्याल रखा जाता था एवं या तो इनके कार्यकाल में वृद्दी की जाती या रिटायर होते ही किसी न किसी लाभ के पद जैसे कि मानव आयोग का अध्यक्ष आदि पर बिठा दिया जाता। कांग्रेस सरकार के इस कदम से यह सारा अभिजात वर्ग चुपचाप रहता था और लाखो रुपये प्रतिवर्ष बनाये जाते थे। यही नही यह लोग नियमित रुप से विदेशी फाउंडेशन से भी पैसा प्राप्त करते रहते थे जिस पर कांग्रेस सरकार आंखे मूंदे रहती थी। कभी इस अभिजात वर्ग से यह नही पूछा गया कि आपने इतना पैसा कहाँ से कमाया क्या टेक्स दिया ना ही कभी इनके एनजीओ के कभी सरकारी ऑडिट हुए। जाकिर नाइक के पीस फाउंडेशन के बारे में आप अभी सब जानते है कि वर्षो से वे विदेशो से अपने एनजीओ के लिए चंदा ले रहे थे और कभी उसका किसी सरकारी एजेंसी को कोई हिसाब नही दिया गया।
जब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने तो इस अभिजात वर्ग को उनके गुजरात के मुख्यमंत्री के कार्यकाल को देखते हुए मालूम था कि नरेन्द्र मोदी अगर प्रधानमंत्री बन गये तो ये जो मुफ्त़ की मलाई खाने को मिल रही है बंद हो जायेगी और उनको  विश्वास भी था कि यह कभी प्रधानमंत्री नही बन पायेगें और गुजरात दंगो का इन सभी लोगो द्वारा जम कर प्रचार प्रसार किया गया। नरेन्द्र मोदी की एक मुसलमान विरोधी छवि बनायी गयी लेकिन आज के सोशल मिडिया, टीवी एवं वाट्सएप के जमाने में सारे देश के लोगो को मोदी का गुजरात की तरक्की एवं वहाँ के मुसलमानो की अच्छी आर्थिक स्थिति से समझ में आ गया था कि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री पद के लिए सही उम्मीदवार है आज जब वे देश के प्रधानमंत्री 2-1/2 सालो से है तो धीरे धीरे इस अभिजात वर्ग की सारी अवेध कमाई बंद हो रही है और इसलिए ये सब लोग तिलमिला रहे है। और जो काली कमाई इन लोगो ने 500-1000 के नोट में छुपा रखी थी उसका नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी करके कचरा कर दिया। यही कारण है कि एक वर्ग विशेष नरेन्द्र मोदी से नफ़रत करता है और आलोचना का कोई मौका नही छोड़ता है।



1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही सटीक बातें है जो अलग तरह से सोचने को मजबूर कर देती है। इतने उम्दा ब्लॉग के लिए धन्यवाद।

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