सोमवार, 14 नवंबर 2016

क्या हम बेईमान है या फिर मूर्ख है?

                  8 नवम्बर 2016 की रात लगभग 8 बजे  प्रधान मंत्री मोदी जी  ने एक बेहद धमाकेदार ऐलान कर रात 12 बजे से ₹ 500 और ₹ 1000 रुपये के नोट चलना बंद कर दिया।  प्रधान मंत्री मोदी जी के भाषण खत्म होते न होते हमारे देश के सारे समझदार लोगो के दिमाग सक्रिय हो गये। धड़ाधड़ लोगो ने  ₹ 500 और ₹ 1000 रुपये के नोट लेकर सबसे पहले ज्वेलरी शॉप का रुख किया देखते ही देखते सोने की कीमत ₹ 45000 प्रति 10 ग्राम हो गयी घंटे भर में ही दिल्ली की ज्वेलरी बाजार को समझ आ गया कि ये लोग ब्लेक मनी लेकर आ रहे है उन्होने ₹ 77000 प्रति 10 ग्राम सोना कर दिया। सारे देश में जयपुर, देहली, मुम्बई से लेकर छोटे छोटे शहरो के ज्वेलरी बाजार सारी रात खुले रहे। पता चला है कि मध्य प्रदेश भोपाल में रेल्वे स्टेशन की चेस्ट में 8 नवम्बर की रात लगभग 10 लाख रुपये 100-100 के नोट में रखे थे जिसको रेल्वे के ऑफिसरो ने दो तीन घंटो में ही अपने घरो से लाये से ₹ 500 व  ₹1000 के नोटों से बदल दिया छोटे कर्मचारी बेचारे कुछ बोल भी न पाए।  भोपाल में ही इकोनॉमिक ऑफेंस विंग के एस पी साहब भी रात 9 बजे सपत्निक ज्वेलरी शॉप में शॉपिंग करते नजर आये।
                  कुछ और समझदार थे जिनके पास दस बीस ₹ 500 या ₹ 1000 के नोट थे वे चल दिये पेट्रोल पम्प की ओर, वहाँ उन्होने ₹ 500 का नोट देकर ₹ 50 का पेट्रोल भराना शुरु किया देखते ही देखते पेट्रोल पम्प पर छुट्टे पैसे खत्म हो गये फिर वहाँ झगड़ा शुरु हुआ कि मुझे तो ₹100 का  पेट्रोल चाहिये पेट्रोल पम्प छुट्टे पैसे नही दे रहे। दरअसल आपको न तो पेट्रोल की जरुरत है ना ही छुट्टे पैसो की पर आप लोग जब मार्केट में जाकर अनावश्यक रुप से छुट्टे पैसे, पेट्रोल, सोना आदि संग्रहित करेगें तो उनकी कीमते बढ़ जायेगी फिर आप ही लोग दो चार दिन बाद सरकार को गाली बकना शुरु कर देगें। देश के सारे मनी एक्सचेंजर की भी बल्ले बल्ले हो गयी सब ₹500 और ₹ 1000 के नोट लेकर डॉलर एक्सचेंज में लग गये, ₹ 67 - 68 प्रति डॉलर से रेट ₹ 140 डॉलर तक जा पहुँचा।  ₹ 500 और ₹ 1000 के नोट बंद होने के लगभग एक हफ्ते बाद भी यह खेल आज भी चल रहा है।
                  घर में काम करने वाले नौकर, बाईयों से आधार कार्ड एवं बैंक पास बुक एटीएम कार्ड मंगवाये जा रहे है ताकि उनके खाते में अपने काले धन को जमा कराया जाकर बाद में धीरे धीरे निकाल लिया जा सके। अभी अभी पता चला है कि काले धन के खिलाड़ियों की नजर जनधन योजना में खुलवाये गये गरीब लोगो के जीरो बेलेंस खातो पर है। जन धन योजना के खातो में भी काला धन जमा किये जाने का खेल शुरु हो गया है। गरीब लोग हमेशा की तरह गरीब ही रहने वाले है क्यों कि ये शातिर लोग उनकी पासबुक अपने पास रख लेगे ओर विथड्रॉल स्लिप पर दस्तखत करा लेगे। हमको चाहिये कि ऐसे लोगो की चालो में आये ना ही अपने छोटे आर्थिक हित के लिये अपनी ईमानदारी को दाग लगने दे।
                  ऐसे ही बैंको के सामने लाईन लगाये खडे़ लोगो में कम से कम 40 प्रतिशत ऐसे लोग है जिनको तत्काल पैसे बदलवाने की या फिर रुपयो की कोई जरुरत नही है। लेकिन फिर भी वे लोग रोज बैंक जाते है लाईन में लगते है परेशान होते है और ऐसे लोग जिनको वाकई पैसो की इमरजेंसी है जरुरत है उनका पैसे मिलने में देरी पैदा करते है उनका नुकसान करते है और कई बार जरुरतमंद लोगो को बगैर पैसे मिले घर वापिस जाना होता है। अरविन्द केजरीवाल बार बार कह रहे है कि जो लोग लाईन में लगे क्या उनके पास काला धन है? या कोई पैसे वाला लाईन में लगा है? दरअसल पैसे वाले लोग अपने घरो में, फेक्टरियों में काम करने वाले स्टाफ को  ₹ 4000 देकर लाईन में लगवा कर अपना काला धन सफेद कर रहे है। मजदूरो को भी  ₹ 300 रोज पर लाईन में पैसे बदलवाने के लिए लगाया जा रहा है।  मैं आज तक बैंक नही गया हूँ मेरा काम गुल्लक के कुछ सौ रुपये से आराम से चल रहा है। जबकि मेरे दोस्त अभी तक तीन बार बैंक हो आये है। ₹ 500 के मेरे पास 8 नोट थे जिसमें ₹ 2000 का पेट्रोल 12 नवम्बर को अपनी ऐस्टीम में डलवाया और ₹ 2000 का डीजल बलेनो में कल डला कर खत्म किये। यह काम करने मैं भी तभी गया जब मुझे पेट्रोल और डीजल की जरुरत हुई। 
                 सरकार ने आपको पुराने ₹500 और ₹ 1000 जमा कराने के लिए 31 दिसम्बर 2016 तक का वक्त दिया है। आप कभी भी अपना पैसा आराम से जमा करा सकते है। लेकिन दिल है कि मानता ही नही, लोग आज के आज जाकर अपने पैसे से निजात पाना चाहते है  और हड़बड़ी करते है जिसका दलाल और शातिर लोग फायदा उठाते है जैसे कि नमक खत्म होने की अफवाह उड़ा कर लोगो ने यूपी, दिल्ली और मुम्बई तक ₹200 किलो नमक बेच दिया। अगर हम में जरा सी समझ होती तो हमको सोचना चाहिये कि एक 4-5 लोगो के परिवार में माह में सिर्फ 1 से 2 किलो नमक लगता है। आम तौर पर घरो में इतना नमक होता ही है। अगर नमक की वाकई शार्टेज हो भी जाती तो एक माह में तो वैसे भी आपूर्ति जो जाती है। लेकिन बहुत से लोगो को मैंने साईकिल पर 10-10 किलो के बेग ₹2000 में ले जाते हुए टीवी न्यूज में देखा है। वे क्या सोच कर इतना नमक ले जा रहे थे कि अगले साल दो साल नमक नही मिलेगा।
                  इसी कारण देखा देखी, कुछ हमारी मूर्खता और कुछ हमारी बेईमान आदतो के कारण न सिर्फ हम तकलीफ उठाते है बल्कि दूसरे जरुरतमंद लोगो की जरुरुत का हनन करते है। थोड़ी सी देश, सरकार और वास्तविकता में देखा जाये तो खुद के साथ बेईमानी कर खुश हो लेते है।

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